जनजाति क्षेत्र का लोहारी गांव जलमग्न हो गया है, ग्रामीणों संकट की इस घड़ी में उल्लास का पर्व बिस्सू कैसे मनाएं

अनूठी लोक व पौराणिक परंपराओं के लिए प्रसिद्ध जनजाति क्षेत्र जौनसार बावर में 14 अप्रैल से 367 राजस्व गांवों व करीब 200 खेड़ों व मजरों में बिस्सू पर्व की धूम शुरू हो जाएगी।जनजाति क्षेत्र जौनसार-बावर में इन दिनों बिस्सू मेले की धूम है। क्षेत्र के गांवों में बिस्सू की तैयारियां जोर शोर से चल रही हैं। लोग अपने घरों को सजा रहे हैं। बाजार से खरीदारी में व्यस्त हैं। व्यापारी मेलों की तैयारी में जुटे हुए हैं। विभिन्न गांवों में आयोजित बिस्सू मेले में बड़ी संख्या में लोग मेला देखने पहुंचेंगे।

जनजाति क्षेत्र लोहारी गांव के जलमग्न होने से खत लखवाड़ का एक गांव घट गया है। अभी तक इस खत में कुल नौ गांव थे।पुराने समय के पहाड़ी शैली में निर्मित घर कई 100 वर्षों की गाथा को समेटे हुए थे जो अब डूब गए हैं। मकानों पर उम्दा नक्काशी व चित्रकारी भी लुप्त हो गई है।

जौनसार का प्रमुख पर्व बिस्सू गुरुवार को है। क्षेत्र के गांवों में बिस्सू की तैयारियां जोर शोर से चल रही हैं। लोग अपने घरों को सजा रहे हैं। बाजार से खरीदारी में व्यस्त हैं। व्यापारी मेलों की तैयारी में जुटे हुए हैं। लेकिन लोहारी में जिस ‘पांडवों की ठौर’ पर मेला लगना था, जहां, हारुल और तांदी की धूम मचनी थी।

वह स्थान झील में समा गया है। गांव में शरणार्थी जैसा जीवन बिता रहे, ग्रामीणों की समझ में नहीं आ रह है कि, संकट की इस घड़ी में उल्लास का पर्व बिस्सू कैसे मनाएं।  ग्रामीणों ने बताया कि, बांध की झील में समाए पांडवों ठौर में भीम की गदा, अर्जुन का गांडीव, नकुल सहदेव की तलवार, युद्धिष्ठर का भाला, द्रोपदी का कटार रखा जाता था।

साल में यहां दो बार मेला लगता था। जिसमें चौदह अप्रैल को बिस्सू मेला लगना था। लेकिन अब यह सब इतिहास बन गया है। कुलदेवता का मंदिर भी जलमग्न पांडवों की ठौर के पास ही काली का मंदिर और कुल देवता चिनपुणियां का मंदिर था। जहां हमेशा पूजा अर्चना होती थी। वह भी बांध में डूब गया।

लखवाड़-व्यासी जल विद्युत परियोजना : विकास की भेट चढ़ गया उत्तराखंड का एक और गाँव,परियोजना झील में जलस्तर बढ़ने से लोहारी गांव जलमग्न हो गया, संस्कृति और खेत-खलिहान हो गए गुम

उत्तराखंड के देहरादून जिले के कालसी क्षेत्र में सोमवार को 120 मेगावाट वाली लखवाड़-व्यासी जल विद्युत परियोजना की झील का जलस्तर बढ़ने के साथ ही लोहारी गांव जलमग्न हो गया। इस दौरान माहौल भावुक हो गया। अपने पैतृक गांव को डूबता देख गांव वालों के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे।

उत्तराखंड को रोशन करने के लिए जलमग्न हो गया ‘लोहारी’ गांव, 120 मेगावाट की व्यासी परियोजना से मिलेगी बिजली  व्यासी बांध परियोजना के अधिशासी निदेशक राजीव अग्रवाल ने बताया कि 15 से 16 अप्रैल तक पानी बिजली उत्पादन के स्तर पर पहुंच जाएगा। अप्रैल के अंत तक पावर हाउस से बिजली उत्पादन शुरू हो जाएगा। परियोजना की झील में जल स्तर बढ़ाए जाने से लोहारी गांव जल्द ही डूब गया

पानी का स्तर बढ़ने के साथ ही डूब क्षेत्र में आए लोहारी गांव में सोमवार को पानी आ गया है। शाम लगभग तीन बजे से गांव में पानी भरना शुरू हो गया था। इसके बाद लगातार बढ़ते जलस्तर ने गांव के मकान, गौशाला, खेत-खलिहानों व पार्क आदि को अपने आगोश में ले लिया। उधर, परियोजना के अधिकारियों का दावा है कि देर रात तक डैम के लिए निर्धारित जलस्तर की मात्रा को सुनिश्चित कर लिया जाएगा।

