CM पुष्कर सिंह धामी ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्री से की मुलाकात, राज्य के लम्बित मामलों के संबंध में जानकारी देते शीघ्र निस्तारण का किया अनुरोध।

दिल्ली/उत्तराखंड : मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने नई दिल्ली में केंद्रीय श्रम एवं पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव से शिष्टाचार भेंट की। मुख्यमंत्री ने उनसे उत्तराखण्ड से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की। मुख्यमंत्री ने केंद्रीय मंत्री को पर्यावरण मंत्रालय में राज्य के लम्बित मामलों के संबंध में जानकारी देते इनके शीघ्र निस्तारण का अनुरोध है। केंद्रीय मंत्री ने मुख्यमंत्री को उत्तराखण्ड के विकास में हर सम्भव सहयोग के प्रति आश्वस्त किया।
वहीँ इस अवसर पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने नई दिल्ली में पूर्व केंद्रीय मंत्री व सांसद डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक से शिष्टाचार भेंट की।

शिक्षा मंत्री निशंक ने स्वास्थ्य कारणों के चलते दिया इस्तीफा

देहरादून-   केंद्रीय मंत्रिमंडल विस्तार के बीच केंद्रीय शिक्षा मंत्री और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है।
इस बात की पुष्टि रमेश पोखरियाल निशंक के ओएसडी ने की है। बताया जा रहा है कि खराब स्वास्थ्य के चलते उन्होंने इस्तीफा दिया है। पीएम मोदी के मंत्रिमंडल विस्तार में नए मंत्रियों के शपथ ग्रहण के साथ ही कई मंत्रियों की कैबिनेट से छुट्टी भी हो गई। शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल ने स्वास्थ्य कारणों से इस्तीफा दिया हैं। वहीं श्रम व रोजगार मंत्री संतोश गंगवार और देबोश्री चौधरी ने भी केंद्रीय कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया।
प्रधानमंत्री के रूप में मई 2019 में 57 मंत्रियों के साथ अपना दूसरा कार्यकाल आरंभ करने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहली बार केंद्रीय मंत्रिपरिषद में फेरबदल व विस्तार करने वाले हैं।

सीएम धामी ने मंत्रियों को दी जिलों की जिम्मेदारी, देखिए कौंन बने आपके जिले के प्रभारी मंत्री…

उत्तराखण्ड में पुष्कर धामी मंत्रिमंडल के गठन के बाद अब मंत्रियों को जनपदों का प्रभार दिया गया है। इस लिस्ट में कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज को रूद्रप्रयाग व चमोली जनपद का प्रभारी बनाया गया है, डॉ. हरक सिंह रावत को टिहरी जिले का प्रभारी मंत्री बनाया गया है। बंशीधर भगत को देहरादून जनपद की जिम्मेदारी दी गई है। यशपाल आर्य को नैनीताल जनपद तो विशन सिंह चुफाल अल्मोड़ा जनपद के प्रभारी मंत्री होंगे। सुबोध उनियाल को पौड़ी जनपद का प्रभार दिया गया है। अरविन्द पांडे चम्पावत एवं पिथौरागढ़ जनपद के प्रभारी मंत्री नियुक्त किए गए हैं। गणेश जोश उत्तरकाशी, डॉ. धन सिंह रावत हरिद्वार, रेखा आर्य बागेश्वर, मंत्री यतीश्वरानन्द ऊधमसिंहनगर के प्रभारी मंत्री नियुक्त किए गए हैं।

मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी ने “डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी की जयंती” के अवसर पर राजपुर रोड स्थित मुखर्जी पार्क में उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि दी।

मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी ने डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी की जयंती के अवसर पर राजपुर रोड स्थित मुखर्जी पार्क में उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि दी।

मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी, शिक्षाविद, चिंतक और जनसंघ के संस्थापक थे। डॉ. मुखर्जी देश के प्रथम उद्योग मंत्री रहे। उन्होंने कहा कि डॉ॰ मुखर्जी जम्मू कश्मीर को भारत का पूर्ण और अभिन्न अंग बनाना चाहते थे। धारा-370 को समाप्त करने की उन्होंने वकालत की। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने जम्मू कश्मीर से धारा 370 एवं 35A समाप्त कर उनके सपने को साकार किया।

इस अवसर पर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष श्री मदन कौशिक, कैबिनेट मंत्री श्री गणेश जोशी, मेयर श्री सुनील उनियाल गामा, आदि उपस्थित थे।

मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी ने इससे पूर्व बीजापुर सेफ हाऊस में भी डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के चित्र पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि दी।

आईएएस एस. एस. संधू बने “उत्तराखण्ड के नए मुख्य सचिव “

1988 बैच के आईएएस अधिकारी एसएस संधू प्रदेश के नए मुख्य सचिव बन गए हैं। बता दें कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने पदभार ग्रहण करते ही अपने तेवर तेज कर दिए हैं। समय की कमी और काम ज्यादा इस बात को ध्यान के रखकर वे ताबड़तोड़ फैसले ले रहे हैं, उन्होंने शपथ लेते ही उसी शाम कैबिनेट बैठक ली, जिसमें युवाओं और राज्य हित में कई फैसले लिए। अब नौकरशाही में बड़ा फेरबदल करते हुए सबसे पहले मुख्य सचिव को बदल दिया है। प्रदेश में नौकरशाही व जनप्रतिनिधियों के बीच हमेशा विवाद की स्थिति रही है। मंत्री हो या विधायक हर किसी की अधिकारियों के द्वारा उनकी बात नहीं सुनी जाने की शिकायत रहती है। अब नए मुख्यमंत्री युवा हैं, पहले दिन ही उन्होंने मुख्य सचिव को बदल कर नौकरशाही को सचेत रहने के संकेत दे दिए हैं।

युवा तेजतर्रार नेता पुष्कर धामी ने ली उत्तराखंड के 11 वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ, जानिए धामी कैबिनेट में कौन-कौन मंत्री हुए शामिल

देहरादून : उत्तराखंड को आज प्रदेश के 11वें मुख्यमंत्री मिल गए हैं। खटीमा सीट के युवा विधायक पुष्कर सिंह धामी ने आज मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण की। राजभवन में आयोजित शपथ ग्रहण समारोह में राज्यपाल बेबी रानी मौर्य ने उन्हें पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई। इसके साथ ही धामी कैबिनेट में सभी पुराने मंत्रियों को शामिल किया गया है। सभी 11 मंत्रियों को भी आज सीएम के साथ शपथ दिलाई गई। बता दें कि पहले वे शनिवार को ही शपथ लेने वाले थे, लेकिन बाद में कार्यक्रम में बदलाव कर दिया गया।

चार महीने के अंदर तीसरा मुख्यमंत्री चुनकर भाजपा ने चुनावी साल में युवा चेहरे पर दांव खेला है। धामी के नाम की घोषणा करके भाजपा केंद्रीय नेतृत्व ने एक बार फिर सियासी पंडितों को चौंका दिया। मुख्यमंत्री पद की दौड़ में गिने जा रहे दिग्गज नेता सतपाल महाराज, त्रिवेंद्र सिंह रावत, धनसिंह रावत समेत कई बड़े नाम निर्णायक क्षण में पिछड़ गए।

ये हैं धामी के 11 मंत्री

कैबिनेट में सतपाल महाराज, बंशीधर भगत, अरविंद पांडेय, हरक सिंह रावत, यशपाल आर्य, सुबोध उनियाल, बिशन सिंह चुफाल, गणेश जोशी, रेखा आर्य, धनसिंह रावत, स्वामी यतीश्वरा नंद को मंत्री पद की शपथ दिलाई।

अब तक बनाए गए मुख्यमंत्री

मुख्यमंत्री                                    कार्यकाल 
नित्यानंद स्वामी                    09 नवंबर 2000 से 29 अक्तूबर 2001
भगत सिंह कोश्यारी              30 अक्तूबर 2001 से 01 मार्च 2002
एनडी तिवारी                       02 मार्च 2002 से 07 मार्च 2007
भुवन चंद्र खंडूरी                   08 मार्च 2007 से 23 जून 2009 (11 सितंबर 2011 से 13 मार्च 2012 में भी रहे)
रमेश पोखरियाल निंशक        24 जून 2009 से 10 सितंबर 2011
विजय बहुगुणा                     13 मार्च 2012 से 31 जनवरी 2014
हरीश रावत                         1 फरवरी 2014 से 27 मार्च 2016 / 21 अप्रैल 2016 से 22 अप्रैल 2016 / 11 मई 2016 से 18 मार्च 2017
त्रिवेंद्र सिंह रावत                 18 मार्च 2017 से 09 मार्च 2021
तीरथ सिंह रावत                10 मार्च 2021(मुख्यमंत्री पद की शपथ ली)

