कोरोना: नैनीताल हाईकोर्ट का चुनाव आयोग को नोटिस, बढ़ते कोरोना की वजह से उत्तराखंड में चुनाव टालने की मांग

उत्तराखंड हाई कोर्ट ने बुधवार को भारत के चुनाव आयोग (ECI) को राज्य में आगामी विधानसभा चुनावों को स्थगित करने की मांग करने वाली याचिका पर नोटिस जारी किया। इस याचिका में कोविड के ओमिक्रॉन वेरिएंट को देखते हुए चुनावों को स्थगित करने की मांग की गई है।

नैनीताल हाईकोर्ट ने बुधवार को राज्य में विधानसभा चुनाव स्थगित किए जाने को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की। कोर्ट ने केंद्रीय चुनाव आयोग को नोटिस जारी करते हुए मामले में जवाब पेश करने को कहा है। सुनवाई कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश संजय कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति एनएस धानिक की खंडपीठ में हुई।

कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश संजय कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति नारायण सिंह धनिक की खंडपीठ ने केंद्र सरकार और उत्तराखंड सरकार की ओर से पेश वकील को याचिका पर निर्देश प्राप्त करने का निर्देश दिया। इस मामले में आगे की सुनवाई सोमवार, 3 जनवरी को होगी।

अधिवक्ता शिव भट्ट ने पूर्व से विचाराधीन सच्चिदानन्द डबराल एवं अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया संबंधी याचिका में अपना प्रार्थना पत्र पेश किया। इसमें कोर्ट के आदेशों के विपरीत राजनीतिक दलों द्वारा कोविड नियमों को धता बताते हुए की जा रही रैलियों की तस्वीरें संलग्न की गई हैं।

इन रैलियों से कोरोना संक्रमण फैलने की पूरी आशंका है, इसलिए लोगों के जीवन की रक्षा के लिए यह आवश्यक हो गया है कि चुनावी रैलियों जैसी बड़ी सभाओं से बचा जाए। साथ ही अदालत से नए साल पर होने वाली पार्टियों पर प्रतिबंध लगाने की भी मांग की गई है।

अधिवक्ता भट्ट ने यह भी कहा है कि विधानसभा चुनाव स्थगित किए जाएं। इस संबंध में केंद्रीय चुनाव आयोग को निर्देश दिए जाएं। मामले में कोर्ट ने केंद्रीय चुनाव आयोग को नोटिस जारी करते हुए जवाब पेश करने के निर्देश दिए हैं। अगली सुनवाई के लिए तीन जनवरी की तिथि तय की है।

उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव फरवरी-मार्च 2022 में होने की उम्मीद है और सभी प्रमुख राजनीतिक दलों ने अपना अभियान शुरू कर दिया है। याचिका में भारतीय जनता पार्टी, आम आदमी पार्टी के साथ-साथ कांग्रेस द्वारा आयोजित रैलियों की तस्वीरें संलग्न की गई हैं, जिसमें सामाजिक दूरियों के मानदंडों या कोविड के उचित व्यवहार का पालन किए बिना भारी भीड़ दिखाई दे रही है।

वर्चुअल रैली की उठाई गई मांग

मौजूदा आवेदन में कहा गया है कि नया ओमिक्रॉन वेरिएंट कोविड के किसी भी अन्य संस्करण की तुलना में 300 फीसदी से अधिक तेजी से फैल रहा है और इसलिए, लोगों के जीवन की रक्षा के लिए यह आवश्यक हो गया है कि चुनावी रैलियों जैसी बड़ी सभाओं से बचा जाए।

आवेदन में कहा गया है कि “उत्तराखंड राज्य में विधानसभा चुनाव फरवरी-मार्च 2022 के महीने में होने जा रहे हैं और जिसके लिए आज की तारीख में सभी राजनीतिक दलों द्वारा विशाल ‘चुनाव रैलियां’ आयोजित की जा रही हैं। यहां यह बताना उचित होगा कि उपरोक्त राजनीतिक दलों की चुनावी रैलियों में न तो सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया गया और न ही लोगों ने मास्क पहना है। तस्वीरें और वीडियो यूट्यूब पर उपलब्ध हैं।”