झील की गहराइयों में बांध प्रभावितों की सुनहरी यादें, संस्कृति और खेत-खलिहान गुम हो गए। ऊंचे स्थानों पर बैठे ग्रामीण दिनभर भीगी आंखों से अपने पैतृक गांव को जल समाधि लेते देखते रहे। ग्रामीणों की मांग थी कि उन्हें आखिरी बिस्सू पर्व पैतृक गांव में ही मनाने को कुछ वक्त दिया जाए, लेकिन सभी को 48 घंटे के नोटिस पर गांव खाली करना पड़ा।

जल विद्युत निगम की ओर से उन्हें सामान व उपज ढोने के लिए वाहन भी मुहैया कराए गए थे। हालांकि, गांव खाली होने के बावजूद सोमवार को विस्थापित आसपास ऊंचे स्थानों पर बैठकर अपनी सुनहरी स्मृतियों को झील में समाते देखते रहे।

विस्थापितों ने बताया कि उन्होंने गेहूं की फसल तो काट ली थी, लेकिन टमाटर, मटर, आलू, प्याज व लहसुन के लहलहाते खेत ऐसे ही छोड़ने पड़े। पैतृक गांव को डूबता देख महिलाओं के आंसू तो थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे। उधर, उपजिलाधिकारी कालसी सौरभ असवाल ने बताया कि प्रशासन की ओर से बांध विस्थापितों के लिए रहने की व्यवस्था की गई है। लेकिन, ग्रामीण वहां जाने को तैयार ही नहीं हैं।

120 मेगावाट की लखवाड़-व्यासी जल विद्युत परियोजना के लिए आवश्यक सभी स्वीकृतियां प्राप्त करने के बाद वर्ष 2014 में परियोजना पर दोबारा कार्य शुरू हुआ। दिसंबर 2021 में परियोजना का निर्माण कार्य पूर्ण कर उसकी कमिशनिंग की जानी थी, लेकिन तमाम जटिलताओं के चलते कमिशनिंग में देरी हुई। 1777.30 करोड़ की लागत वाली इस परियोजना के डूब क्षेत्र में सिर्फ लोहारी गांव ही आ रहा था।

लोकगायक नरेन्द्र सिंह नेगी को संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से किया जाएगा सम्मानित

उत्तराखंड के प्रमुख लोकगायक नरेन्द्र सिंह नेगी को 9 अप्रैल को संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। नई दिल्ली में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद उन्हें यह प्रतिष्ठित सम्मान देंगे। नरेन्द्र सिंह नेगी को वर्ष 2018 के लिए यह पुरस्कार दिया जा रहा है। यह कलाकार के लिए देश का सर्वोच्च पुरस्कार है।

नई दिल्ली में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद नेगी दा समेत 44 अन्य हस्तियों को यह पुरस्कार प्रदान करेंगे। पुरस्कार के रूप में उन्हें एक लाख रुपये की धनराशि, अंगवस्त्र और ताम्रपत्र दिया जाएगा।इसके अलावा 12 अप्रैल को नेगी दा अपने साथी कलाकारों के साथ राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के सामने अपने लोकगीतों की प्रस्तुति भी देंगे।

शनिवार को दिल्ली में देशभर की 44 हस्तियों के साथ उत्तराखंड से लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी को भी प्रतिष्ठित संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। नरेंद्र सिंह नेगी को उत्तराखंड में लोक संगीत के क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए वर्ष 2018 के पुरस्कार के लिए चुना गया था।

 उत्तराखण्ड में तीन मई से चारधाम यात्रा होगी शुरू, जानिए केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री मंदिरो के कपाट खुलने का शुभ मुहूर्त

उत्तराखण्ड में तीन मई से चारधाम यात्रा शुरू होने जा रही है। वर्ष 2020 और 2021 में कोरोना संक्रमण की रोकथाम के लिए लागू किए गए प्रतिबंधों के कारण बेहद सीमित संख्या में श्रद्धालु चारधाम यात्रा के लिए आए। इस वर्ष सरकार ने सभी प्रतिबंध हटा लिए हैं। ऐसे में इस बार बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं के आने की उम्मीद जताई जा रही है। इसके लिए तैयारियां भी जोरों पर हैं।

रोहणी नक्षत्र और कर्क लग्न में तीन मई को यमुनोत्री धाम के कपाट शुभ मुहूर्त में खुल जाएंगे। वहीं, केदारनाथ के कपाट 06 मई तो बद्रीनाथ के 08 मई कपाट दर्शन के लिए खुल जाएंगे। तीर्थ पुरोहितों ने आज (07 अप्रैल) को यमुनोत्री धाम के कपाट खुलने का शुभ मुहूर्त निकाला है। पुरोहितों का कहना है कि 03 मई को 12 बजकर 15 मिनट पर कपाट भक्तों के खुलेंगे।