पुष्कर सिंह धामी होंगे “उत्तराखंड के नए ग्यारहवें सीएम”

देहरादून : पुष्कर सिंह धामी बने उत्तराखंड के नए मुख्यमंत्री नियुक्त किए गए हैं. बीजेपी की विधायक दल की बैठक में यह निर्णय लिया है. गौरतलब है कि उत्तराखंड में पैदा हुए संवैधानिक संकट के बीच पूर्व मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने चार माह से भी कम समय तक पद पर रहने के बाद शुक्रवार देर रात राज्यपाल बेबी रानी मौर्य को अपना इस्तीफा सौंप दिया.

राजभवन पहुंचकर अपना इस्तीफा देने के बाद रावत ने संवाददाताओं को बताया कि उनका इस्तीफा देने की मुख्य वजह संवैधानिक संकट था जिसमें निर्वाचन आयोग के लिए उपचुनाव कराना मुश्किल था.उन्होंने कहा कि संवैधानिक संकट की परिस्थितियों को देखते हुए मैंने अपना इस्तीफा देना उचित समझा ।
पौड़ी से लोकसभा सदस्य रावत ने इस वर्ष 10 मार्च को मुख्यमंत्री का पद संभाला था और संवैधानिक बाध्यता के तहत उन्हें छह माह के भीतर यानी 10 सितंबर से पहले विधानसभा का सदस्य निर्वाचित होना था।

जनप्रतिनिधित्‍व अधिनियम, 1951 की धारा 151ए के मुताबिक निर्वाचन आयोग संसद के दोनों सदनों और राज्‍यों के विधायी सदनों में खाली सीटों को रिक्ति होने की तिथि से छह माह के भीतर उपचुनावों के द्वारा भरने के लिए अधिकृत है, बशर्ते किसी रिक्ति से जुड़े किसी सदस्‍य का शेष कार्यकाल एक वर्ष अथवा उससे अधिक हो।

देहरादून :- उत्तराखंड में कोरोना संक्रमण की बढ़ती रफ्तार से चिकित्सा क्षेत्र के विशेषज्ञ बेहद चिंतित,विशेषज्ञों ने दिया उत्‍तराखंड में 10 दिन कोरोना कर्फ्यू का सुझाव।

उत्तराखंड में कोरोना संक्रमण की बढ़ती रफ्तार से चिकित्सा क्षेत्र के विशेषज्ञ बेहद चिंतित हैं। उनका कहना है कि यदि समय रहते संक्रमण की रोकथाम को कदम नहीं उठाए गए तो दिक्कतें बढ़ सकती हैं। राज्य में कम से कम 10 कोरोना कर्फ्यू लगाया जाना चाहिए।
उत्तराखंड में कोरोना संक्रमण की बढ़ती रफ्तार से चिकित्सा क्षेत्र के विशेषज्ञ बेहद चिंतित हैं। उनका कहना है कि यदि समय रहते संक्रमण की रोकथाम को कदम नहीं उठाए गए तो दिक्कतें बढ़ सकती हैं। मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत के साथ हुई बैठक में विशेषज्ञों ने सुझाव दिया कि कोरोना संक्रमण की चेन तोड़ने के लिए सख्ती जरूरी है। इसके लिए राज्य में कम से कम 10 कोरोना कर्फ्यू लगाया जाना चाहिए।

मुख्यमंत्री ने बैठक में विशेषज्ञों के साथ न सिर्फ मंथन किया, बल्कि कोरोना संकट से निबटने के लिए सुझाव भी मांगे। स्वामीराम हिमालयन विश्वविद्यालय, जौलीग्रांट के कुलपति डा.विजय धस्माना के अनुसार उन्होंने बैठक में साफ तौर पर कहा कि राज्य में हालात बिगड़ने की तरफ अग्रसर हो रहे हैं। ऐसे में सरकार को सख्त कदम उठाना बेहद आवश्यक है।