याचिका में सभी राजनीतिक दलों को यह निर्देश देने की भी मांग की गई है कि वे अपनी रैलियां वर्चुअल रूप से ही करें, साथ ही कोर्ट से नए साल के जश्न के दौरान सभाओं पर प्रतिबंध लगाने के लिए भी कहा।

नैनीताल हाई कोर्ट ने पलटा CBI कोर्ट का फैसला, 13 सितंबर 1992 को गाज़ियाबाद के पूर्व विधायक महेंद्र भाटी हत्याकांड में डीपी यादव बरी

उत्तराखंड हाई कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के बाहुबली नेता डीपी यादव को विधायक महेन्द्र भाटी हत्याकांड में बरी कर दिया। हाई कोर्ट ने सीबीआई कोर्ट के 2015 के फैसले को पलटते हुए यादव को बरी किया है। सीबीआई कोर्ट ने छह साल पहले यादव को दादरी के विधायक रहे महेंद्र भाटी की हत्या के केस में दोषी करार देकर आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई थी।इस मामले में नैनीताल स्थित हाईकोर्ट में लगातार सुनवाई चल रही थी।भाटी हत्या कांड के मुख्य आरोपी डीपी यादव को हाई कोर्ट ने आज बुधवार को बरी कर दिया। डीपी यादव 1992 के दादरी के पूर्व विधायक महेंद्र भाटी हत्याकांड के मुख्य आरोपी थे और महेंद्र भाटी के बेटे ने आजीवन कारावास की सजा को बढ़ाने की मांग की थी। इधर, सीबीआई ने भी डीपी यादव को 120 बी का मुजरिम बनाया था, जिसको हाई कोर्ट ने नहीं माना है।

13 सितंबर 1992 को गाज़ियाबाद के पूर्व विधायक महेंद्र भाटी की दादरी रेलवे क्रासिंग पर गोलियों से भूनकर हत्या हुई थी। जिसमें पूर्व सांसद डीपी यादव समेत चार लोगों को आरोपी बनाया गया था।पूरे मामले की सीबीआई ने जांच कर चार्जशीट कोर्ट में दाखिल की गई तो 15 फरवरी 2015 में देहरादून में सीबीआई कोर्ट ने सभी को दोषी मानते हुए आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई थी। तबसे दोषी जेल में बंद हैं, इन सभी ने सीबीआई कोर्ट की सजा को हाई कोर्ट में चुनौती दी है जिस पर हाई कोर्ट ने सुनवाई कर फैसला सुरक्षित रखा था।इस मामले में हाई कोर्ट में सुनवाई चल रही थी और इस साल कोर्ट से डीपी यादव को कई बार बेल भी मिल चुकी थी। लेकिन सीबीआई कोर्ट द्वारा दोषी माने गए अन्य तीन करण यादव, पाल सिंह और परनीत भाटी के संबंध में फैसला आना बाकी है।

 

हाई कोर्ट ने सरकार को नगर निकाय कर्मचारियों के आवास भत्ता मामले में दो माह में निर्णय लेने का आदेश दिया

हाई कोर्ट ने स्थानीय निकाय कर्मचारियों को आवास किराया भत्ता मामले में पारित शासनादेश पर दो माह में निर्णय लेने का आदेश पारित किया है।  दिसंबर तक कर्मचारियों को भत्ते की सौगात मिल सकती है।नगरपालिका नैनीताल के कर्मचारी दीपक पांडे ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कि है। दीपक पांडे बताया है कि 15 फरवरी 2019 को सरकार ने आवास किराया भत्ता देने का आदेश जारी किया था। लेकिन दो साल बाद भी नगरपालिका कर्मचारियों को इसका लाभ नहीं मिला है। याचिका में स्थानीय नगर निकायों में भी इसे लागू करने का आदेश पारित करने की प्रार्थना की गई है। न्यायाधीश न्यायमूर्ति शरद कुमार शर्मा की एकलपीठ ने मामले को सुनने के बाद सरकार को दो माह में निर्णय लेने का आदेश देते हुए याचिका निस्तारित कर दी।

उत्तराखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश आरएस चौहान ने उड़ीसा हाईकोर्ट से आए न्यायाधीश संजय कुमार मिश्रा को पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई

