उत्‍तराखंड में महसूस किए गए भूकंप के झटके, रिक्टर पैमाने पर तीव्रता 4.6 मापी गई, चमोली रहा केंद्र

देहरादून :- उत्‍तराखंड के कई जिलों में आज सुबह भूकंप के तेज झटके महसूस किए गए। इससे लोग दहशत में आ गए और अपने घरों से बाहर निकल आए। लोगों का कहना है कि झटके काफी तेज थे। आज सुबह करीब पांच बजकर 59 मिनट पर उत्‍तराखंड में भूकंप आया। भूकंप का केंद्र चमोली जिले के जोशीमठ में रहा। यह धरती के पांच किमी अंदर आया। साथ ही इसकी तीव्रता रिक्‍टर स्‍केल पर 4.7 मैग्नीट्यूड दर्ज की गई। हालांकि अभी तक किसी भी जनपद से कोई भी जानमाल के नुकशान की खबर नहीं मिली है। भूकंप के झटकों का एहसास होते ही लोग घरों से बाहर आ गए। भूकंप की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 4.6 मापी गई है। रुद्रप्रयाग, बागेश्वर और उधम सिंह नगर में भी इसके तेज झटके महसूस किये गए।

शनिवार की सुबह चमोली की धरती भूकंप से कांप उठी। भूकंप का झटका तेज था, इससे लोग घरों से भी बाहर निकल गए। आज सुबह 5.59 बजे की धरती कांप उठी। भूकंप का केंद्र चमोली जिले के जोशीमठ में जमीन के भीतर करीब पांच किलोमीटर नीचे बताया जा रहा है। रिक्‍टर स्‍केल पर भूकंप की तीव्रता 4.7 मैग्नीट्यूड रही। भूकंप के तेज झटका चमोली के अलावा अन्य जिलों में महसूस किए गए। हालांकि अभी भूकंप से नुकसान की कोई सूचना नहीं है। जिलाधिकारी हिमांशु खुराना ने बताया कि जिले में भूकंप से नुकसान की सूचना नहीं है। तहसीलों से रिपोर्ट मांगी गई है । आपदा प्रबंधन अधिकारी नंद किशोर जोशी ने कहा कि भूकंप के बाद विभाग अलर्ट है।

उत्‍तराखंड भूकंप की दृष्‍टि से संवेदनशील राज्‍य है। यहां 50 सालों (वर्ष 1968 से 2018 ) में करीब 426 बार भूकंप के झटके महसूस किए हैं। वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के विज्ञानी के अनुसार, इन भूकंप से मात्र पांच फीसद ही भूकंपीय ऊर्जा धरती से बाहर आई है। इसका मतलब साफ है कि यहां आठ रिक्‍टर स्‍केल के भूकंप आने की आशंका बनी हुई है।

पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने इंटरनेट मीडिया पर अपनी पोस्ट के जरिये कहा कि खांटी भाजपाई-संघी खून के आंसू रोएंगे।

देहरादून। पूर्व मुख्यमंत्री एवं प्रदेश कांग्रेस चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष हरीश रावत ने इंटरनेट मीडिया पर अपनी पोस्ट से प्रदेश भाजपा में विधायकों और मंत्रियों की पार्टी कार्यकर्त्‍ताओं के साथ गर्मागर्मी पर सवाल खड़े किए। भाजपा में शामिल हुए कांग्रेस के बागियों को निशाने पर लेते हुए उन्होंने कहा कि अभी तो भाजपाई केवल रो रहे हैं। आने वाले दिनों में खांटी भाजपाई और संघी सब खून के आंसू रोएंगे।

इंटरनेट मीडिया पर अपनी पोस्ट में हरीश रावत ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा में गए नेताओं और सत्तारूढ़ दल के कार्यकर्त्‍ताओं के बीच बीते दिनों हुए विवाद पर सख्त टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि जिस दल से दल-बदल होता है, वह केवल एक बार रोता है। दल-बदल करने वाले जिस दल में जाते हैं, वह कई बार रोता है। भाजपा की स्थिति अब ‘बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से खाएं’ सरीखी है। जो पार्टी अपने अनुशासन को सराहते हुए अघाती नहीं थी, उसके अनुशासन की धज्जियां उड़ रही हैं।