विश्व प्रसिद्ध गंगोत्री धाम के कपाट आगामी 3 मई को अक्षय तृतीया के पर्व पर खोल दिए जाएंगे। कपाट खुलने का समय सुबह 11.15 बजे निकाला गया है। 2 मई को मां गंगा अपने शीतकालीन प्रवास मुखबा गांव से डोली में सवार होकर दोपहर 12:15 पर गंगोत्री धाम के लिए रवाना होंगी और मार्कंडेय मंदिर, देवी मंदिर होते हुए रात्रि विश्राम के लिए भैरव घाटी पहुंचेंगी। जहां भैरव मंदिर में ही रात्रि विश्राम करेंगी। अगले 3 तीन मई को मां गंगा की डोली यात्रा सुबह 5:30 पर गंगोत्री धाम के लिए रवाना होगी। जहां गंगोत्री धाम पहुंचने पर सर्व प्रथम गंगा लहरी, गंगा सहस्त्रनाम के पाठ व हवन पूजन तथा गंगा आरती करने के बाद शुभ मुहूर्त पर ठीक 11:15 मिनट पर गंगोत्री धाम के कपाट श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ खोल दिए जायेंगे।

केदारनाथ मंदिर के कपाट 6 मई को खुलेंगे। श्रद्धालुओं के लिए 6 मई 2022 को सुबह 6 बजकर 25 मिनट अमृत बेला पर मंदिर के कपाट खुलेंगे। ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ से 2 मई को बाबा केदारनाथ की डोली केदार धाम के लिए प्रस्तान करेगी। 2 मई को डोली गुप्तकाशी, 3 मई को फाटा, 4 मई को गौरीकुंड पहुंचेगी। यहां रात्रि विश्राम होगा. केदारनाथ की डोली 5 मई को केदारनाथ धाम पहुंचेगी। इसके बाद 6 मई को सुबह 6.25 बजे केदारनाथ धाम के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खोले जाएंगे।

बद्रीनाथ धाम के कपाट इस साल 8 मई को खुलेंगे। शास्त्रों के मुताबिक विधि-विधान से 8 मई की सुबह 6 बजकर 15 मिनट पर बद्रीनाथ धाम के कपाट खुल जाएंगे। मंदिर के कपाट खुलने के बाद श्रद्धालु बद्रीनाथ धाम पहुंचकर दर्शन-पूजन कर सकेंगे।

मुख्य सचिव डॉ. एसएस संधु ने चारधाम यात्रा की तैयारियों के संबंध में कहा कि यात्रा को सुगम व सुरक्षित करने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाए जाएं। चारधाम यात्रा मार्ग पर स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत किया जाए। हर जगह विशेषज्ञ चिकित्सकों की तैनाती सुनिश्चित की जाए। मार्गो पर दुर्घटना रोकने के लिए क्रैश बैरियर और साइनेज की व्यवस्था की जाए। पर्वतीय मार्गो पर यातायात प्रबंधन और पार्किंग पर विशेष ध्यान दिया जाए तथा नए पार्किंग स्थल विकसित किए जाएं।

उन्होंने चारधाम यात्रा के लिए रजिस्ट्रेशन काउंटर बढ़ाने के भी निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि वेबसाइट और मोबाइल एप भी विकसित किए जाएं, ताकि यात्रियों के रजिस्ट्रेशन में अधिक समय न लगे। उन्होंने सड़क चौड़ीकरण के कारण खराब हुए हैंडपंप को फिर से दुरुस्त कर इस्तेमाल योग्य बनाने के निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि चारधाम यात्रा मोबाइल एप पर यात्रा के साथ ही मौसम की जानकारी भी दी जाए और इसका उचित प्रचार-प्रसार किया जाए।

ऋषिकेश में 100 साल पुराने विश्व प्रसिद्ध लक्ष्मण झूले का तार टूटा, यात्रियों में मचा हड़कंप, आवाजाही बंद 

उत्तराखंड के ऋषिकेश के टिहरी और पौड़ी को जोड़ने वाला 100 साल पुराना विश्व विख्यात लक्ष्मण झूले के पुल का मुख्य तार अचानक टूट गया। इससे प्रशासन में हड़कंप मच गया है, जिसके बाद पुल पर आम लोगों की आवाजाही रोक दी गई है। रविवार की दोपहर लक्ष्मण झूला पुल पर अचानक उस समय हड़कंप मच गया, जब टिहरी और पौड़ी जिले को जोड़ने वाला विश्व विख्यात 100 वर्ष पुराने पुल‌ की विंड तार अचानक टूट गई, जिसके टूटने से ही पुल से गुजर रहे यात्रियों में हड़कंप मच गया। लक्ष्मण झूला के पास ही बजरंग सेतु नए पुल का निर्माण कार्य चल रहा है, इस बीच लक्ष्मण झूला पुल का एक तार टूट गया। जिस वजह से आवाजाही तत्काल रोक दी गई है।