नैनीताल:- उत्तराखंड उच्च न्यायालय की चीफ जस्टिस कोर्ट में आयोजित शपथग्रहण समारोह में मुख्य न्यायाधीश आरएस चौहान ने उड़ीसा हाईकोर्ट से आए न्यायाधीश संजय कुमार मिश्रा को पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई। जस्टिस संजय कुमार मिश्रा के शपथ लेने के बाद हाइकोर्ट में मुख्य न्यायधीश सहित जजों की संख्या आठ हो गई है।

हाल ही में राष्ट्रपति की ओर से नियुक्त उत्तराखंड हाई कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजय कुमार मिश्रा को 11 अक्टूबर को पद एवं गोपनीयता की शपथ लेंगे। सुप्रीम कोर्ट की कोलेजियम ने उड़ीसा हाईकोर्ट से उनका तबादला नैनीताल हाईकोर्ट करने की सिफारिश की थी। जिसे केंद्र सरकार ने स्वीकार कर राष्ट्रपति को भेजा था। राष्ट्रपति द्वारा नियुक्ति के बाद मंगलवार को केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्रालय की ओर से मंगलवार को नोटिफिकेशन जारी किया गया था। अब शुक्रवार को हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल धनंजय चतुर्वेदी की ओर से शपथ ग्रहण का नोटिफिकेशन जारी किया है।

उत्तराखंड हाईकोर्ट में मुख्य न्यायाधीश समेत न्यायाधीशों के कुल 11 पद हैं। जस्टिस मिश्रा की नियुक्ति सिफारिश स्वीकार होने के बाद हाईकोर्ट में अधिवक्ता कोटे के तीन न्यायाधीश के पद रिक्त रहेंगे। फिलहाल हाईकोर्ट में वरिष्ठ न्यायाधीश मनोज तिवारी, जस्टिस शरद शर्मा समेत सात न्यायाधीश हैं। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की ओर से बनी सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन की कमेटी ने उत्तराखंड हाईकोर्ट में सुप्रीम कोर्ट के तीन अधिवक्ताओं को उत्तराखंड हाईकोर्ट का न्यायाधीश नियुक्त करने की सिफारिश की है।

उड़ीसा हाई कोर्ट से उत्तराखंड स्थानांतरित जस्टिस  संजय कुमार मिश्रा की नियुक्ति 1999 में जयपुर में अपर जिला जज के रूप में हुई थी। सात अक्टूबर 2009 को  उड़ीसा हाई कोर्ट के जज नियुक्त हुए । उन्होंने 1987 में एलएलबी दिल्ली विश्व विद्यालय से किया। अपने पिता मार्कंडेय मिश्रा के मार्गदर्शन में बोलांगीर जिले की अदालत  में प्रैक्टिस की। जस्टिस मिश्रा ने पीसीएस जे की परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया और 1999 में अपर जिला जज जयपुर नियुक्त हुए। उन्होंने जिला एवं सत्र न्यायाधीश सुंदरगढ़, विशेष न्यायाधीश सीबीआई व रजिस्ट्रार जनरल उड़ीसा हाईकोर्ट रहे।

 

उत्तराखंड हाई कोर्ट ने यात्रियों की सीमित संख्या को खत्म कर दिया है, रजिस्ट्रेशन और RTPCR रिपोर्ट अनिवार्य

उत्तराखंड हाइकोर्ट ने चारधाम यात्रा के श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ाए जाने के मामले को लेकर दायर याचिका पर मंगलवार को सुनवाई की।उत्तराखंड हाई कोर्ट ने यात्रियों की सीमित संख्या को खत्म कर दिया है।कोर्ट ने चारधाम में अपर लिमिट हटा दी है लेकिन कोर्ट ने साफ किया है कि पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन और यात्रा में आरटीपीसीआर रिपोर्ट अनिवार्य होगी। कोर्ट ने सरकार से कहा कि यात्रा के दौरान मेडिकल सुविधाओं की कोई भी कमी यात्रियों के लिए न हो और महिलाओं व बच्चों का विशेष ध्यान रखा जाए। चीफ जस्टिस कोर्ट ने चारों धामों में मेडिकल एमरजेंसी के लिए हेलीकॉप्टर व्यवस्था करने को कहा और यात्रियों को इसकी सुविधा के संबंध में पूरी जानकारी देने को कहा। इससे पहले सरकार ने कोर्ट में केदारनाथ बद्रीनाथ समेत सभी धामों में यात्रियों की संख्या को बढ़ाने की मांग की थी।