उत्तराखंड: राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने गुरमीत सिंह को बनाया राज्यपाल, उत्तराखंड को पहली बार मिला पूर्व सैन्य अधिकारी गवर्नर

उत्तराखंड के नए राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (सेनि) को परम विशिष्ट सेवा मेडल, युद्ध सेवा मेडल, अति विशिष्ट सेवा मेडल, विशिष्ट सेवा मेडल जैसे महत्वपूर्ण फौजी सम्मानों से अलंकृत किया जा चुका है।

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने गुरुवार शाम कई प्रदेशों में नए राज्यपालों की नियुक्ति कर दी। राष्ट्रपति कार्यालय की वेबसाइट पर उपलब्ध प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक बेबी रानी मौर्य के इस्तीफे के बाद लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (सेनि.) को उत्तराखंड का नया राज्यपाल बनाया गया है।

राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने उत्तराखंड की राज्यपाल बेबी रानी मौर्या का इस्तीफा गुरुवार को स्वीकार कर लिया। लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) गुरमीत सिंह को उत्तराखंड के गवर्नर की कमान सौंप दी है। ले.ज. सिंह राज्य के आठवें राज्यपाल होंगे। प्रथम राज्यपाल सुरजीत सिंह बरनाला के बाद ले.ज. सिंह प्रदेश के दसूरे सिख राज्यपाल हैं। साथ ही वह वरिष्ठ पूर्व सैन्य अफसर भी रह चुके हैं। सेना के पूर्व ऑफिसर को राज्यपाल बनाकर भाजपा राजनीतिक रूप से बड़ा संदेश देने की कोशिश की है।

गुरूवार देर रात केंद्र सरकार ने लंबे मंथन के बाद लेफ्टिनेट जनरल सिंह के नाम पर मुहर लगाई। वर्तमान राजनीतिक माहौल के लिहाज से लेफ्टिनेट जनरल का नाम उत्तराखंड की राजनीति के लिए बिलकुल सटीक भी बैठता है। किसान आंदोलन की वजह से राज्य के मैदानी- तराई भाबर क्षेत्र में किसान आंदोलित हैं। खासकर यूएसनगर में किसान आंदोलन में अधिक सक्रिय हैं। लेफ्टिनेट जनरल की नियुक्ति के जरिए भाजपा ने किसानों के बड़े समुदाय का प्रतिनिधित्व कर रहे सिखों को लुभाने की कोशिश की।

तो दूसरी ओर राज्य के हर चुनाव में अहम भूमिका अदा करने वाले सैनिक वोटरों में भी इस फैसले का दूर तक असर जाने की उम्मीद है। यह भी उल्लेखनीय है कि पूर्व सैनिक बहुल उत्तराखंड में पहली बार किसी पूर्व सैन्य अधिकारी को बतौर राज्यपाल नियुक्त किया गया है। राज्य में पौने दो लाख पूर्व सैनिक परिवार हैं। जबकि सेवारत सैनिकों की संख्या भी 90 हजार के करीब है। लेफ्टिनेट जनरल के जरिए भाजपा ने उत्तराखंड के सैन्य सेंटीमेंट को छूने की बाखूबी कोशिश की है।

बनवारी लाल पुरोहित को पंजाब के राज्यपाल
वहीं, तमिलनाडु के राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित को पंजाब का राज्यपाल बनाया गया है। जबकि नागालैंड के राज्यपाल आरएन रवि को तमिलनाडु का राज्यपाल बनाया गया है।

जगदीश मुखी को नागालैंड का अतिरिक्त प्रभार
असम के राज्यपाल जगदीश मुखी को नागालैंड का अतिरिक्त प्रभार दिया गया है।

उत्तराखंड :- धनोल्टी से वर्तमान निर्दलीय विधायक प्रीतम सिंह पंवार नई दिल्ली में भाजपा की सदस्यता ग्रहण करेंगे।

देहरादून :- धनोल्टी से वर्तमान निर्दलीय विधायक प्रीतम सिंह पंवार भाजपा में शामिल हो गए है, 2017 के चुनावों में मोदी लहर के बीच जीत दर्ज करने वाले निर्दलीय प्रत्याशी रहे प्रीतम सिंह पंवार ने सरकार के साथ शामिल होने बजाय विपक्ष में बैठना उचित समझा लेकिन अब चुनाव से पहले वो भाजपा में शामिल हो गए है मन जा रहा है कि अनिल बलूनी ने उनकी एंट्री भाजपा में करवाई है।