जानकारी के अनुसार, लक्ष्मण झूला पुल पर आज अचानक उस समय हड़कंप मच गया, जब टिहरी व पौड़ी जिले को जोड़ने वाला विश्व विख्यात लक्ष्मण झूला पुल का विंड तार अचानक टूट गया। इससे पुल से गुजर रहे यात्रियों में हड़कंप मच गया। इस मामले की सूचना मुनी की रेती थाना प्रभारी रितेश शाह को दी गई। रितेश शाह मौके पर पहुंचे और पुल से आने जाने वाले यात्रियों को रोक दिया गया।
लोक निर्माण विभाग अधिशाषी अभियंता आरिफ खान ने जानकारी देते हुए बताया कि पुल के पास बजरंग सेतु का निर्माण कार्य किया जा रहा है। इसी बीच लक्ष्मण झूला पुल का विंड तार टूट गया। उन्होंने बताया कि इस विंड तार को निकाला जाना था। पुल पर आवाजाही एक बार फिर से बंद कर दी गई है।
पुल की मियाद समाप्त होने पर 13 जुलाई 2019 को लोगों की आवाजाही के लिए यह पुल पूरी तरह से बंद कर दिया गया था, इसके बावजूद लोगों की आवाजाही लगातार हो रही थी। गनीमत रही कि तार टूटने की वजह से कोई बड़ा हादसा नहीं हुआ।

चैत्र नवरात्रि कल से शुरू ,नौ दिन होगी मां दुर्गा की पूजा अर्चना

हिंदू कैलेंडर के अनुसार, चैत्र माह की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को चैत्र नवरात्रि का त्योहार मनाया जाएगा. इस दौरान मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की विधि-विधान के साथ पूजा की जाती है. इस साल चैत्र नवरात्रि का त्योहार शनिवार, 2 अप्रैल 2022 से शुरू होगा और सोमवार, 11 अप्रैल 2022 को समाप्त होगा. मां दुर्गा को सुख, समृद्धि और धन की देवी माना जाता है.

हिंदू धर्म में मां दुर्गा के नवरात्रि का विशेष महत्व है। साल में चार बार मनाया जाने वाला ये पर्व माता रानी के भक्त बहुत ही धूम-धाम से मनाते हैं। दो गुप्त नवरात्रि और दो शारदीय और चैत्र के नवरात्रि होते हैं। देशभर में माता रानी के भक्तों का सैलाव मंदिरों में उमड़ आता है। हिंदू धर्म में मां दुर्गा के नवरात्रि का बहुत ही विशेष महत्व है।

इन नौ दिनों में माता रानी के 9 स्वरूपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि के नौ दिनों में मां दुर्गा की उपासना और पूजा पाठ किया जाता है। साथ ही भक्त मां के लिए नौ दिन व्रत और उपवास रखते हैं। विधि विधान से मां की पूजा की जाती है। मां की पूजा के बाद आरती और चालीसा का पाठ किया जाए, तो मां प्रसन्न होकर भक्तों के सभी दुख दूर करती हैं और सकंट हर लेती हैं।

नवरात्रि के पहले दिन घटस्थापना करके मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की अलग-अलग पूजा-अर्चना की जाती है। मान्यता है कि नवरात्रि में मां दुर्गा की विधिवित पूजा करने वाले भक्तों पर माता रानी अपनी कृपा दृष्टि सालभर रखती हैं। कलश स्थापना का शुभ समय 2 अप्रैल को सुबह 06 बजकर 10 मिनट से 08 बजकर 29 मिनट तक है। कुल अवधि 02 घंटे 18 मिनट की है।

 

‘परीक्षा पर चर्चा’ : 1 अप्रैल को प्रधानमंत्री मोदी छात्रों से करेंगे संवाद, उत्तराखंड के 56 हजार बच्चे कार्यक्रम में होंगे शामिल, प्रधानमंत्री देंगे सफलता का मंत्र

केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक अप्रैल को दिल्ली स्थित तालकटोरा स्टेडियम में सुबह 11 बजे परीक्षा पे चर्चा कार्यक्रम के पांचवें संस्करण में छात्रों, शिक्षकों और अभिभावकों से संवाद करेंगे। इस कार्यक्रम में 9वीं से 12वीं कक्षा तक के एक हजार छात्र शामिल होंगे। इनमें अधिकतर छात्र दिल्ली, नोएडा, गुरुग्राम, गाजियाबाद जैसे शहरों में सरकारी और निजी स्कूलों में पढ़ने वाले होंगे। इस कार्यक्रम की शुरुआत वर्ष 2018 में की गई थी।