डा.धस्माना ने अस्पतालों में आक्सीजन की स्थिति, रेमडेसिविर दवा की सप्लाई समेत अन्य कई बिंदुओं तरफ भी ध्यान खींचा। उन्होंने कहा कि अस्पतालों में कुल बेड की संख्या के 30 फीसद बेड में आक्सीजन सर्पोटेड सिस्टम और इसी हिसाब से प्लांट लगाए जाते हैं। जौलीग्रांट अस्पताल में भी ऐसा ही है। आक्सीजन सपोर्टेड बेड की संख्या बढ़ाने पर इसके लिए आक्सीजन की भी जरूरत पड़ेगी। इसकी व्यवस्था समेत अन्य उपायों की तरफ भी सरकार को ध्यान देना होगा।
देहरादून का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि यहां राज्य के विभिन्न हिस्सों के अलावा हिमाचल, पश्चिमी उत्तर प्रदेश से भी मरीज आ रहे हैं। ऐसे में दबाव काफी बढ़ गया है। उन्होंने कहा कि आपात स्थिति को देखते हुए संपूर्ण चिकित्सा जगत सरकार का साथ देने को तैयार है। उन्होंने सुझाव देते हुए कहा कि आवश्यक सेवाओं और इंडस्ट्री को छोड़कर राज्य में 10 दिन का कोरोना कर्फ्यू लगाया जाना चाहिए। इससे स्थिति पर काफी हद तक नियंत्रण में मदद मिलेगी।

उत्तरखंड लॉकडाउन :- उत्‍तराखंड में कोरोना संक्रमण की रफ्तार जरूर बढ़ी है, सरकार फिलहाल लाकडाउन के पक्ष में नहीं, सख्ती बरतेगी सरकार, विवाह समारोह में अब 50 व्यक्तियों को ही मिलेगी अनुमति

कोरोना संक्रमण की रफ्तार जरूर बढ़ी है, मगर सरकार प्रदेश में लाकडाउन के पक्ष में नहीं है। अलबत्ता, संक्रमण की रोकथाम के मद्देनजर जारी दिशा-निर्देशों का कड़ाई से अनुपालन सुनिश्चित कराया जाएगा। मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत की अध्यक्षता में हुई मंत्री परिषद की अनौपचारिक बैठक में इस पर सहमति बनी। यह भी तय किया गया कि भीड़भाड़ रोकने के लिए राज्य में सार्वजनिक कार्यक्रमों पर रोक लगा दी जाए। इसके अलावा विवाह समारोहों में शामिल होने के लिए अधिकतम व्यक्तियों की संख्या 50 रखने का निर्णय लिया गया। सरकार के प्रवक्ता एवं कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल ने इसकी पुष्टि की।

कोरोना के बढ़़ते मामलों को देखते हुए गुरुवार को बुलाई गई राज्य मंत्रिमंडल की बैठक स्थगित कर दी गई थी। फिर तय किया गया कि मंत्री परिषद की अनौपचारिक बैठक कर कोरोना संकमण की स्थिति पर विमर्श कर लिया जाए। इससे पहले मुख्यमंत्री ने विशेषज्ञों के साथ कोरोना संक्रमण से निबटने के उपायों पर विमर्श किया। इसमें चिकित्सा क्षेत्र के विशेषज्ञों ने सुझाव दिया कि हालात पर नियंत्रण के राज्य में कम से कम 10 दिन कोरोना कफ्र्यू लगाया जाना चाहिए। शाम को मुख्यमंत्री कैंप कार्यालय में हुई मंत्री परिषद की अनौपचारिक बैठक में राज्य में कोरोना की स्थिति पर गहन मंथन किया गया। सरकार के प्रवक्ता एवं कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल के अनुसार तय हुआ कि फिलहाल सरकार लाकडाउन नहीं करेगी। अलबत्ता, कोरोना से बचाव के लिए जारी गाइडलाइन का सख्ती से अनुपालन सुनिश्चित कराया जाएगा। उन्होंने बताया कि बैठक में इस बात पर जोर दिया गया कि राज्य में भीड़भाड़ न होने पाए। इस कड़ी में सार्वजनिक कार्यक्रमों (सामाजिक, राजनीतिक व धार्मिक) के आयोजन पर परिस्थितियां सामान्य होने तक रोक लगाने पर सहमति बनी है।
यह भी तय किया गया कि विवाह समारोहों में अधिकतम 50 व्यक्तियों को ही शामिल होने की अनुमति दी जाए। अभी यह यह सीमा सौ व्यक्ति है। इस संबंध में संशोधित आदेश शासन द्वारा जारी किए जाएंगे। बैठक में कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल, सतपाल महाराज, बंशीधर भगत, डा.हरक सिंह रावत, गणेश जोशी, बिशन सिंह चुफाल, राज्यमंत्री डा.धन सिंह रावत व यतीश्वरानंद उपस्थित थे।