उत्तराखंड में आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर भाजपा ने बड़ा दांव चला है। धनोल्टी के निर्दलीय विधायक प्रीतम सिंह पंवार को पार्टी अपने पाले में लाने में कामयाब रही है। बुधवार को विधायक प्रीतम सिंह पंवार ने नई दिल्ली में भाजपा की सदस्यता ग्रहण की। केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी और उत्तराखंड भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक ने उन्हें सदस्यता ग्रहण कराई। बता दें कि प्रीतम उत्तराखंड क्रांति दल (यूकेडी) से भी मंत्री रह चुके हैं। उन पर कांग्रेस की भी नजर थी।

प्रीतम सिंह पंवार ने कहा कि मैं खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहा हूं कि देश की सबसे बड़ी पार्टी में शामिल हुआ हूं। मैं धार्मिक प्रदेश से हूं, जहां चारधाम हैं, देवी देवताओं का वास है। पीएम मोदी का नाता भी देवभूमि से रहा है। जिस तरह से उनकी धार्मिक आस्था देवभूमि से जुड़ी हैं उससे निश्चित तौर पर प्रदेश का विकास होगा।

उत्तराखंड: राज्यपाल बेबीरानी मौर्य ने दिया इस्तीफा, यूपी चुनाव में बीजेपी के टिकट से चुनाव लड़ने की चर्चा

उत्तराखंड की राज्यपाल बेबी रानी मौर्य ने उनका कार्यकाल पूरा होने के बाद बुधवार को अपना इस्तीफा दे दिया है। राज्यपाल ने अपना इस्तीफा राष्ट्रपति को सौंपा है।बेनीरानी मौर्य उत्तराखंड की राज्यपाल के तौर पर बीती 26 अगस्त को अपने तीन साल का कार्यकाल पूरा कर चुकी हैं।राज्यपाल बेबी रानी मौर्य ने मीडिया से बातचीत करते हुए अपने 3 साल के कार्यकाल की जानकारी दी थी।

हाल ही में बेबीरानी मौर्य राज्यपाल पद पर तीन साल का कार्यकाल पूरा होने के बाद मीडिया से रूबरू हुई थीं। उन्होंने प्रदेश में महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के मुद्दों पर जोर दिया था। उनका कहना था कि प्रदेश की महिलाएं मेहनती और जुझारू हैं। महिलाओं को राजभवन से जो बेहतर सहयोग किया जा सकता है उसके लिए आगे भी ठोस प्रयास किए जाएंगे।

राजनीतिक गलियारों में इस बात की भी चर्चा है कि राजपाल बेबी रानी मौर्य आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर उत्तर प्रदेश राजनीति में सक्रिय होना चाहती हैं।दो दिन पहले नई दिल्ली में गृह मंत्री अमित शाह के साथ मुलाकात के बाद से ही उनके इस्तीफा देने की चर्चाएं तेज होने लगी थीं। उन्हें उत्तर प्रदेश बीजेपी में बड़ी जिम्मेदारी देने की चर्चाएं हैं। वहीं, अब प्रदेश के नए राज्यपाल की जिम्मेदारी किसे मिलेगी इसको लेकर भी चर्चा शुरू हो गई है।

पहाड़ी उत्पादों को भी मिलेगी पहचान,जानिए उत्तराखंड सरकार का फसलों की मार्केटिंग को का प्लान

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने राज्य के कृषि और बागवानी फसलों के वितरण के लिए एक मार्केटिंग कंपनी बनाने के निर्देश दिए। सीएम ने कृषि और उद्यान विभाग की समीक्षा करते हुए फल-सब्जी उत्पादन पर जोर दिया। साथ ही खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना में तेजी लाने समेत कई निर्देश दिए। सीएम ने कहा कि कृषि-बागवानी की योजनाओं को प्रभावी ढंग से लागू करने पर स्वरोजगार के अवसर बढ़ेंगे।

कृषि सचिव आर. मीनाक्षी सुन्दरम ने प्रस्तुतिकरण के जरिए से विभागीय प्रगति एवं कार्यकलापों की जानकारी दी। बैठक में कृषि उद्यान मंत्री सुबोध उनियाल, मुख्य सचिव डॉ. एसएस सन्धु, एसीएस आनंदवर्द्धन, सचिव शैलेश बगोली आदि मौजूद रहे। उधर, शिक्षा क्षेत्र के लिए सीएम द्वारा की गई घोषणाओं की एसीएस आनंदवर्द्धन ने मंगलवार को समीक्षा की। इस दौरान सामने आया कि 155 घोषणाओं में 120 पूरी हो चुकी हैं। शेष 35 में से 31 पर कार्रवाई चल रही है जबकि चार को निरस्त किया जा रहा है।

राज्य गठन के बीस वर्ष बीतने के बाद भी उत्तराखंड राज्य राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय से वंचित क्यों?