एक अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की परीक्षा पर चर्चा कार्यक्रम में उत्तराखंड के 56 हजार से अधिक बच्चे प्रतिभाग करेंगे। शिक्षा महानिदेशक बंशीधर तिवारी के मुताबिक राज्य से कुल 56067 छात्रों,अध्यापकों एवं अभिभावकों ने कार्यक्रम में प्रतिभाग किए जाने के लिए अपना पंजीकरण कराया है। जबकि रुड़की के विश्वजीत और कालसी देहरादून की संजीति सीधे इस कार्यक्रम में शामिल होंगे।

शिक्षा महानिदेशक ने कहा कि सचिव स्कूली शिक्षा साक्षरता विभाग, शिक्षा मंत्रालय ने वीडियो कॉन्फ्रेसिंग के माध्यम से आयोजित बैठक में निर्देशित किया है कि इस कार्यक्रम में उत्तराखंड से प्रतिभाग किए जाने के लिए विश्वजीत कक्षा 11, आर्मी पब्लिक स्कूल नं. 1, रुड़की जिला हरिद्वार एवं संजीति चौहान, ईएमआरएस कालसी, देहरादून का सीधे प्रतिभाग किए जाने के लिए चयन हुआ है। बैठक में निदेशक आरके कुंवर, निदेशक वंदना गर्ब्याल, डॉ. आरडी शर्मा, डॉ. अशोक कुमार सैनी आदि मौजूद रहे।

कोरोना संकट के चलते पहले इस चर्चा को पिछले साल की तरह वचरुअल ही रखा गया था, लेकिन कोरोना की स्थिति में तेजी से हुए सुधार के बाद शिक्षा मंत्रलय ने इस चर्चा को पहले की तरह आयोजित करने का एलान किया है। शिक्षा मंत्रलय ने गुरुवार को पीएम मोदी की छात्रों के साथ परीक्षा पे चर्चा की तारीख घोषित की। जिसमें छात्र पहले की तरह पीएम के साथ बैठकर परीक्षा और पढ़ाई से जुड़े विषयों पर सीधे सवाल पूछ सकेंगे। पीएम मोदी की छात्रों के साथ परीक्षा पे चर्चा करने की यह शुरुआत 2018 में हुई थी। तब से हर साल इसका आयोजन होता आ रहा है। इस चर्चा के लिए रजिस्ट्रेशन का काम दिसंबर से शुरू हो गया था।

पीएम नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर कहा कि आइए परीक्षाओं का त्योहार मनाएं। आइए बात करते हैं तनाव मुक्त परीक्षाओं की। एक अप्रैल को परीक्षा पे चर्चा में मिलते हैं।

प्रधानमंत्री ने ट्वीट किया, ”परीक्षा पे चर्चा हल्का-फुल्का संवाद होता है और यह हम सभी को परीक्षाओं, पढ़ाई, जीवन एवं अन्य विषयों संबंधी विभिन्न पहलुओं पर बात करने का अवसर देता है। ” परीक्षा पे चर्चा (पीपीसी) कार्यक्रम इस साल एक अप्रैल को नई दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में आयोजित किया जाएगा।

वहीं, पीएम ने एक और ट्वीट किया है, जिसमें उन्होंने लिखा है कि आइए तनावमुक्त परीक्षाओं पर एक बार फिर चर्चा करें। मैं छात्रों, उनके अभिभावकों और अध्यापकों को इस साल एक अप्रैल को ‘परीक्षा पे चर्चा’ में शामिल होने का आह्वान करता हूं।

शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि पीएम मोदी से सीधी बात होने से कई बच्चों का मार्गदर्शन होगा। इस चर्चा में 9 वीं और 12 वीं कक्षा तक के एक हजार छात्र शामिल होंगे। छात्रों के अलावा शिक्षकों और अभिभावकों को भी 2022 के लिए नया मार्ग मिलेगा। ये चर्चा करीब डेढ़ घंटे चलेगी । इस दौरान बच्चे पीएम मोड़ो से 20 सवाल पूछेंगे। ये चर्चा अलग अलग विषयों पर फोकस होगी।

इस कार्यक्रम में सभी राज्यों के राज्यपाल अपने अपने प्रदेश के बच्चों के साथ शामिल होंगे। इसके लिए सभी बबच्चों को राज्यपाल भवन में बुलाया जाएगा। इसके अलावा इस कार्यक्रम में मेडिकल कॉलेज, IIT, NIT समेत उच्च शिक्षण संस्थान भी इसमें शामिल होंगे।

