उत्तराखंड में आज से फूलदेई का उत्सव शुरू हो गया है।उत्तराखंड में फूल संक्रांति फूलदेई पर्व उल्लास के साथ मनाया जा रहा है। सोमवार को चैत की संक्रांति के मौके पर राज्यभर में यह पर्व मनाया जा रहा है। देहरी पूजन के लिए बच्चे घर-घर पहुंच रहे हैं।
उत्तराखण्ड यूं तो देवभूमि के नाम से दुनिया भर में जाना जाता है, इस सुरम्य प्रदेश की एक और खासियत यह है कि यहां के निवासी बहुत ही त्यौहार प्रेमी होते हैं। जटिल परिस्थितियों, रोज एक नई परेशानी से रुबरु होने, जंगली जानवरों के आतंक और दैवीय आपदाओं से घिरे रहने के बाद भी यहां के लोग हर महीने में एक त्यौहार तो जरुर ही मना लेते हैं। इनके त्यौहार किसी न किसी रुप में प्रकृति से जुड़े होते हैं। प्रकृति ने जो उपहार उन्हें दिया है, उसके प्रति आभार वे अपने लोक त्यौहारों में उन्हें अपने से समाहित कर चुकाने का प्रयास करते हैं।
इसी क्रम में चैत्र मास की संक्रान्ति को फूलदेई के रुप में मनाया जाता है, जो बसन्त ऋतु के स्वागत का त्यौहार है। इस दिन छोटे बच्चे सुबह ही उठकर जंगलों की ओर चले जाते हैं और वहां से प्योली/फ्यूंली, बुरांस, बासिंग आदि जंगली फूलो के अलावा आडू, खुबानी, पुलम के फूलों को चुनकर लाते हैं और एक थाली या रिंगाल की टोकरी में चावल, हरे पत्ते, नारियल और इन फूलों को सजाकर हर घर की देहरी पर लोकगीतों को गाते हुये जाते हैं और देहरी का पूजन करते हुये गाते हैं-
फूल देई, छम्मा देई,
देणी द्वार, भर भकार,
ये देली स बारम्बार नमस्कार,
फूले द्वार……फूल देई-छ्म्मा देई।
फूलदेई छम्मा देई, दैणी द्वार भर भकार। यानी यह देहरी फूलों से सजी रहे। घर खुशियों सेली भरा हो। सबकी रक्षा हो। अन्न के भंडार सदैव भरे रहे। सोमवार (आज) को चैत की संक्रांति है। उत्तराखंड में इसे फूल संक्रांति के तौर पर मनाया जाता है। इस दिन घरों की देहरी को फूलों से सजाया जाता है। घर-मंदिर की चौखट का तिलक करते हुए ‘फूलदेई छम्मा देई’ कहकर मंगलकामना की जाती है। यह सब करते हैं घर व आस-पड़ोस के बच्चे। जिन्हें फुलारी कहा गया है। फुलारी यानी जो फूल लिए आ रहे हैं।
उत्तराखंड में आज से फूलदेई का उत्सव शुरू हो गया है। सुबह-सुबह ही बच्चे हाथों में फूलों की टोकरी लेकर लोगों के घरों की देहरी में फूल डालने निकल पड़े हैं। राजधानी में कुछ बच्चे सीएम आवास पहुंचे हैं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने मुख्यमंत्री आवास में बच्चों के साथ उत्तराखंड का लोकपर्व फूलदेई मनाया।
पुष्कर सिंह धामी ने बच्चों के साथ मनाया लोकपर्व
मुख्यमंत्री ने प्रकृति का आभार प्रकट करने वाले फूलदेई पर्व की प्रदेशवासियों को शुभकामनाएं दी और प्रदेश की सुख- समृद्धि की कामना की। उन्होंने अपने आवास पर पहुंचे बच्चों को उपहार भेंट किये। शशिभूषण मैठाणी एवं पर्वतीय संस्कृति संरक्षण समिति के सहयोग से यह कार्यक्रम आयोजित किया गया।
कार्यक्रम के दौरान मुख्यमंत्री ने कहा कि फूलदेई उत्तराखंड की संस्कृति एवं परंपराओं से जुड़ा प्रमुख पर्व है। कहा कि किसी भी राज्य की संस्कृति एवं परंपराओं की पहचान में लोक पर्वों की अहम भूमिका होती है। हमें अपने लोक पर्वों एवं लोक परम्पराओं को आगे बढ़ाने की दिशा में लगातार प्रयास करने होंगें।
चैत्र की संक्रांति से पूरे माह तक बच्चे घरों और मंदिरों की देहरी पर रंग-बिरंगे फूलों को बिखरेंगे। भारतीय सनातन संस्कृति में प्रत्येक संक्रांति को पर्व के रूप में मनाया जाता है, लेकिन चैत्र संक्रांति के दिन प्रकृति संरक्षण को समर्पित फूल देई का पर्व मनाने की परंपरा है। फूलों का यह पर्व पूरे मास चलेगा।
लोकगीतों में मिलती है पर्व की छलक
फूलदेई की झलक लोकगीतों में भी दिखती है। उत्तराखंडी लोकगीतों का फ्यूजन तैयार करने वाले पांडवाज ग्रुप ने फुल्वारी गीत में फुलारी को सावधान करते हुए लिखा है- चला फुलारी फूलों को, सौदा-सौदा फूल बिरौला। भौरों का जूठा फूल ना तोड्या। म्यारयूं का का जूठा फूल ना लायां। अर्थात चलो फुलारी, ताजा फूल चुनने चलते हैं। ध्यान रखना भौंरों के जूठे किए व मधुमक्खी की चखे फूलों को न तोडऩा।
लोक पर्व फूलदेई वसंत ऋतु के आगमन का संदेश देता है। नौकरी, पढ़ाई व दूसरे वजहों से अलग होते परिवारों में प्रकृति संरक्षक से जुड़े इस पर्व को मनाने की परंपरा पिछले कुछ वर्षों में कम हुई है। विशेषकर नगरीय क्षेत्रों में पर्व अब परंपरा निभाने तक सीमित होता जा रहा है।