देहरादून :उत्तर प्रदेश से अलग होकर पृथक प्रदेश के रूप में उत्तराखंड का गठन हुए 20 वर्ष व्यतीत हो चुके हैं। उत्तराखंड को राज्य घोषित करने के लिए व्यापक आंदोलन चलाया गया क्योंकि पहाड़ की जनता उत्तर प्रदेश मैं खुद को उपेक्षित महसूस कर रही थी। अपने सपनों के उत्तराखंड की मांग को लेकर जनान्दोलन चलाया गया और शहादत भी दी गई परंतु आज 20 वर्ष बाद यहां की जनता खुद को ठगा महसूस कर रही है। राज्य गठन के बाद पहाड़ी क्षेत्र के लोगों को लगता था छोटा राज्य होने के कारण इसका समुचित विकास होगा लेकिन दुर्भाग्यवश ऐसा नहीं हो पाया। 20 वर्ष बाद भी एक नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी की स्थापना तक नहीं हो पाई जिसके कारण विधि की पढ़ाई करने के इच्छुक छात्रों को अन्य राज्यों के विश्वविद्यालयों का रुख करना पड़ रहा है जिससे इस राज्य के विद्यार्थियों को घोर परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।

उक्त संबंध में वर्ष 2011 में उत्तराखंड विधानसभा में एक प्रस्ताव पास कर उत्तराखंड विधि विश्वविद्यालय का गठन करने की घोषणा की गई।उत्तराखंड के नैनीताल जिले में स्थित भवाली में उत्तराखंड विश्वविद्यालय स्थापित करने का निर्णय लिया गया परंतु यह केवल घोषणा तक ही सीमित रह गया और धरातल पर कोई कार्य नहीं हुआ।उक्त संबंध में माननीय उच्च न्यायालय उत्तराखंड नैनीताल में सन 2014 में दो जनहित याचिका प्रस्तुत की गई जिसमें उत्तराखंड में विधि विश्वविद्यालय के गठन  सम्बंधी समुचित आदेश पारित करने का निवेदन किया गया परंतु कुछ नहीं हुआ।तदोपरान्त सन् 2018 में राज्य सरकार द्वारा उत्तराखंड राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम की धारा 3(4) मैं संशोधन किया गया जिसके अनुसार उत्तराखंड विधि विश्वविद्यालय का मुख्यालय राज्य सरकार द्वारा निर्धारित स्थानों के चयन के बाद सुनिश्चित करने का निर्णय किया गया। उक्त संबंध में दिनांक 13-04-2018 को राज्य के आफिसियक गजट में उक्त संशोधन को घोषित किया गया उत्तराखंड राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम 2011 के 7 वर्ष के बाद भी राज्य सरकार द्वारा मुख्यालय के लिए स्थल चयन का कार्य नहीं पूर्ण हो सका। इन परिस्थितियों के मध्य नजर माननीय उच्च न्यायालय ने 2014 में दाखिल दो जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए दिनांक 19-06-2018 को निम्न आदेश पारित किए गये-

1. यह कि राज्य सरकार उक्त आदेश के 3 महीने के अन्दर राज्य विधि विश्वविद्यालय प्रारंभ करें।

2. यह कि राज्य सरकार को निर्देश दिए गए कि वह उक्त विश्वविद्यालय किसी सरकारी बिल्डिंग में या किसी प्राइवेट भवन में समुचित किराए पर लेकर भी विश्वविद्यालय प्रारंभ कर सकता है।

3. यह कि राज्य सरकार तराई क्षेत्र को प्राथमिकता देते हुए उधम सिंह नगर या अन्य तराई क्षेत्र में 1800 एकड़ भूमि का चयन करके निर्माण कार्य प्रारंभ करें।

