उत्तराखंड : उत्तराखंड में कोरोना वायरस का संक्रमण तेजी से बढ़ रहा है। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (आईआईटी) रुड़की बना नया हॉटस्पॉट, 80 छात्रों को हुआ कोरोना

उत्तराखंड में कोरोना वायरस का संक्रमण तेजी से बढ़ रहा है। उत्तराखंड में स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (आईआईटी) रूड़की के 80 छात्र कोरोना की चपेट में आ चुके हैं जिसके बाद पांच हॉस्टल को सील कर दिया गया है और इन्हें कंटेनमेंट जोन घोषित किया गया है।
आईआईटी रूड़की की मीडिया सेल प्रभारी सोनिका श्रीवास्तव ने बताया कि एक हॉस्टल को कोविद केयर सेंटर में बदल दिया है। वहीं, आईआईटी रुड़की प्रशासन ने छात्रों को अपने कमरों में ही खुद को आइसोलेट करने के लिए निर्देश दिया है। आपको बता दें कि मंगलवार तक 60 छात्रों की कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी। फिर बुधवार को संस्थान में हरिद्वार जिला स्वास्थ्य विभाग द्वारा आयोजित आरटी-पीसीआर टेस्ट में 20 और छात्रों कोरोना पॉजिटिव पाए गए।

सोनिका श्रीवास्तव ने बताया कि इंस्टीट्यूट में 80 कोरोना पॉजिटिव छात्रों पाए जाने के बाद हरिद्वार जिला स्वास्थ्य विभाग ने कॉटले, कस्तूरबा, सरोजिनी, गोविंद भवन और विज्ञान कुंज नाम के पांच हॉस्टल को सील कर दिया है और इन्हें कंटेनमेंट जोन घोषित कर दिया है। उन्होंने बताया कि इंस्टीट्यूट में 3000 छात्र हैं जिसमें से लगभग 1200 छात्र इन 5 हॉस्टल में रहते हैं।

सोनिका ने आगे बताया कि जिला स्वास्थ्य विभाग की देखरेख में गंगा भवन हॉस्टल को कोविड केयर सेंटर के रूप में बदल दिया है जहां, संक्रमित छात्रों का इलाज किया जा रहा है। इसके अलावा, एक गेस्ट हाउस और एक अन्य प्रतिष्ठान को क्वारंटाइन सेंटर बनाया गया है।वहीं, हरिद्वार के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. एसके झा ने बताया कि हमने संक्रमण का पता लगाने के बाद इंस्टीट्यूट से लगभग 2000 छात्रों और कर्मचारियों के आरटी-पीसीआर नमूने लिए थे। मंगलवार तक, 60 छात्रों की रिपोर्ट पॉजिटिव आई और फिर बुधवार को 20 और छात्रों की रिपोर्ट में कोरोना संक्रमण पाया गया।

राज्य गठन के बीस वर्ष बीतने के बाद भी राज्य राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय से वंचित क्यों?

उत्तर प्रदेश से अलग होकर पृथक प्रदेश के रूप में उत्तराखंड का गठन हुए 20 वर्ष व्यतीत हो चुके हैं। उत्तराखंड को राज्य घोषित करने के लिए व्यापक आंदोलन चलाया गया क्योंकि पहाड़ की जनता उत्तर प्रदेश मैं खुद को उपेक्षित महसूस कर रही थी। अपने सपनों के उत्तराखंड की मांग को लेकर जनान्दोलन चलाया गया और शहादत भी दी गई परंतु आज 20 वर्ष बाद यहां की जनता खुद को ठगा महसूस कर रही है। राज्य गठन के बाद पहाड़ी क्षेत्र के लोगों को लगता था छोटा राज्य होने के कारण इसका समुचित विकास होगा लेकिन दुर्भाग्यवश ऐसा नहीं हो पाया। 20 वर्ष बाद भी एक नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी की स्थापना तक नहीं हो पाई जिसके कारण विधि की पढ़ाई करने के इच्छुक छात्रों को अन्य राज्यों के विश्वविद्यालयों का रुख करना पड़ रहा है जिससे इस राज्य के विद्यार्थियों को घोर परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।

उक्त संबंध में वर्ष 2011 में उत्तराखंड विधानसभा में एक प्रस्ताव पास कर उत्तराखंड विधि विश्वविद्यालय का गठन करने की घोषणा की गई।उत्तराखंड के नैनीताल जिले में स्थित भवाली में उत्तराखंड विश्वविद्यालय स्थापित करने का निर्णय लिया गया परंतु यह केवल घोषणा तक ही सीमित रह गया और धरातल पर कोई कार्य नहीं हुआ।उक्त संबंध में माननीय उच्च न्यायालय उत्तराखंड नैनीताल में सन 2014 में दो जनहित याचिका प्रस्तुत की गई जिसमें उत्तराखंड में विधि विश्वविद्यालय के गठन  सम्बंधी समुचित आदेश पारित करने का निवेदन किया गया परंतु कुछ नहीं हुआ।तदोपरान्त सन् 2018 में राज्य सरकार द्वारा उत्तराखंड राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम की धारा 3(4) मैं संशोधन किया गया जिसके अनुसार उत्तराखंड विधि विश्वविद्यालय का मुख्यालय राज्य सरकार द्वारा निर्धारित स्थानों के चयन के बाद सुनिश्चित करने का निर्णय किया गया। उक्त संबंध में दिनांक 13-04-2018 को राज्य के आफिसियक गजट में उक्त संशोधन को घोषित किया गया उत्तराखंड राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम 2011 के 7 वर्ष के बाद भी राज्य सरकार द्वारा मुख्यालय के लिए स्थल चयन का कार्य नहीं पूर्ण हो सका। इन परिस्थितियों के मध्य नजर माननीय उच्च न्यायालय ने 2014 में दाखिल दो जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए दिनांक 19-06-2018 को निम्न आदेश पारित किए गये-