हाइकोर्ट नैनीताल ने बदरीनाथ-केदारनाथ सहित चारधाम यात्रा के श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ाए जाने के मामले को लेकर दायर याचिका पर मंगलवार को सुनवाई हुई।कोर्ट ने साफ किया कि शासन को कोविड प्रोटोकॉल का अनुपालन सुनिश्चित कराना होगा। कोर्ट के आदेश से सरकार को बड़ी राहत मिली है।मंगलवार को मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति आरएस चौहान व न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ में सुनवाई के दौरान महाधिवक्ता एसएन बाबुलकर व मुख्य स्थाई अधिवक्ता चंद्रशेखर रावत ने सरकार का पक्ष रखते हुए कहा कि चारधाम यात्रा करने के लिए कोविड को देखते हुए कोर्ट ने पूर्व में श्रद्धालुओं की संख्या निर्धारित कर दी थी, लेकिन वर्तमान समय मे प्रदेश में कोविड के केस ना के बराबर आ रहे हैं, इसलिए चारधाम यात्रा करने के लिए श्रद्धालुओं की निर्धारित संख्या के आदेश में संशोधन किया जाए।

चारधाम यात्रा के लिए तीर्थयात्रियों की संख्या को लेकर उत्तराखंड सरकार को नैनीताल हाईकोर्ट से बड़ी राहत मिली है। अब असीमित संख्या में तीार्थयात्री चारधाम यात्रा कर सकेंगे। हाइकोर्ट में आज चारधाम यात्रा में श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ाने के मामले में सुनवाई हुई। इस दौरान कोर्ट ने चारधाम में तीर्थयात्रियों  की संख्या को लेकर फैसला सुनाया। बता दें कि पूर्व में कोर्ट ने केदारनाथ धाम के लिए प्रतिदिन 800, बदरीनाथ धाम के लिए 1000, गंगोत्री के लिए 600, यमुनोत्री के लिए 400 श्रद्धालुओं की ही अनुमति दी थी।

 

उत्तराखंड उच्च न्यायलय ने दुष्‍कर्मी को फांसी की सजा सुनाने के मामले में, उच्च न्यायलय ने फास्टट्रैक कोर्ट से मांगा रिकॉर्ड

नैनीताल:- उत्तराखंड उच्च न्यायलय में मासूम के साथ दुष्कर्म पर दोषी को फांसी की सजा सुनाए जाने के मामले में सुनवाई की गई। मासूम के साथ दुष्कर्म के दोषी नेपाली नागरिक को पिथौरागढ़ की फास्टट्रैक कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई है।उस पर अपनी ही पांच साल की सौतेली बहन से रेप करने का आरोप था। इस मामले पर हाईकोर्ट ने पिथौरागढ़ की अदालत से रिकॉर्ड तलब कर लिया है।

पिथौरागढ़ की फास्टट्रैक कोर्ट ने 24 सितम्बर 2021 को फांसी की सजा सुनाई थी। मंगलवार को मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति आरएस चौहान व न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ में मामले की सुनवाई हुई। उच्च न्यायालय ने बच्ची के साथ दुष्कर्म के दोषी नेपाली नागरिक जनक बहादुर को पिथौरागढ़ की फास्टट्रैक कोर्ट से फांसी की सजा सुनाए जाने के मामले में सुनवाई की। कोर्ट ने इस मामले में पिथौरागढ़ की अदालत से रिकॉर्ड तलब किए हैं।