4. कि उक्त विश्वविद्यालय में सितंबर 2018 से शैक्षणिक सत्र प्रारंभ कर दिया जाए और इसके लिए आवश्यक अनुमति यों को बार काउंसलिंग ऑफ इंडिया शीघ्राति शीघ्र प्राप्त कर लिया जाए।

5. यह के आदेश की तिथि के 1 महीने के अंदर विश्वविद्यालय अधिनियम का  विनियमन तैयार करें क्योंकि अभी तक उक्त अधिनियम हेतु आवश्यक विनियमन तक नहीं पारित किए गए हैं इसके लिए 1 महीने की समय सीमा माननीय उच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित की गई।

इसके अतिरिक्त यह भी निर्देश दिए गए कि विश्वविद्यालय अधिनियम के अधीन सभी नियुक्तियां जिसमें शैक्षणिक और प्रशासनिक शामिल हैं आदेश के 3 महीने के अंदर पूरी कर ली जाये।परंतु दुर्भाग्यवश 10 वर्ष बीत जाने के बाद भी अभी तक उक्त संबंध में कोई समुचित कार्यवाही नहीं की गई हालांकि माननीय राज्यपाल उत्तराखंड द्वारा दिनांक 13-02-2019 को एक अधिसूचना जारी करते हुए यह कहा कि उत्तराखंड के देहरादून जिले में रानी पोखरी में नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी का मुख्यालय बनाया जाए।

माननीय उच्च न्यायालय के आदेशों का अनुपालन न करने के कारण माननीय उच्च न्यायालय में सन 2019 को न्यायालय की अवमानना के बाद दायर किया गया जिस के परीक्षण के बाद न्यायालय ने यह स्थापित किया कि 19-06-2018 को पारित आदेशों का अनुपालन नहीं किया गया मात्र 13-02-2018 को माननीय राज्यपाल उत्तराखंड द्वारा अधिसूचना जारी कर दिया गया लेकिन कोई कार्य नहीं किया गया।

उक्त अवमानना  याचिका के विरुद्ध में राज्य सरकार सुप्रीम न्यायलय में समीक्षा याचिका दायर की जिसके परीक्षण के उपरान्त सर्वोंच्च न्यायलय ने उच्च न्यायलय नैनीताल के आदेश पर स्थगनादेश पारित किया।

किसी भी राज्य सरकार की यह जिम्मेदारी होती है कि वह राज्य में मूलभूत इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करें। जिसमें स्वास्थ्य शिक्षा और आजीविका अनिवार्य क्षेत्र हैं परंतु दुर्भाग्यवश ऐसा इस नवगठित राज्य में होता नहीं दिख रहा है।शिक्षा के क्षेत्र में यह राज्य पिछड़ता चला जा रहा है अन्य राज्यों से तुलना करें तो उत्तराखंड में नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी एक्ट 2011 में विधानसभा में पारित किया गया तब से अन्य राज्यों में 9 एन एल यू स्थापित किए जा चुके हैं जिनमें नव गठित राज्य छत्तीसगढ़ झारखंड और हिमाचल अपने राज्य में इसकी स्थापना कर चुके हैं।

किसी भी राज्य में राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय की स्थापना कितनी महत्वपूर्ण है इसका वर्णन राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय अधिनियम में किया गया है।

1. राष्ट्रीय विकास के लिए कानून कानूनी शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिए।

2.सामाजिक परिवर्तन के लिए एक माध्यम के रूप में कानूनी प्रक्रिया बनाने के लिए कानून के ज्ञान को प्रोत्साहित करना।

3. विधिक क्षेत्र में सामाजिक उत्तरदायित्व के लिए एक भावना विकसित करने और कानूनी क्षेत्र में छात्रों और शोधों को अमल में लाने के लिए विधिक कौशल को विकसित करना।

इन उद्देश्यों को विकसित करने में उत्तराखंड की सरकार विफल रही है जनहित की अपेक्षा करके केवल अपने हितों की पूर्ति मैं संलग्न होने की राजनेताओं की प्रवृत्ति इस राज्य के विकास की सबसे बड़ी बाधा है।