  1. यह कि राज्य सरकार उक्त आदेश के 3 महीने के अन्दर राज्य विधि विश्वविद्यालय प्रारंभ करें।
  2. यह कि राज्य सरकार को निर्देश दिए गए कि वह उक्त विश्वविद्यालय किसी सरकारी बिल्डिंग में या किसी प्राइवेट भवन में समुचित किराए पर लेकर भी विश्वविद्यालय प्रारंभ कर सकता है।
  3. यह कि राज्य सरकार तराई क्षेत्र को प्राथमिकता देते हुए उधम सिंह नगर या अन्य तराई क्षेत्र में 1800 एकड़ भूमि का चयन करके निर्माण कार्य प्रारंभ करें।
  4. कि उक्त विश्वविद्यालय में सितंबर 2018 से शैक्षणिक सत्र प्रारंभ कर दिया जाए और इसके लिए आवश्यक अनुमति यों को बार काउंसलिंग ऑफ इंडिया शीघ्राति शीघ्र प्राप्त कर लिया जाए।
  5. यह के आदेश की तिथि के 1 महीने के अंदर विश्वविद्यालय अधिनियम का विनियमन तैयार करें क्योंकि अभी तक उक्त अधिनियम हेतु आवश्यक विनियमन तक नहीं पारित किए गए हैं इसके लिए 1 महीने की समय सीमा माननीय उच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित की गई।

इसके अतिरिक्त यह भी निर्देश दिए गए कि विश्वविद्यालय अधिनियम के अधीन सभी नियुक्तियां जिसमें शैक्षणिक और प्रशासनिक शामिल हैं आदेश के 3 महीने के अंदर पूरी कर ली जाये।परंतु दुर्भाग्यवश 10 वर्ष बीत जाने के बाद भी अभी तक उक्त संबंध में कोई समुचित कार्यवाही नहीं की गई हालांकि माननीय राज्यपाल उत्तराखंड द्वारा दिनांक 13-02-2019 को एक अधिसूचना जारी करते हुए यह कहा कि उत्तराखंड के देहरादून जिले में रानी पोखरी में नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी का मुख्यालय बनाया जाए।

माननीय उच्च न्यायालय के आदेशों का अनुपालन न करने के कारण माननीय उच्च न्यायालय में सन 2019 को न्यायालय की अवमानना के बाद दायर किया गया जिस के परीक्षण के बाद न्यायालय ने यह स्थापित किया कि 19-06-2018 को पारित आदेशों का अनुपालन नहीं किया गया मात्र 13-02-2018 को माननीय राज्यपाल उत्तराखंड द्वारा अधिसूचना जारी कर दिया गया लेकिन कोई कार्य नहीं किया गया।

उक्त अवमानना  याचिका के विरुद्ध में राज्य सरकार सुप्रीम न्यायलय में समीक्षा याचिका दायर की जिसके परीक्षण के उपरान्त सर्वोंच्च न्यायलय ने उच्च न्यायलय नैनीताल के आदेश पर स्थगनादेश पारित किया।

किसी भी राज्य सरकार की यह जिम्मेदारी होती है कि वह राज्य में मूलभूत इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करें। जिसमें स्वास्थ्य शिक्षा और आजीविका अनिवार्य क्षेत्र हैं परंतु दुर्भाग्यवश ऐसा इस नवगठित राज्य में होता नहीं दिख रहा है।शिक्षा के क्षेत्र में यह राज्य पिछड़ता चला जा रहा है अन्य राज्यों से तुलना करें तो उत्तराखंड में नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी एक्ट 2011 में विधानसभा में पारित किया गया तब से अन्य राज्यों में 9 एन एल यू स्थापित किए जा चुके हैं जिनमें नव गठित राज्य छत्तीसगढ़ झारखंड और हिमाचल अपने राज्य में इसकी स्थापना कर चुके हैं।

 

किसी भी राज्य में राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय की स्थापना कितनी महत्वपूर्ण है इसका वर्णन राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय अधिनियम में किया गया है।

  1. राष्ट्रीय विकास के लिए कानून कानूनी शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिए।

2.सामाजिक परिवर्तन के लिए एक माध्यम के रूप में कानूनी प्रक्रिया बनाने के लिए कानून के ज्ञान को प्रोत्साहित करना।