परीक्षा पर चर्चा के लिए रजिस्ट्रेशन पहले ही किया जा चुका है। जिन छात्रों ने ‘परीक्षा पे चर्चा’ के लिए रजिस्ट्रेशन किया है, वो पीएम मोदी के कार्यक्रम में शामिल हो सकेंगे। आपको बता दें कि स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग, शिक्षा मंत्रालय पिछले चार साल से इसका आयोजन कर रहा है। पीपीसी के पहले तीन संस्करण नई दिल्ली में एक संवादात्मक ‘टाउन-हॉल’ प्रारूप में आयोजित किए गए थे। चौथा संस्करण पिछले साल 7 अप्रैल को कोरोना की दूसरी लहर के चलते ऑनलाइन आयोजित किया गया था।

देहरादून ​का ऐतिहासिक झंडा मेला आज श्रीझंडे जी के आरोहण के साथ शुरू होगा 

देहरादून का ऐतिहासिक झंडा मेला दुनियाभर से आए श्रद्धालुओं की आस्‍था का प्रतीक है। प्रेम, सद्भाव और आस्था का प्रतीक देहरादून का ऐतिहासिक झंडा मेला 90 फीट ऊंचे श्रीझंडे जी के आरोहण के साथ आज मंगलवार से शुरू हो जाएगा। देश-विदेश से लाखों की संख्या में श्रद्धालु जुटेंगे। दरबार साहिब में मंगलवार को सुबह सात बजे पूजा-अर्चना के बाद पुराने श्रीझंडे जी को उतारा जाएगा। इसके बाद नए श्रीझंडे जी को गंगाजल और पंचगव्य से स्नान कराया जाएगा। तत्पश्चात उनकी पूजा-अर्चना और फिर अरदास होगी।

इस बार ध्वजदंड भी बदला जाएगा। मेला प्रबंधन समिति को प्रशासन की गाइडलाइन का इंतजार है। बीते 2 वर्षों से कोविड गाइडलाइन के चलते मेले को संक्षिप्त किया जा रहा था। झंडा मेले में हर तीन वर्ष में झंडेजी के ध्वजदंड को बदलने की परंपरा रही है। इससे पूर्व वर्ष 2020 में ध्वजदंड बदला गया था।

श्रीझंडे जी में इस बार दिल्ली के रवि नगर एक्सटेंशन निवासी बलजिंदर सिंह सैनी दर्शनी गिलाफ चढ़ाएंगे। पेशे से व्यापारी बलजिंदर इसके लिए मां कुलदीप कौर के साथ दून पहुंच चुके हैं। उनके दादा अक्षर सिंह ने 100 साल पहले दर्शनी गिलाफ चढ़ाने के लिए बुकिंग कराई थी।

सुबह करीब 10 बजे श्रीझंडे जी को गिलाफ चढ़ाने की प्रक्रिया शुरू होगी। दोपहर में दो से चार बजे के बीच दरबार साहिब के सज्जादानशीन श्रीमहंत देवेंद्र दास महाराज की अगुआई में श्रीझंडे जी का आरोहण किया जाएगा। इसके साथ ही झंडा मेला शुरू हो जाएगा। इस पल की साक्षी बनने के लिए देश-विदेश से संगतें दरबार साहिब पहुंची हैं।

प्रेम, सद्भावना और आस्था का प्रतीक झंडा मेला होली के पांचवें दिन देहरादून स्थित श्री दरबार साहिब में झंडेजी के आरोहण के साथ शुरू होता है। इस दौरान देश-विदेश से संगतें मत्था टेकने पहुंचती हैं। इस मेले में पंजाब, हरियाणा और आसपास के कई इलाकों से संगतें आती हैं। जो कि गुरूराम राय जी के भक्त होते हैं। श्री गुरु राम राय ने वर्ष 1676 में दून में डेरा डाला था। उनका जन्म 1646 में पंजाब के होशियारपुर जिले के कीरतुपर में होली के पांचवें दिन हुआ था। इसलिए दरबार साहिब में हर साल होली के पांचवें दिन उनके जन्मदिवस पर झंडा मेला लगता है। गुरु राम राय ने ही लोक कल्याण के लिए विशाल ध्वज को यहां स्थापित किया था।

दरबार साहिब में शीश नवाने और श्री गुरु राम राय महाराज का आशीर्वाद प्राप्त करने को देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं। उत्तराखंड के विभिन्न हिस्सों के साथ ही हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान से संगतें सोमवार को दून पहुंच गईं।

गुरुवार को सुबह 7:30 बजे नगर परिक्रमा शुरू होगी। श्री दरबार साहिब, श्रीझंडा जी मेला आयोजन समिति के व्यवस्थापक केसी जुयाल ने बताया कि श्रीमहंत देवेंद्र दास महाराज की अगुआई में 25 हजार से अधिक श्रद्धालु नगर परिक्रमा में शामिल होंगे।

उत्तराखंड का लोकपर्व फूलदेई उत्सव आज से शुरू, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी मनाया फूलदेई पर्व