फास्टट्रैक कोर्ट ने 24 सितम्बर 2021 को फांसी की सजा सुनाई थी। कोर्ट ने इसकी पुष्टि करने के लिए उच्च न्यायलय को आदेश भेजा है। अभियोजन के अनुसार अभियुक्त जनक बहादुर नेपाल का रहने वाला है। वह कुछ समय से जाजर देवल थाना क्षेत्र पिथौरागढ़ में अपने दो नाबालिक बच्चों और एक सौतेली पांच साल की बहन के साथ रह रहा था। आरोप है कि उसने सौतेली बहन के साथ छह माह तक दुष्कर्म किया। उसके साथ मारपीट भी की। जब क्षेत्र के लोगों को घटना का पता चला तो उन्होंने इसकी शिकायत जाजरदेवल थाना पिथौरागढ़ में की। पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर उसे गिरफ्तार कर लिया था।

अप्रैल 2021 में इस मामले की जानकारी होने के बाद काफी आक्रोश देखा गया था। पुलिस ने इस मामले में एफआईआर दर्ज कर जांच की तो आरोपी ने दुष्कर्म की बात को स्वीकार कर लिया था। दुष्कर्म की पुष्टि नाबालिग की मेडिकल जांच से हो गई थी और मेडिकल रिपोर्ट में दुष्कर्म के साथ शरीर में चोटों के गहरे निशान भी थे। बताया गया कि जब एक संस्था ने इनको संरक्षण दिया तो नाबालिग ने उनको घटना की जानकारी दी थी। फास्ट ट्रैक कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि यह घटना मानवता को शर्मसार करने वाली है और इसे बख्शा नहीं जाना चाहिए।

उत्तराखंड सरकार को हाईकोर्ट ने लोकायुक्त की नियुक्ति न होने पर नोटिस जारी कर, 4 हफ्ते में मांगा जवाब

नैनीताल :- लोकायुक्त की नियुक्ति की मांग वाली यह याचिका हल्द्वानी के रवि शंकर जोशी ने दाखिल की है। याचिका में बताया गया है कि 2014 में सरकार ने एक्ट में बदलाव कर दिया और 2014 का संसोधन एक्ट बनाते हुए शर्त रख दी कि जिस दिन लोकायुक्त नियुक्त होगा, उसी दिन से एक्ट प्रभावी होगा।उच्च न्यायालय ने राज्य में लोकायुक्त नियुक्त करने को लेकर दायर जनहित याचिका पर राज्य सरकार को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब दाखिल करने को कहा है। अगली सुनवाई भी चार सप्ताह बाद होगी। गुरुवार को मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति आरएस चौहान व न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ में हल्द्वानी निवासी रविशंकर जोशी की जनहित पर सुनवाई हुई।

हल्द्वानी के रवि शंकर जोशी ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा है कि सरकार ने 2013 में भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए अधिनियम बनाया, जिसके सख्त प्रावधान थे, लेकिन 2014 में सरकार ने इस एक्ट में संशोधन कर दिया और यह शर्त रख दी कि जिस दिन लोकायुक्त की नियुक्ति होगी, उसी दिन से एक्ट प्रभावी होगा। आठ साल बीतने के बाद भी सरकार ने भ्रष्टाचारियों पर कार्रवाई करने से बचाने के लिए लोकायुक्त की नियुक्ति ही नहीं की।भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए उनके पास उच्च न्यायालय के अलावा दूसरा विकल्प नहीं है, अगर सरकार राच्य में लोकायुक्त की नियुक्त कर देती तो उन्हें भ्रष्टाचार के खिलाफ मामलों में लडऩे में मदद मिल सकेगी।

रविशंकर जोशी के अनुसार 2012 में खंडूरी सरकार के कार्यकाल में सशक्त लोकायुक्त बिल राज्य विधानसभा में पारित हुआ था लेकिन 2014 में कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में लोकायुक्त विधेयक को निरस्त कर नया लोकायुक्त बिल लाया गया, जिसे कभी लागू ही नहीं किया गया। त्रिवेंद्र सरकार ने लोकायुक्त बिल को संशोधन के लिए प्रवर समिति को सौंप दिया। 2017 में प्रवर समिति के पास भेजा गया बिल ठंडे बस्ते में पड़ा है।

अब 8 साल बीतने के बाद भी लोकायुक्त नियुक्त नहीं होने पर कोर्ट से मांग की गई है कि लोकायुक्त की नियुक्ति हो ताकि भ्रष्टाचार पर लगाम लग सके। इस याचिका पर उत्तराखंड हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस आरएस चौहान व जस्टिस आलोक कुमार की बेंच ने सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है कि अभी तक लोकायुक्त की नियुक्ति क्यों नहीं हो सकी।