  1. विधिक क्षेत्र में सामाजिक उत्तरदायित्व के लिए एक भावना विकसित करने और कानूनी क्षेत्र में छात्रों और शोधों को अमल में लाने के लिए विधिक कौशल को विकसित करना।

इन उद्देश्यों को विकसित करने में उत्तराखंड की सरकार विफल रही है जनहित की अपेक्षा करके केवल अपने हितों की पूर्ति मैं संलग्न होने की राजनेताओं की प्रवृत्ति इस राज्य के विकास की सबसे बड़ी बाधा है।

राज्य में नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी का महत्व इस बात से समझा जा सकता है कि इसके गठन से इस राज्य के विद्यार्थियों को अपने राज्य के विश्वविद्यालय में आरक्षण मिलता है इसके अतिरिक्त गुणवत्ता पूर्व कानूनी शिक्षा मिलने से यहां के युवाओं को रोजगार के अतिरिक्त सरकार समाज और कंपनियों के लिए भी सक्षम नेतृत्व प्रदान करने का अवसर मिलेगा जो इस दुर्गम और पिछड़े प्रदेश के लिए प्राथमिकता समझा जाना चाहिए परंतु इस क्षेत्र में इस संबंध में सार्थक पहल अभी तक इंतजार है।

क्लैट के लिए आवेदन की तिथि को बढ़ाया गया है। अब 30 अप्रैल तक आवेदन कर सकते है।

कंसोर्टियम ऑफ नेशनल लॉ यूनिवर्सिटीज ने कॉमन लॉ ऐडमिशन टेस्ट-2021 (क्लैट) आवेदन तिथि बढ़ा दी गई है। लॉ में करियर बनाने के इच्छुक छात्र, छात्राएं 30 अप्रैल तक रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं। इससे पहले आवेदन की अंतिम तिथि 31 मार्च थी। परीक्षा 13 जून को आयोजित की जाएगी। यह परीक्षा देश के 22 राष्ट्रीय विधि विवि में प्रवेश के लिए आयोजित की जाती। यूजी कोर्स में दाखिले के लिए सामान्य व अन्य पिछड़ा वर्ग छात्रों के लिए 45 फीसदी और अनुसूचित जाति व जनजाति छात्रों के लिए 40 फीसदी अंको‌ के साथ 12वीं उत्तीर्ण होना आवश्यक है। इस दफा 12वीं की परीक्षा देने वाले छात्र-छात्राएं भी आवेदन कर सकते हैं। एलएलएम पाठ्यक्रम दाखिले के लिए 50 फीसद अंकों के साथ एलएलबी होना चाहिए। अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए 45 फीसद अंक बाध्यता है। लॉ प्रेप दून के निर्देशक (एकेडमिक) दिशा उपाध्याय ने बताया कि पूर्व में क्लैट ऑनलाइन कराया जाता था। ऑनलाइन में होने वाली तकनीकी दिक्कतों को देखते हुए परीक्षा ऑफलाइन मोड पर होने लगी है।पिछले साल कोरोनावायरस के कारण परीक्षा ऑनलाइन कराई गई। इस बार फिर परीक्षा ऑफलाइन कराने का फैसला लिया गया है। हालांकि कोरोनावायरस के मामलों को देखते हुए इसमें बदलाव भी किया जा सकता है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति का एक उद्देश्य भारत को 21वीं सदी में वैश्विक ज्ञान की महाशक्ति बनाना है और एनआईटी राउरकेला जैसे संस्थानों को इस राष्ट्रीय लक्ष्य की प्राप्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगीः राष्ट्रपति कोविंद राष्ट्रपति ने एनआईटी राउरकेला के 18वें वार्षिक दीक्षांत समारोह में शिरकत की

भारत के राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद का कहना है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति का एक उद्देश्य भारत को 21वीं सदी में वैश्विक ज्ञान की महाशक्ति बनाना है और एनआईटी राउरकेला जैसे संस्थानों को इस राष्ट्रीय लक्ष्य की प्राप्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी। वह ओडिशा के राउरकेला में आज (21 मार्च, 2021) एनआईटी राउरकेला के 18वें वार्षिक दीक्षांत समारोह को संबोधित कर रहे थे।

राष्ट्रपति ने कहा कि पूर्वी भारत में सरकार द्वारा संचालित दूसरे सबसे बड़े प्रौद्योगिकी संस्थान, एनआईटी राउरकेला ने इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। छह दशकों से ज्यादा समय से यह संस्थान देश में तकनीकी पेशेवरों के समूह को समृद्ध कर रहा है।

राष्ट्रपति ने इस तथ्य की ओर इशारा करते हुए कि एनआईटी राउरकेला में पूरे देश और अन्य देशों के छात्र भी हैं, कहा कि इस 700 एकड़ के कैम्पस में पढ़ रहे 7000 से अधिक छात्रों का समुदाय समृद्ध विविधता का प्रतिनिधित्व करता है। यह सीखने की प्रक्रिया को समृद्ध करता है और विभिन्न संस्कृतियों के बीच तालमेल को प्रोत्साहित करता है। यह राष्ट्रों के बीच लोगों से लोगों के संबंधों को भी मजबूत करता है।