उत्तराखंड में आज से फूलदेई का उत्सव शुरू हो गया है।उत्तराखंड में फूल संक्रांति फूलदेई पर्व उल्लास के साथ मनाया जा रहा है। सोमवार को चैत की संक्रांति के मौके पर राज्‍यभर में यह पर्व मनाया जा रहा है। देहरी पूजन के लिए बच्‍चे घर-घर पहुंच रहे हैं।

उत्तराखण्ड यूं तो देवभूमि के नाम से दुनिया भर में जाना जाता है, इस सुरम्य प्रदेश की एक और खासियत यह है कि यहां के निवासी बहुत ही त्यौहार प्रेमी होते हैं। जटिल परिस्थितियों, रोज एक नई परेशानी से रुबरु होने, जंगली जानवरों के आतंक और दैवीय आपदाओं से घिरे रहने के बाद भी यहां के लोग हर महीने में एक त्यौहार तो जरुर ही मना लेते हैं। इनके त्यौहार किसी न किसी रुप में प्रकृति से जुड़े होते हैं। प्रकृति ने जो उपहार उन्हें दिया है, उसके प्रति आभार वे अपने लोक त्यौहारों में उन्हें अपने से समाहित कर चुकाने का प्रयास करते हैं।

इसी क्रम में चैत्र मास की संक्रान्ति को फूलदेई  के रुप में मनाया जाता है, जो बसन्त ऋतु के स्वागत का त्यौहार है। इस दिन छोटे बच्चे सुबह ही उठकर जंगलों की ओर चले जाते हैं और वहां से प्योली/फ्यूंली, बुरांस, बासिंग आदि जंगली फूलो के अलावा आडू, खुबानी, पुलम के फूलों को चुनकर लाते हैं और एक थाली या रिंगाल की टोकरी में चावल, हरे पत्ते, नारियल और इन फूलों को सजाकर हर घर की देहरी पर लोकगीतों को गाते हुये जाते हैं और देहरी का पूजन करते हुये गाते हैं-

फूल देई, छम्मा देई,

देणी द्वार, भर भकार,

ये देली स बारम्बार नमस्कार,

फूले द्वार……फूल देई-छ्म्मा देई।

फूलदेई छम्मा देई, दैणी द्वार भर भकार। यानी यह देहरी फूलों से सजी रहे। घर खुशियों सेली भरा हो। सबकी रक्षा हो। अन्न के भंडार सदैव भरे रहे। सोमवार (आज) को चैत की संक्रांति है। उत्तराखंड में इसे फूल संक्रांति के तौर पर मनाया जाता है। इस दिन घरों की देहरी को फूलों से सजाया जाता है। घर-मंदिर की चौखट का तिलक करते हुए ‘फूलदेई छम्मा देई’ कहकर मंगलकामना की जाती है। यह सब करते हैं घर व आस-पड़ोस के बच्चे। जिन्हें फुलारी कहा गया है। फुलारी यानी जो फूल लिए आ रहे हैं।

उत्तराखंड में आज से फूलदेई का उत्सव शुरू हो गया है। सुबह-सुबह ही बच्चे हाथों में फूलों की टोकरी लेकर लोगों के घरों की देहरी में फूल डालने निकल पड़े हैं। राजधानी में कुछ बच्चे सीएम आवास पहुंचे हैं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने मुख्यमंत्री आवास में बच्चों के साथ उत्तराखंड का लोकपर्व फूलदेई मनाया।

पुष्कर सिंह धामी ने बच्‍चों के साथ मनाया लोकपर्व
मुख्यमंत्री ने प्रकृति का आभार प्रकट करने वाले फूलदेई पर्व की प्रदेशवासियों को शुभकामनाएं दी और प्रदेश की सुख- समृद्धि की कामना की। उन्होंने अपने आवास पर पहुंचे बच्चों को उपहार भेंट किये। शशिभूषण मैठाणी एवं पर्वतीय संस्कृति संरक्षण समिति के सहयोग से यह कार्यक्रम आयोजित किया गया।

कार्यक्रम के दौरान मुख्यमंत्री ने कहा कि फूलदेई उत्तराखंड की संस्कृति एवं परंपराओं से जुड़ा प्रमुख पर्व है। कहा कि किसी भी राज्य की संस्कृति एवं परंपराओं की पहचान में लोक पर्वों की अहम भूमिका होती है। हमें अपने लोक पर्वों एवं लोक परम्पराओं को आगे बढ़ाने की दिशा में लगातार प्रयास करने होंगें।

चैत्र की संक्रांति से पूरे माह तक बच्चे घरों और मंदिरों की देहरी पर रंग-बिरंगे फूलों को बिखरेंगे। भारतीय सनातन संस्कृति में प्रत्येक संक्रांति को पर्व के रूप में मनाया जाता है, लेकिन चैत्र संक्रांति के दिन प्रकृति संरक्षण को समर्पित फूल देई का पर्व मनाने की परंपरा है। फूलों का यह पर्व पूरे मास चलेगा।