राज्य में नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी का महत्व इस बात से समझा जा सकता है कि इसके गठन से इस राज्य के विद्यार्थियों को अपने राज्य के विश्वविद्यालय में आरक्षण मिलता है इसके अतिरिक्त गुणवत्ता पूर्व कानूनी शिक्षा मिलने से यहां के युवाओं को रोजगार के अतिरिक्त सरकार समाज और कंपनियों के लिए भी सक्षम नेतृत्व प्रदान करने का अवसर मिलेगा जो इस दुर्गम और पिछड़े प्रदेश के लिए प्राथमिकता समझा जाना चाहिए परंतु इस क्षेत्र में इस संबंध में सार्थक पहल अभी तक इंतजार है।

राज्य गठन के बीस वर्ष बीतने के बाद भी उत्तराखंड राज्य राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय से वंचित क्यों?

देहरादून :- उत्तर प्रदेश से अलग होकर पृथक प्रदेश के रूप में उत्तराखंड का गठन हुए 20 वर्ष व्यतीत हो चुके हैं। उत्तराखंड को राज्य घोषित करने के लिए व्यापक आंदोलन चलाया गया क्योंकि पहाड़ की जनता उत्तर प्रदेश मैं खुद को उपेक्षित महसूस कर रही थी। अपने सपनों के उत्तराखंड की मांग को लेकर जनान्दोलन चलाया गया और शहादत भी दी गई परंतु आज 20 वर्ष बाद यहां की जनता खुद को ठगा महसूस कर रही है। राज्य गठन के बाद पहाड़ी क्षेत्र के लोगों को लगता था छोटा राज्य होने के कारण इसका समुचित विकास होगा लेकिन दुर्भाग्यवश ऐसा नहीं हो पाया। 20 वर्ष बाद भी एक नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी की स्थापना तक नहीं हो पाई जिसके कारण विधि की पढ़ाई करने के इच्छुक छात्रों को अन्य राज्यों के विश्वविद्यालयों का रुख करना पड़ रहा है जिससे इस राज्य के विद्यार्थियों को घोर परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।

उक्त संबंध में वर्ष 2011 में उत्तराखंड विधानसभा में एक प्रस्ताव पास कर उत्तराखंड विधि विश्वविद्यालय का गठन करने की घोषणा की गई।उत्तराखंड के नैनीताल जिले में स्थित भवाली में उत्तराखंड विश्वविद्यालय स्थापित करने का निर्णय लिया गया परंतु यह केवल घोषणा तक ही सीमित रह गया और धरातल पर कोई कार्य नहीं हुआ।उक्त संबंध में माननीय उच्च न्यायालय उत्तराखंड नैनीताल में सन 2014 में दो जनहित याचिका प्रस्तुत की गई जिसमें उत्तराखंड में विधि विश्वविद्यालय के गठन  सम्बंधी समुचित आदेश पारित करने का निवेदन किया गया परंतु कुछ नहीं हुआ।तदोपरान्त सन् 2018 में राज्य सरकार द्वारा उत्तराखंड राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम की धारा 3(4) मैं संशोधन किया गया जिसके अनुसार उत्तराखंड विधि विश्वविद्यालय का मुख्यालय राज्य सरकार द्वारा निर्धारित स्थानों के चयन के बाद सुनिश्चित करने का निर्णय किया गया। उक्त संबंध में दिनांक 13-04-2018 को राज्य के आफिसियक गजट में उक्त संशोधन को घोषित किया गया उत्तराखंड राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम 2011 के 7 वर्ष के बाद भी राज्य सरकार द्वारा मुख्यालय के लिए स्थल चयन का कार्य नहीं पूर्ण हो सका। इन परिस्थितियों के मध्य नजर माननीय उच्च न्यायालय ने 2014 में दाखिल दो जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए दिनांक 19-06-2018 को निम्न आदेश पारित किए गये-

1. यह कि राज्य सरकार उक्त आदेश के 3 महीने के अन्दर राज्य विधि विश्वविद्यालय प्रारंभ करें।

2. यह कि राज्य सरकार को निर्देश दिए गए कि वह उक्त विश्वविद्यालय किसी सरकारी बिल्डिंग में या किसी प्राइवेट भवन में समुचित किराए पर लेकर भी विश्वविद्यालय प्रारंभ कर सकता है।

3. यह कि राज्य सरकार तराई क्षेत्र को प्राथमिकता देते हुए उधम सिंह नगर या अन्य तराई क्षेत्र में 1800 एकड़ भूमि का चयन करके निर्माण कार्य प्रारंभ करें।

