चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड के संबंध में उत्तराखंड सरकार द्वारा गठित उच्चस्तरीय समिति ने सोमवार को समिति के अध्यक्ष ध्यानी ने मुख्यमंत्री धामी से सचिवालय में मुलाकात की और उन्हें देवस्थानम बोर्ड के संबंध में अंतरिम रिपोर्ट सौंपी।
समिति के अध्यक्ष ध्यानी ने कहा कि सरकार ने उन्हें यह बड़ी जिम्मेदारी सौंपी थी। रिपोर्ट के जरिये हमने सरकार का सही मार्गदर्शन करने के साथ अधिकारी ठीक ढंग से काम करें इसका उल्लेख किया है। साथ ही अधिनियम में जो त्रुटियां और अच्छाइयां हैं, उनका जिक्र भी रिपोर्ट में किया गया है।अभी इस बारे में कुछ सार्वजनिक नहीं किया गया है कि रिपोर्ट में समिति ने क्या सुझाव दिए हैं।लोगों के मन में यह सवाल है कि क्या देवस्थान बोर्ड को रद्द कर तीर्थ पुरोहितों और हक-हकूकधारियों की मांग पूरी की जाएगी।
गौरतलब है कि चारों हिमालयी धामों—बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री के तीर्थ पुरोहितों द्वारा देवस्थानम बोर्ड के विरोध में लंबे समय तक आंदोलनरत रहने के मद्देनजर धामी ने वरिष्ठ भाजपा नेता ध्यानी की अध्यक्षता में इस उच्चस्तरीय समिति का गठन किया था।
21 जुलाई को उत्तरकाशी दौरे में मुख्यमंत्री बनने के बाद यह घोषणा करते हुए पुष्कर सिंह धामी ने कहा था कि उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड अधिनियम के परीक्षण और उस पर ‘सकारात्मक संशोधन’ का सुझाव देने के लिए उच्च स्तरीय समिति गठित की जा रही है।उन्होंने कहा था कि यह समिति अधिनियम के विधिक पहलुओं का आकलन कर यह सुनिश्चित करेगी कि इससे चारधाम यात्रा से जुड़े हक—हकूकधारियों, पुजारियों तथा अन्य हितधारकों के पारंपरिक अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने समस्या के समाधान को पूर्व सांसद और पंडा-पुरोहित समाज से जुड़े मनोहर कांत ध्यानी की अध्यक्षता में उच्च स्तरीय समिति गठित की। समिति को तीन माह के भीतर अपनी रिपोर्ट सौंपनी थी। समिति ने चारधाम के हक-हकूकधारियों से बातचीत के बाद दो माह में ही अपनी अंतरिम रिपोर्ट तैयार कर ली।
लंबे समय से आंदोलनरत चारों धामों के तीर्थ पुरोहितों का मानना है कि बोर्ड का गठन उनके अधिकारों का हनन है।देवस्थानम अधिनियम पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के सरकार के कार्यकाल में पारित हुआ था जिसके तहत चार धामों सहित प्रदेश के 51 मंदिरों के प्रबंधन के लिए बोर्ड का गठन किया गया था। बोर्ड के गठन के बाद से ही चारधाम के तीर्थ पुरोहित और हक-हकूकधारी इसका विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि अधिनियम व बोर्ड के कारण उनके हितों को चोट पहुंची है। वे बोर्ड को भंग करने की मांग उठा रहे हैं।