लोकगीतों में मिलती है पर्व की छलक

फूलदेई की झलक लोकगीतों में भी दिखती है। उत्तराखंडी लोकगीतों का फ्यूजन तैयार करने वाले पांडवाज ग्रुप ने फुल्वारी गीत में फुलारी को सावधान करते हुए लिखा है- चला फुलारी फूलों को, सौदा-सौदा फूल बिरौला। भौरों का जूठा फूल ना तोड्या। म्यारयूं का का जूठा फूल ना लायां। अर्थात चलो फुलारी, ताजा फूल चुनने चलते हैं। ध्यान रखना भौंरों के जूठे किए व मधुमक्खी की चखे फूलों को न तोडऩा।

लोक पर्व फूलदेई वसंत ऋतु के आगमन का संदेश देता है। नौकरी, पढ़ाई व दूसरे वजहों से अलग होते परिवारों में प्रकृति संरक्षक से जुड़े इस पर्व को मनाने की परंपरा पिछले कुछ वर्षों में कम हुई है। विशेषकर नगरीय क्षेत्रों में पर्व अब परंपरा निभाने तक सीमित होता जा रहा है।

यमुना घाटी में सिंधु घाटी सभ्यता काल से जुड़ी प्रतिमा उत्तरकाशी जिले से प्राप्त हुई

दून पुस्तकालय एवम् शोध केन्द्र के तत्वाधान में पुरातत्व व इतिहास के शोधार्थियों द्वारा उत्तरकाशी जिले में बर्नीगाड स्थान से लगभग 10 किमी उत्तर पूर्व में स्थित देवल गांव से पाषाण निर्मित महिष (भैंसा) मुखी चतुर्भुज मानव प्रतिमा खोज निकाली है। शोधार्थी इस प्रतिमा को सिंधु घाटी सभ्यता से प्राप्त ‘आदि शिव’ की प्रतिमा से जोड़कर देख रहे हैं। क्योंकि पूर्व में पुरातत्वविद पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर सिंधु घाटी सभ्यता एवं उत्तराखण्ड के पारस्परिक सम्बन्धों को रेखांकित कर चुके हैं। इस दुर्लभ प्रतिमा का प्रकाशन रोम से प्रकाशित प्रतिष्ठित शोध पत्रिका ईस्ट एंड वैस्ट के नवीनतम अंक में हुआ है। जो इसके पुरातात्विक महत्व को दर्शाता है।

उत्तराखण्ड की यमुना घाटी पुरासंपदा की दृष्टि से अत्यंत समृद्ध है। इस क्षेत्र में पूर्व से ही कालसी स्थित अशोक महान का शिलालेख जगतग्राम एवं पुरोला की अश्वमेघ यज्ञ की ईंटों की वेदियां तथा लाखामण्डल के देवालय समूह विश्वविख्यात हैं। दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र के तत्वावधान में पुरातत्व से जुड़े शोधार्थियों द्वारा हाल में ही इस क्षेत्र से कई अन्य महत्वपूर्ण पुरातत्त्वीय अवशेष खोजे गये हैं जो कि शोध पत्रिकाओं में प्रकाशनाधीन भी है।

सिंधु घाटी सभ्यता और उत्तराखण्ड के परस्पर संबंधों के अनेक महत्वपूर्ण बिंदुओं पर सुपरिचित पुरातत्वविद और दून पुस्तकालय एवम् शोध केन्द्र के मानद फैलो प्रो महेश्वर प्रसाद जोशी ने विस्तार से प्रकाश डाला और उत्तराखंड पुरातत्व से जुड़े अनेक बिंदुओं की महत्वपूर्ण जानकारी साझा की।

दून पुस्तकालय एवम् शोध केन्द्र के निदेशक प्रो बीके जोशी ने संस्थान के पुस्तकालय तथा शोधप्रभाग द्वारा आयोजित महत्वपूर्ण सेमिनार तथा अन्य गतिविधियों साथ ही प्रकाशन के संदर्भ में जानकारी दी। उन्होंने यह भी बताया कि संस्थान द्वारा उत्तराखण्ड हिमालय के इतिहास, पुरातत्व, समाज व संस्कृति से जुड़े विविध अनछुए पहलुओं को प्रतिष्ठित शोधार्थियों/अध्येताओं व संस्थानों के साथ मिलकर उजागर करने का प्रयास किया जा रहा है। किसी भी क्षेत्र विशेष की समृद्ध ऐतिहासिक विरासत को गहराई से समझने के लिए पुरातात्विक साक्ष्य, भाषा तथा जैनिटिक विज्ञान का गहन अध्ययन करने की आवश्यकता होती हैं।