4. कि उक्त विश्वविद्यालय में सितंबर 2018 से शैक्षणिक सत्र प्रारंभ कर दिया जाए और इसके लिए आवश्यक अनुमति यों को बार काउंसलिंग ऑफ इंडिया शीघ्राति शीघ्र प्राप्त कर लिया जाए।

5. यह के आदेश की तिथि के 1 महीने के अंदर विश्वविद्यालय अधिनियम का  विनियमन तैयार करें क्योंकि अभी तक उक्त अधिनियम हेतु आवश्यक विनियमन तक नहीं पारित किए गए हैं इसके लिए 1 महीने की समय सीमा माननीय उच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित की गई।

इसके अतिरिक्त यह भी निर्देश दिए गए कि विश्वविद्यालय अधिनियम के अधीन सभी नियुक्तियां जिसमें शैक्षणिक और प्रशासनिक शामिल हैं आदेश के 3 महीने के अंदर पूरी कर ली जाये।परंतु दुर्भाग्यवश 10 वर्ष बीत जाने के बाद भी अभी तक उक्त संबंध में कोई समुचित कार्यवाही नहीं की गई हालांकि माननीय राज्यपाल उत्तराखंड द्वारा दिनांक 13-02-2019 को एक अधिसूचना जारी करते हुए यह कहा कि उत्तराखंड के देहरादून जिले में रानी पोखरी में नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी का मुख्यालय बनाया जाए।

माननीय उच्च न्यायालय के आदेशों का अनुपालन न करने के कारण माननीय उच्च न्यायालय में सन 2019 को न्यायालय की अवमानना के बाद दायर किया गया जिस के परीक्षण के बाद न्यायालय ने यह स्थापित किया कि 19-06-2018 को पारित आदेशों का अनुपालन नहीं किया गया मात्र 13-02-2018 को माननीय राज्यपाल उत्तराखंड द्वारा अधिसूचना जारी कर दिया गया लेकिन कोई कार्य नहीं किया गया।

उक्त अवमानना  याचिका के विरुद्ध में राज्य सरकार सुप्रीम न्यायलय में समीक्षा याचिका दायर की जिसके परीक्षण के उपरान्त सर्वोंच्च न्यायलय ने उच्च न्यायलय नैनीताल के आदेश पर स्थगनादेश पारित किया।

किसी भी राज्य सरकार की यह जिम्मेदारी होती है कि वह राज्य में मूलभूत इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करें। जिसमें स्वास्थ्य शिक्षा और आजीविका अनिवार्य क्षेत्र हैं परंतु दुर्भाग्यवश ऐसा इस नवगठित राज्य में होता नहीं दिख रहा है।शिक्षा के क्षेत्र में यह राज्य पिछड़ता चला जा रहा है अन्य राज्यों से तुलना करें तो उत्तराखंड में नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी एक्ट 2011 में विधानसभा में पारित किया गया तब से अन्य राज्यों में 9 एन एल यू स्थापित किए जा चुके हैं जिनमें नव गठित राज्य छत्तीसगढ़ झारखंड और हिमाचल अपने राज्य में इसकी स्थापना कर चुके हैं।

किसी भी राज्य में राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय की स्थापना कितनी महत्वपूर्ण है इसका वर्णन राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय अधिनियम में किया गया है।

1. राष्ट्रीय विकास के लिए कानून कानूनी शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिए।

2.सामाजिक परिवर्तन के लिए एक माध्यम के रूप में कानूनी प्रक्रिया बनाने के लिए कानून के ज्ञान को प्रोत्साहित करना।

3. विधिक क्षेत्र में सामाजिक उत्तरदायित्व के लिए एक भावना विकसित करने और कानूनी क्षेत्र में छात्रों और शोधों को अमल में लाने के लिए विधिक कौशल को विकसित करना।

इन उद्देश्यों को विकसित करने में उत्तराखंड की सरकार विफल रही है जनहित की अपेक्षा करके केवल अपने हितों की पूर्ति मैं संलग्न होने की राजनेताओं की प्रवृत्ति इस राज्य के विकास की सबसे बड़ी बाधा है।