तकनीकी शिक्षा में महिलाओं की कम भागीदारी के मुद्दे को उठाते हुए राष्ट्रपति ने बताया कि पूरे देश के जिन दीक्षांत समारोह में वह शामिल हुए हैं, उनमें से ज्यादातर में देखा कि छात्राएं छात्रों को लिबरल आर्ट्स, मानविकी, चिकित्सा विज्ञान, विधि और अन्य क्षेत्रों में पछाड़ रही हैं। फिर भी यह पाया गया कि प्रौद्योगिकी और वैज्ञानिक विषयों में महिलाओं का नामांकन कम है। एक हालिया सर्वे के मुताबिक, पूरे देश के इंजीनियरिंग और तकनीकी संस्थानों में महिलाओं का नामांकन केवल 20 प्रतिशत है। उन्होंने जोर दिया कि लड़कियों को तकनीकी शिक्षा और उसमें विशिष्टता ग्रहण करने के लिए उसी तरह प्रोत्साहित किया जाना चाहिए जैसे कि अन्य क्षेत्रों में वह कर रही हैं। उन्होंने कहा कि तकनीकी क्षेत्रों में महिलाओं की प्रगति और उत्कृष्टता राष्ट्रीय विकास में एक नया आयाम जोड़ेगी। यह विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उच्च स्तरों पर लैंगिक सशक्तिकरण को प्रोत्साहित करेगी। यह महिलाओं को 21वीं सदी की दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में से एक में मौजूदा बाधाओं से पार पाने में मदद करेगा।

“कॉरपोरेट सामाजिक दायित्व” की तर्ज पर “विश्वविद्यालय के सामाजिक दायित्व” की आवश्यकता पर बात करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि विश्वविद्यालयों और संस्थानों को अपने आसपास के समुदाय को सशक्त करने में योगदान अवश्य देना चाहिए। उन्हें यह जानकर खुशी हुई कि एनआईटी राउरकेला ने ‘उन्नत भारत अभियान’ के हिस्से के रूप में पांच गांवों को गोद लिया है और उन गांवों में कम्प्यूटर शिक्षा उपलब्ध कराने के साथ विज्ञान प्रयोगशालाओं को भी अपग्रेड कर रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि इस कैम्पस में स्थित पवार्टी एलिवेशन रिसर्च सेंटर, ओडिशा के कालाहांडी, बालांगिर और कोरापुट क्षेत्र के कम विशेषाधिकार प्राप्त लोगों के लिए काम कर रहा है। उन्होंने इन सराहनीय पहलों के लिए एनआईटी राउरकेला की प्रशंसा की।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के कार्यान्वन का उल्लेख करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि नीति में परिकल्पना की गई है कि इंजीनियरिंग संस्थानों को मानविकी और कला पर जोर देने के साथ समग्र और बहुविषयक शिक्षा की ओर बढ़ना चाहिए। उन्होंने कहा कि एनआईटी राउरकेला कुछ हद तक इस दृष्टिकोण को अपना चुका है। उन्होंने भरोसा व्यक्त किया कि यह संस्थान इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाएगा और राष्ट्रीय शिक्षा नीति की अन्य प्रमुख विशेषताओं को लागू करने के लिए भी काम करेगा। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति का एक उद्देश्य भारत को 21वीं सदी में वैश्विक ज्ञान की महाशक्ति बनाना है और एनआईटी राउरकेला जैसे संस्थानों को इस राष्ट्रीय लक्ष्य की प्राप्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी।

 

ऑल इंडिया लॉ एंट्रेंस टेस्ट( AILET ) अब 20 जून 2021 को होना है।

देहरादून : नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी (NLU) दिल्ली में अंडरग्रेजुएट और पोस्टग्रेजुएट कोर्स में दाखिले के लिए आयोजीत होने वाले ऑल इंडिया लॉ एंट्रेंस टेस्ट की परीक्षा तिथि में बदलाव किया गया है । यहाँ परीक्षा 20 जून 2021 को आयोजित की जाएगी । यह परीक्षा पहले 2 मई को होनी थी ।
नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी (NLU) दिल्ली की और से जारी अधिसूचना के अनुसार इस परीक्षा के लिए आवेदन जनवरी के तीसरे सप्ताह से शुरू हो गयी हैं ।
ऑल इंडिया लॉ एंट्रेंस टेस्ट 3 कोर्स में दाखिले के लिए आयोजित की जाती है , जिसमे पांच वर्षीय
BA .LLB (Honours) , एक वर्षीय LLM और PH.D शामिल है , लॉ प्रेप टूटोरियल देहरादून की निर्देशक (अकादमिक) दिशा उपाध्याय ने बताया की BA .LLB के लिए प्रवेश परीक्षा 150 अंको की होती हैं । जिसमे 10 अंको का गणित और अंग्रेजी , जनरल नॉलेज , रीज़निंग और लीगल एप्टीटुड के 35 -35 अंक के सेक्शन होंगे।
परीक्षा पेपर और पेन मोड में होगा । परीक्षा में नेगेटिव मार्किंग भी होगी । एक प्रश्न का उत्तर गलत होने पर अभ्यर्थी के 0.25 अंक काट लिए जायँगे । यानि चार गलत जवाब पर उनका एक नंबर काट जाएगा । नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी (NLU) दिल्ली द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार इच्छुक छात्र परीक्षा सम्बंधित जानकारी nludelhi.ac.in पर लेते रहे ।

केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति प्रगतिशील होने के साथ-साथ व्यावहारिक भी है उन्होंने प्रसिद्ध कॉटन यूनिवर्सिटी के परिसर में नए छात्रावासों की आधारशिला रखी

केंद्रीय पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास (स्वतंत्र प्रभार), कार्मिक, लोक शिकायत, पेंशन, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष राज्य मंत्री, डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति प्रगतिशील होने के साथ-साथ व्यावहारिक भी है। उन्होंने कहा कि एक बार लागू होने के बाद यह शिक्षा नीति परिवर्तनकारी बनने जा रही है। इस शिक्षा नीति के सकारात्मक परिणाम अगली पीढ़ी में दिखाई देंगे।

डॉ. जितेंद्र सिंह प्रसिद्ध कॉटन यूनिवर्सिटी के परिसर में नए छात्रावासों की आधारशिला रखने के बाद इस अवसर पर आयोजित एक समारोह को संबोधित कर रहे थे। यह विश्वविद्यालय पूर्ववर्ती कॉटन कॉलेज का विस्तार है। यह कॉलेज ब्रिटिश राज के दौरान 1901 में पूर्वोत्तर में स्थापित होने वाला पहला डिग्री कॉलेज है। कॉलेज का नाम ब्रिटिश गवर्नर श्री कॉटन के नाम पर रखा गया था। सात मंजिले छात्रावास भवनों के निर्माण की पूरी लागत पूर्वोत्तर परिषद (एनईसी) द्वारा वहन की जाएगी। यह परिषद पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय से संबद्ध है। छात्रावास भवनों के निर्माण के लिए लगभग 40 करोड़ रुपये की राशि पहले ही आवंटित कर दी गई है।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय और पूर्वोत्तर परिषद पिछले छह वर्षों के दौरान बुनियादी ढांचा परियोजनाओं से अलग भी अपनी गतिविधियों में विविधता लाए हैं और शिक्षा तथा स्वास्थ्य क्षेत्र में व्यापक योगदान दे रहे हैं। उन्होंने दो वर्ष पूर्व बैंगलोर विश्वविद्यालय के परिसर में पूर्वोत्तर परिषद द्वारा निर्मित नॉर्थईस्ट गर्ल्स हॉस्टल और नॉर्थईस्ट स्टूडेंट्स हॉस्टल का जिक्र किया। नॉर्थईस्ट स्टूडेंट्स हॉस्टल का जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) नई दिल्ली के परिसर में निर्माण कार्य प्रगति पर है।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि इसी प्रकार स्वास्थ्य क्षेत्र में भी पूर्वोत्तर परिषद ने परमाणु ऊर्जा विभाग और टाटा मेमोरियल कैंसर अस्पताल मुंबई के सहयोग से गुवाहाटी के डॉ. बी बरूआ अस्पताल को अपग्रेड करके सुपर स्पेशियलिटी कैंसर शिक्षण अस्पताल में परिवर्तित कर दिया है। इस अस्पताल में डीएम ऑन्कोलॉजी और एमसीएच ऑन्कोलॉजी पाठ्यक्रमों की शुरूआत की गई है।

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा लाई गई नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का उल्लेख करते हुए डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि इस शिक्षा नीति में कुछ क्रांतिकारी प्रावधान शामिल किए गए हैं जो वैश्विक भारत की जरूरतों के अनुरूप हैं। उन्होंने किसी शिक्षा संस्थान में प्रवेश और निकासी के प्रावधान का उदाहरण देते हुए कहा कि इससे छात्र को अपनी योग्यता के आधार पर अपना अध्ययन पाठ्यक्रम छोड़ने की अनुमति से साथ-साथ बाद में पाठ्यक्रम में दोबारा शामिल होने का विकल्प भी उपलब्ध होगा। उन्होंने कहा कि यह शिक्षा नीति युवा प्रतिभाओं और कौशल को पोषित करने और संवारने में भी एक बड़ी मददगार साबित होने जा रही है।

भारत सरकार और विश्व बैंक ने नागालैंड में भारत की शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार की परियोजना पर हस्ताक्षर किए

भारत सरकार, नागालैंड सरकार और विश्व बैंक ने आज नागालैंड के स्कूलों के प्रशासनिक कामकाज में सुधार के साथ ही चुनिंदा स्कूलों में शिक्षा की प्रक्रियाओं और पढ़ाई के माहौल को बेहतर बनाने के लिए 6.8 करोड़ डॉलर की परियोजना पर हस्ताक्षर किए।