हाईकोर्ट में रवि शंकर जोशी के वकील राजीव बिष्ट ने बताया कि 2013 में जो एक्ट सरकार लेकर आई थी, वह काफी मजबूत था. उसमें भ्रष्टाचार के खिलाफ कठोर प्रावधान थे. पर बाद में इनमें बदलाव कर एक्ट को कमजोर कर दिया गया. राजीव बिष्ट ने बताया कि 2016 में भी ये मामला हाईकोर्ट में उठाया गया था लेकिन सरकार ने कहा कि ऐसा ही मामला सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग है, जिसके बाद याचिका वापस ले ली गई. लेकिन साल 2018 में सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि 2017 में एक्ट लाए गए हैं और एक्ट पास होने के तीन महीने के लोकायुक्त नियुक्त कर देंगे, जो अभी भी नहीं हुआ है. अधिवक्ता राजीव बिष्ट ने बताया कि अगर राज्य में लोकायुक्त नियुक्त होगा तो भ्रष्टाचार के मामलों में कमी आएगी और कोर्ट में जो भ्रष्टाचार के मामले पेंडिंग हैं, उनमें भी कमी आएगी।

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने जासूसी के आरोप में पकड़े गए पाकिस्तानी नागरिक की सजा रखी बरकरार, दून सहित अन्य सैन्य ठिकाने के मिले थे नक्शे

उत्तराखंड हाईकोर्ट नैनीताल ने जासूसी करने के आरोपी पाकिस्तानी नागरिक आबिद अली उर्फ असद अली उर्फ अजीत सिंह निवासी लाहौर (पाकिस्तान) मामले में न्यायाधीश न्यायमूर्ति रवींद्र मैठाणी की एकलपीठ ने अपना निर्णय सुनाते हुए आरोपी की सजा को बरकरार रखा है। सरकार को निर्देश दिए है कि उसके बेलबोंड को निरस्त कर उसे हिरासत में लिया जाय। पूर्व में कोर्ट ने सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था।न्यायमूर्ति रवींन्द्र मैठाणी की एकलपीठ में सुनवाई हुई। रिहाई याचिका पर दिए निर्णय में कहा है कि उसके खिलाफ पर्याप्त सबूत पाए गए है। उसने पासपोर्ट एक्ट के दुरुपयोग किया है।

रुड़की पुलिस ने किया गिरफ्तार था
25 जनवरी 2010 को महाकुंभ के दौरान हरिद्वार के गंगनहर कोतवाली पुलिस द्वारा आबिद अली उर्फ असद अली उर्फ अजीत सिंह निवासी लाहौर (पाकिस्तान) को ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट, विदेश एक्ट और पासपोर्ट एक्ट में थाना कोतवाली रुड़की गंगनहर में गिरफ्तार किया गया था। उसके पास से मेरठ, देहरादून, रुड़की और अन्य सैन्य ठिकानों के नक्शे मिले थे। उससे बरामद एक पेन ड्राइव व कई गोपनीय जानकारी से जुड़े दस्तावेज मिले थे। पुलिस ने रुड़की के मच्छी मुहल्ला स्थित उसके ठिकाने पर छापा मारा तो वहाँ से बिजली फिटिंग के बोर्ड तथा सीलिंग फैन में छिपाकर रखे गए करीब एक दर्जन सिमकार्ड भी बरामद किये।

निचली अदालत ने 19 दिसंबर 2012 को उसे दोषी पाते हुए सात साल की सजा सुनाई थी।। इसके विरुद्ध अभियुक्त के अधिवक्ता द्वारा अपील दायर की गई लेकिन वकील द्वारा उसके पते इत्यादि के बारे में सही तथ्य नहीं लिखा गया।। सुनवाई करते हुए अपर जिला जज (द्वितीय) हरिद्वार ने अभियुक्त को बरी करने के आदेश पारित किए गए। लेकिन इसके बाद जेल अधीक्षक के स्तर से कोर्ट तथा एसएसपी को प्रार्थना पत्र देकर बताया गया कि अभियुक्त विदेशी नागरिक है और इसके लिए उसको रिहा करने से पहले उसका व्यक्तिगत बंधपत्र व अन्य औपचारिकताएं पूरी करनी आवश्यक हैं। अपर जिला जज ने जेल अधीक्षक के पत्र के संदर्भ में स्पष्ट किया कि इसके लिए अलग से आदेश पारित करने की आवश्यकता नहीं है। एसएसपी के आदेश पर उसे रिहा कर दिया गया।