राज्य में नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी का महत्व इस बात से समझा जा सकता है कि इसके गठन से इस राज्य के विद्यार्थियों को अपने राज्य के विश्वविद्यालय में आरक्षण मिलता है इसके अतिरिक्त गुणवत्ता पूर्व कानूनी शिक्षा मिलने से यहां के युवाओं को रोजगार के अतिरिक्त सरकार समाज और कंपनियों के लिए भी सक्षम नेतृत्व प्रदान करने का अवसर मिलेगा जो इस दुर्गम और पिछड़े प्रदेश के लिए प्राथमिकता समझा जाना चाहिए परंतु इस क्षेत्र में इस संबंध में सार्थक पहल अभी तक इंतजार है।

अटल उत्कृष्ट स्कूल को सीबीएसई ने मान्यता देने से किया इंकार, सूत्रों के अनुसार अधूरे मानकों की वजह से सीबीएसई ने आवेदन को स्वीकार नहीं

उत्तराखंड के अटल उत्कृष्ट स्कूलों में 16 को सीबीएसई से मान्यता हासिल नहीं हो पाई। 189 चयनित अटल स्कूलों में केवल 172 ही विधिवत सीबीएसई से मान्य हो पाए हैं। सूत्रों के अनुसार अधूरे मानकों की वजह से सीबीएसई ने आवेदन को स्वीकार नहीं किया। इन स्कूलों को मान्यता दिलाने के लिए नए सिरे से कोशिश शुरू की गई है। मान्यता का पोर्टल खुलने पर दोबारा अर्जी लगाई जाएगी।

प्राइवेट स्कूलों की तर्ज पर विकसित किए जा रहे अटल स्कूल सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकताओं में शामिल हैं। इन स्कूलों में छात्रों के सभी प्रकार की फीस आदि का पूरा खर्च सरकार खुद ही उठा रही है।संपर्क करने पर शिक्षा मंत्री अरविंद पांडेय ने कहा कि, अटल उत्कृष्ट स्कूलों की मान्यता पर प्रक्रिया जारी है। शेष 16 की मान्यता भी जल्द ही जारी हो जाएगी। इनकी सभी औपचारिकताएं पूरी की जा चुकी हैूं।

चयन आयोग की विश्वसनीयता पर आंच, बेरोजगार संघ कह रहा की ऑनलाइन भर्ती प्रक्रिया हेतु चयनित कंपनी ब्लैक लिस्टेड है, सरकार कराए जांच- मोर्चा

प्रदेश में बेरोजगारों के साथ इस तरह के विरोधाभास के चलते असमंजस की स्थिति बनी हुई है तथा बेरोजगारों में अपने भविष्य को लेकर चिंता बनी हुई है |

चयन आयोग कह रहा सब कुछ है ठीक ! बेरोजगारों की शंका दूर कर उनके रोजगार संबंधी मार्ग प्रशस्त करने का काम करे शीघ्र करे सरकार |

जन संघर्ष मोर्चा अध्यक्ष एवं जीएमवीएन के पूर्व उपाध्यक्ष रघुनाथ सिंह नेगी ने कहा कि कुछ दिनों से बेरोजगार संघ अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की कार्यप्रणाली एवं उसके द्वारा ऑनलाइन भर्ती प्रक्रिया हेतु चयनित कंपनी को लेकर विवाद चल रहा है, जो कि अपने आप में बहुत कुछ बयान कर रहा है | कहीं ऐसा तो नहीं कि भर्ती करने वाली कंपनी एवं चयन आयोग की जुगलबंदी युवा बेरोजगारों को छलने का काम तो नहीं कर रही | नेगी ने कहा कि एक तरफ बेरोजगार संघ कह रहा है कि भर्ती करने वाली कंपनी ब्लैक लिस्टेड है तथा दूसरी ओर चयन आयोग के सचिव का कहना है कि पूरी पारदर्शिता के साथ भर्ती प्रक्रिया संपन्न कराई जा रही है तथा कंपनी कहीं भी ब्लैक लिस्टेड नहीं है | नेगी ने कहा कि प्रदेश में बेरोजगारों के साथ इस तरह के विरोधाभास के चलते असमंजस की स्थिति बनी हुई है तथा बेरोजगारों में अपने भविष्य को लेकर चिंता बनी हुई है | मोर्चा सरकार से मांग करता है कि उक्त मामले में शीघ्र ही बेरोजगारों की शंका दूर कर उनके रोजगार संबंधी मार्ग प्रशस्त करने का काम करे |