“नागालैंड : कक्षा शिक्षण और संसाधन सुधार परियोजना” से कक्षा में पढ़ाई में सुधार होगा; शिक्षकों के व्यावसायिक विकास के लिए अवसर पैदा होंगे; और विद्यार्थियों व शिक्षकों को उपलब्ध कराने के लिए तकनीक प्रणाली बनाई जाएंगी, जिससे मिलीजुली व ऑनलाइन शिक्षा तक व्यापक पहुंच के साथ ही नीतियों और कार्यक्रमों की बेहतर निगरानी सुनिश्चित होगी। इस तरह का एकीकृत दृष्टिकोण पारम्परिक डिलिवरी मॉडलों का पूरक होगा और इससे कोविड-19 से पैदा हुई चुनौतियों से पार पाने में भी मदद मिलेगी। स्कूलों में राज्यव्यापी सुधारों से नागालैंड में सरकारी शिक्षा प्रणाली में लगभग 1,50,000 विद्यार्थियों और 20,000 शिक्षक लाभान्वित होंगे।

आर्थिक मामलों के विभाग, वित्त मंत्रालय, भारत सरकार में अतिरिक्त सचिव श्री सी. एस. महापात्रा ने कहा कि विकास की किसी भी रणनीति में मानव संसाधनों का विकास एक अहम भूमिका निभाता है और भारत सरकार ने भारत में शैक्षणिक परिदृश्य में बदलाव के लिए कई ठोस कदम उठाए हैं। उन्होंने कहा कि नागालैंड में इस शिक्षा परियोजना से विद्यार्थियों और शिक्षकों के सामने मौजूद कई गंभीर समस्याओं का समाधान होगा तथा यह परियोजना राज्य के विकास में अहम भूमिका निभाएगी।

इस समझौते पर भारत सरकार की तरफ से श्री महापात्रा; नागालैंड सरकार की तरफ से मुख्य निदेशक, स्कूली शिक्षा विभाग श्री शानवास सी; और विश्व बैंक की तरफ से कंट्री निदेशक, भारत श्री जुवैद अहमद ने हस्ताक्षर किए।

आज, नागालैंड को कमजोर स्कूली अवसंरचना, शिक्षकों के व्यावसायिक विकास के लिए अवसरों की कमी और स्कूल व्यवस्था के साथ प्रभावी भागीदारी के लिए समुदायों की सीमित क्षमता जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। कोविड-19 महामारी ने इन चुनौतियों को बढ़ा दिया है और राज्य की स्कूली शिक्षा प्रणाली में अतिरिक्त संकट पैदा कर दिया है व व्यवधान बढ़ा दिए हैं

भारत में विश्व बैंक के कंट्री निदेशक श्री जुनैद अहमद ने कहा कि भले ही पिछले कुछ साल के दौरान भारत में स्कूल आने वाले बच्चों की संख्या बढ़ी है, लेकिन श्रम बाजार की बढ़ती मांगों को पूरा करने और भावी विकास को गति देने के लिए शिक्षा के परिणामों में सुधार की आवश्यकता बढ़ रही है। यह परियोजना सुधार और राज्य में ज्यादा लचीली शिक्षा प्रणाली के विकास की दिशा में नागालैंड सरकार के प्रयासों को समर्थन देने के लिए तैयार की गई है।

नागालैंड के शिक्षा प्रबंधन और सूचना प्रणाली (ईएमआईएस) को मजबूत बनाने से शिक्षा संसाधनों तक व्यापक पहुंच सुनिश्चित होगी; शिक्षकों और शिक्षा प्रबंधकों के लिए व्यावसायिक विकास और प्रदर्शन मूल्यांकन प्रणालियों को समर्थन मिलेगा; स्कूल नेतृत्व सुविधाजनक और प्रबंधन बेहतर होगा; परीक्षा सुधारों को समर्थन मिलेगा।

शिक्षा विशेषज्ञ और इस परियोजना के लिए विश्व बैंक के टास्क टीम लीडर श्री कुमार विवेक ने कहा कि यह परियोजना राज्य के सुधार और स्कूलों में पढ़ाई के माहौल में सुधार के प्रयासों को समर्थन देगी जिससे वह बच्चों पर केंद्रित; आधुनिक, तकनीक कुशल शिक्षण और पढ़ाई के दृष्टिकोण में सहयोगी; और भावी झटकों के लिए लचीली हो सके।

इस रणनीति के तहत, नागालैंड के 44 उच्चतर माध्यमिक स्कूलों में से 15 को ऐसे स्कूल परिसरों के रूप में विकसित किया जाएगा, जहां परियोजना अवधि के दौरान परिकल्पित सीखने के माहौल को तैयार किया जा सकता हो।

अंतर्राष्ट्रीय पुनर्गठन एवं विकास बैंक से मिलने वाला 6.8 करोड़ डॉलर के कर्ज परिपक्वता अवधि 14.5 वर्ष होगी, जिसमें 5 साल की ग्रेस अवधि शामिल है।