निचली अदालत के आदेश को सरकार ने हाइकोर्ट में विशेष अपील दायर कर चुनौती दी। सरकार द्वारा कहा गया कि निचली अदालत ने बिना ठोस सबूत पाते हुए पाकिस्तानी नागरिक को रिहा करने के आदेश दिए हैं, जिसे निरस्त किया जाए। उसके खिलाफ जासूसी करने के कई सबूत हैं। दलीलों को सुनने के बाद हाईकोर्ट ने उक्‍त आदेश दिए।

उत्तराखंडः नैन‍ीताल हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, कोविड नियमों का पालन कराते हुए चारधाम यात्रा शुरू कराए उत्तराखंड सरकार

नैनीताल :- उत्तराखंड चारधाम यात्रा करीब ढाई महीने के गतिरोध के बाद यात्रा पर लगी रोक हटा दी गई. अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में हाई कोर्ट ने कुछ प्रतिबंधों के साथ यह रोक हटा दी.। कोर्ट ने मामले को सुनने के बाद अपने 26 जून के निर्णय को वापस लेते हुए सरकार को कोविड के नियमों का अनुपालन करते हुए चारधाम यात्रा शुरू करने के आदेश दे दिए है।सरकार ने बीती सुनवाई में कोर्ट से मामले की जल्द सुनवाई करने का आग्रह किया लेकिन कोर्ट ने समयाभाव के चलते अगली सुनवाई के लिए 16 सितम्बर की तिथि नियत की थी। मामले की सुनवाई मुख्य न्यायधीश न्यायमूर्ति आरएस चौहान व न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खण्डपीठ में हुई।

हाईकोर्ट ने 26 जून 2021 को कोविड की वजह से चार धाम यात्रा पर रोक लगाई थी। इस आदेश के खिलाफ सरकार ने सर्वोच्च न्यायलय में एसएलपी दायर की। सर्वोच्च न्यायलय ने इस आदेश पर कोई रोक नही लगाई। अब सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से एसएलपी वापस ले ली है। सरकार ने राज्य में कोविड के केस कम होने, एसएलपी वापस लेने का हवाला देते हुए कोविड के नियमो का अनुपालन करते हुए यात्रा अनुमति की याचना की। सुनवाई के बाद कोर्ट ने 26 जून 2021 के आदेश पर लगी रोक हटा दी। सच्चिदानन्द डबराल ने यह जनहित याचिका बाहरी राज्यों से आ रहे लोगों की राज्य की सीमा पर ही कोविड के जांच के लिए दायर की गई थी। कोर्ट ने जनहित याचिका मे कुम्भ मेला और चारधाम यात्रा का भी संज्ञान लिया।

कोविड नियमों का पालन कराते हुए इन अनिवार्य शर्तों के साथ मंज़ूरी

हाई कोर्ट के आदेश के मुताबिक बद्रीनाथ धाम में 1200 भक्त या यात्रियों, केदारनाथ धाम में 800, गंगोत्री में 600 और यमुनोत्री धाम में कुल 400 यात्रियों के लिए इजाज़त दी गई है. साथ ही कोर्ट ने प्रत्येक धाम पर पहुंचने वाले हर भक्त या यात्री के लिए कोविड नेगेटिव रिपोर्ट और वैक्सीन के दोनों डोज़ का सर्टिफिकेट भी अनिवार्य किया है. यही नहीं, हाईकोर्ट ने चमोली, रुद्रप्रयाग और उत्तरकाशी ज़िलों में ज़रूरत के मुताबिक पुलिस फोर्स लगाने को कहा है. साथ ही निर्देश हैं कि भक्त किसी भी कुंड में स्नान नहीं कर सकेंगे.