दिल्ली: सरकार ने नर्सरी में दाखिले के लिए उम्र सीमा में छूट दी

दिल्ली सरकार ने राष्ट्रीय राजधानी के स्कूलों को नर्सरी में दाखिल के लिए उम्र सीमा में बच्चों को 30 दिनों की छूट देने का निर्देश दिया है। शिक्षा निदेशालय (डीओई) ने स्कूलों को भेजे एक पत्र में कहा है, ‘‘एक बार फिर से यह कहा जा रहा है कि स्कूलों में न्यूनतम एवं अधिकतम उम्र सीमा में प्रधानाध्यापकों के स्तर से 30 दिनों की छूट दी जा सकती है। यदि किसी अभिभावक को अपने बच्चे के लिए उम्र सीमा में छूट चाहिए तो वे स्कूल के प्रधानाध्यपक से एक आवेदन के जरिए संपर्क कर सकते हैं और उनसे इस पर विचार करने का अनुरोध कर सकते हैं।’’ बता दें कि शिक्षा निदेशालय 31 मार्च के आधार पर आयु की गणना करता है।

आवेदन प्रक्रिया चार मार्च को समाप्त हो जाएगी

शिक्षा निदेशालय 2018 से प्रत्येक वर्ष उम्र सीमा निर्धारित कर रहा है। नर्सरी, केजी और पहली कक्षा में दाखिले के लिए एक ऊपरी उम्र सीमा है। नर्सरी में दाखिले के लिए 31 मार्च को बच्चे की उम्र चार साल से अधिक नहीं होनी चाहिए। वहीं, केजी में दाखिल के लिए यह पांच साल और पहली कक्षा में दाखिले के लिए छह साल साल से अधिक उम्र नहीं होनी चाहिए। नर्सरी में दाखिले की प्रक्रिया 18 फरवरी से शुरू हो गई है और आवेदन प्रक्रिया चार मार्च को समाप्त हो जाएगी। चयनित उम्मीदवारों की पहली सूची 20 मार्च को और फिर अगली लिस्ट 25 मार्च को जारी की जाएगी।

जानिए उम्र में कितनी मिलेगी छूट

नर्सरी में एडमिशन के लिए 31 मार्च 2021 को बच्चे की उम्र 3 वर्ष से अधिक, लेकिन 4 वर्ष से कम होनी चाहिए। केजी (KG) में 31 मार्च 2021 को बच्चे की उम्र 4 वर्ष से अधिक, लेकिन 5 वर्ष से कम होनी चाहिए। वहीं क्लास 1 में 31 मार्च 2021 को बच्चे की उम्र 5 वर्ष से अधिक, लेकिन 6 वर्ष से कम होनी चाहिए। इसी न्यूनतम और अधिकतम आयु सीमा में 30 दिन की रियायत दी गई है।

बता दें कि नर्सरी दाखिले को लेकर ‘पहले आओ- पहले पाओ’ जैसे 50 मानदंड दिल्‍ली उच्‍च न्‍यायालय ने प्रतिबंधित किए हुए हैं। स्‍कूलों को मैनेजमेंट कोटे पर दाखिला लेने की भी पाबंदी है। स्‍कूल कई मानदंडों पर बच्‍चों/अभिभावकों को अंक देते हैं जिसके आधार पर बच्‍चे को दाखिला मिलता है। यह भी देखा गया है कि कई स्‍कूल आवेदन के दौरान स्‍कूल बस का चुनाव करने पर अतिरिक्‍त अंक देते हैं। ऐसे सभी मानदंडों पर प्रतिबंध है और ऐसे मानकों के खिलाफ शिक्षा निदेशालय सख्‍त है।

उत्तरांचल आयुर्वेदिक कॉलेज को मिली नए सत्र में प्रवेश की अनुमति

उत्तराखंड में निजी क्षेत्र में 2001 से स्थापित प्रथम आयुर्वेदिक कॉलेज राजपुर रोड स्थित उत्तरांचल आयुर्वेदिक कॉलेज को बीएएमएस एवं एमडी आयुर्वेद पाठ्यक्रम में प्रवेश हेतु 60 सीटों के प्रवेश हेतु आयुष मंत्रालय ने मान्यता प्रदान कर दी है। जिसमें आयुर्वेद, स्नातक व स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में अभ्यर्थियों को प्रवेश का मौका मिलेगा।
उक्त जानकारी देते हुए कॉलेज के प्राचार्य डॉ. सत्य मानव दयाल शर्मा ने बताया कि आयुर्वेद में भविष्य बनाने के प्रति युवाओं में क्रेज बढ़ा है। सभी आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित भवन अस्पताल एवं सुरम्य घाटी में स्थित उत्तरांचल आयुर्वेदिक कॉलेज में प्रवेश हेतु अभ्यर्थी उत्साहित है। नीट उत्तीर्ण अभ्यर्थियों को संस्था में नियमानुसार प्रवेश की कार्यवाही 28 फरवरी तक पूर्ण कर ली जाएगी। कॉलेज को द्वितीय चरण की काउंसलिंग में शामिल कर लिया गया है।
उत्तराखंड आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. सुरेश चौबे ने दी जानकारी में बताया कि राज्य में आयुर्वेदिक कॉलेजों में प्रवेश हेतु प्रथम चरण की काउंसिलिंग पूर्ण हो चुकी है एवं द्वितीय चरण की काउंसिलिंग अंतिम चरण में है। मोप अप राउंड काउंसलिंग 24 से अनंतिम निर्धारित है। डॉ. चौबे ने बताया कि राज्य में 3 राजकीय व निजी क्षेत्र के 9 आयुर्वेदिक कॉलेजों को आगामी सत्र में प्रवेश हेतु मान्यता प्राप्त हुई है।
एक कॉलेज को मान्यता मिलने की संभावना है। अगले प्रवेश प्रक्रिया की घोषणा जल्द ही की जाएगी। विश्ववविद्यालय ने काउंसलिंग शेडयूल में आंशिक फ़ेरबदल किया है। डॉ. चौबे ने बताया कि द्वितीय चरण की काउंसलिंग के उपरांत विगत दिवस विश्वविद्यालय द्वारा मेरिट लिस्ट जारी कर दी जायेगी। जिसमें अभ्यर्थियों को नीट की मेरिट के आधार पर राज्य के विभिन्न आयुर्वेदिक कॉलेजों में दाखिले का मौका मिलेगा। 19 व 20 को अभ्यर्थी अपनी सूची के अनुसार महाविद्यालयों का चयन (choice filling) कर सकेंगे। उपलब्ध सीटों के आधार पर 22 को विश्वविद्यालय द्वारा सीटें आवंटित कर परिणाम घोषित किया जाएगा। आवंटित सीटों पर अभ्यर्थी 23 व 24 फरवरी को प्रवेश प्राप्त कर सकेंगे।
उत्तरांचल आयुर्वेदिक कॉलेज के एमडी एवं उत्तराखंड मेडिकल कॉलेज एसोसिएशन के चेयरमैन डॉ अश्विनी काम्बोज ने आयुष मंत्रालय एवं सी.सी.आई.एम नई दिल्ली का आभार प्रकट करते हुए कहा कि इस वर्ष को महामारी के चलते आयुर्वेदिक पाठ्यक्रम का सत्र विलंबित हुआ है। प्रतिवर्ष 30 अक्टूबर उक्त प्रक्रिया पूर्ण कर ली जाती थी, परंतु कोरोना के चलते इस वर्ष आयुष कॉलेजों में नए सत्र का शिक्षण-प्रशिक्षण मार्च 2021 से प्रारंभ होगा। डॉ. कांबोज ने बताया कि राज्य के कुछ कॉलेजों को अभी भी प्रवेश की अनुमति प्राप्त नहीं हुई है। उनको भारत सरकार द्वारा शीघ्र अनुमति मिलने की संभावना है। ऐसे कॉलेजों में रिक्त सीटों के लिए अलग से काउंसलिंग हेतु भारत सरकार को एसोसिएशन के माध्यम से पत्र प्रेषित किया जा रहा है।
उल्लेखनीय है कि आयुष मंत्रालय भारत सरकार द्वारा एवं केंद्रीय भारतीय चिकित्सा परिषद नई दिल्ली द्वारा उत्तराखंड के आयुष कॉलेजों में नए सत्र में प्रवेश हेतु निजी क्षेत्र के 9 कॉलेजों को मान्यता प्रदान करते हुए सूची जारी कर दी है। इनके अतिरिक्त राज्य के तीन राजकीय आयुर्वेदिक कॉलेजों ऋषिकुल आयुर्वेदिक कॉलेज व गुरुकुल आयुर्वेदिक कॉलेज (हरिद्वार) एवं आयुर्वेद विश्वविद्यालय मैन केंपस हर्रावाला देहरादून को भारत सरकार ने पूर्व में ही मान्यता प्रदान कर दी थी। प्राप्त जानकारी के अनुसार राज्य के जिन 9 निजी कॉलेजों को मान्यता मिली है, उनमें पतंजलि आयुर्वेदिक कॉलेज (100 सीट), उत्तरांचल आयुर्वेदिक कॉलेज (60), हिमालय आयुर्वेदिक कॉलेज (60) दून इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (60), क्वाड्रा इंस्टीट्यूट आफ आयुर्वेद(30), मदरहुड आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज(60), शिवालिक इंस्टीट्यूट आफ आयुर्वेद एंड रिसर्च (60), मंजीरा देवी आयुर्वैदिक मेडिकल कॉलेज (30), चंदोला होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज (50) सीट शामिल है।
देवभूमि मेडिकल कॉलेज ऑफ आयुर्वेद को भी जल्द मान्यता मिलने की संभावना है। राज्य के तीन कॉलेजों हरिद्वार आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज, उत्तरांचल युनानी मेडिकल कॉलेज एवं आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज को कोर्ट के आदेश से मान्यता प्राप्त होने की जानकारी मिली है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार तीन कॉलेजों बिहाइव मेडिकल कॉलेज, विशंभर सहाय आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज एवं परम हिमालयन होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज को मान्यता मानक (टीचिंग फैकल्टी) पूरे न किए जाने पर रद्द कर दी गई है।