राष्ट्रीय पुरानी पेंशन बहाली संयुक्त मोर्चा की ऑनलाइन बैठक सम्पन्न, कोरोना काल में सोशल मीडिया के द्वारा तेज किया जाएगा पुरानी पेंशन बहाली आन्दोलन – Dr. D.C. पसबोला

उत्तराखंड देहरादून– राष्ट्रीय पुरानी पेंशन बहाली संयुक्त मोर्चा की ऑनलाइन बैठक में कर्मचारियों ने कहा कि अब पुनः आंदोलन को ऑनलाइन मोड पर ले जाने का वक़्त है। इस बार कर्मचारियों के साथ हो रहे पेंशन सम्बन्धी अन्याय को जनता के पास पहुंचाया जाएगा।
राष्ट्रीय पुरानी पेंशन बहाली संयुक्त मोर्चा के कुमाऊँ मण्डल प्रभारी योगेश घिल्डियाल ने कहा कि ओपीएस में सरकारी तनख़्वाह की तरह ही पे कमीशन और डीए लागू होता है, वहीं एनपीएस में ये दोनों चीज़ें नदारद हैं. ‘पे कमीशन’ जहां हर 10 साल में पेंशन को गुणात्मक रूप से बढ़ा देता है, वहीं डीए के चलते भी कुछेक प्रतिशत बढ़ौतरी हर छः महीने में हो जाती है. जबकि एनपीएस में पेंशन आपको इन पांच इंश्योरेंस कंपनीज़ में से एक से मिलनी है. वो क्यूं ही हर साल, छः महीने में आपके पैसे बढ़ाए।
महिला मोर्चा की गढ़वाल मण्डल प्रभारी रश्मि गौड़ ने कहा कि आज मै तो यही सोचती हूँ कि जब हम रिटायर होंगे, तब क्या होगा।क्योंकि पुरानी पेंशन तो बुढ़ापे का सहारा है।हम अपनी इज्जत से जी सकते है।किसी के आगे हाथ नही फैला सकते।जिन लोगो की पेंशन है वे स्वाभिमान से अपना जीवन यापन कर रहे है।चाहे उनकी सन्तान उन्हें दे या ना दे इससे उन्हें कोई फर्क नही पड़ता है।इसलिए पुरानी पेंशन जरूरी है। मै अपने पिता श्री को देखती हूँ ।वो अपनी पेंशन के कारण स्वाभिमान से जीते है। आज भी वो 40000 रु पेंशन पाते है। माँ और पिताजी अपनी सारी जरुरतो को पूरा करते है और सम्मानपूर्वक जिंदगी जी रहें है।पुरानी पेंशन ही न्याय संगत हे।इसलिए हमे पुरानी पेंशन चाहिए और ले कर रहेंगे।पुरानी पेंशन के लिए लड़ेंगे और ले कर रहेंगे।

प्रान्तीय वरिष्ठ उपाध्यक्ष डॉ० डी० सी० पसबोला ने कहा कि
पुरानी पेंशन व्यवस्था (OPS) का शेयर मार्केट से कोई संबंध नहीं था।पुरानी पेंशन में हर साल डीए जोड़ा जाता था।पुरानी पेंशन व्यवस्था में गारंटी थी कि कर्मचारी या अधिकारी की आखिरी सैलरी का लगभग आधा उसे पेंशन के तौर पर मिलेगा।अगर किसी की आखिरी सैलरी 50 हजार है तो उसे 25 हजार पेंशन मिलती थी। इसके अलावा हर साल मिलने वाला डीए और वेतन आयोग के तहत वृद्धि की सुविधा थी।नौकरी करने वाले व्यक्ति का जीपीएफ अकाउंट खोला जाता था।जीपीएफ एकाउंट में कर्मचारी के मूल वेतन का 10 फ़ीसदी कटौती करके जमा किया जाता था।जब वह रिटायर होता था तो उसे जीपीएफ में जमा कुल राशि का भुगतान होता था सरकार की तरफ से आजीवन पेंशन मिलती थी। इसके विपरीत नई पेंशन व्यवस्था (NPS) वर्ष 2004 से लागू हुई न्यू पेंशन स्कीम (एनपीएस)न्यू पेंशन स्कीम एक म्‍यूचुअल फंड की तरह है।ये शेयर मार्केट पर आधारित व्यवस्था है।पुरानी पेंशन की तरह इसमेें पेंशन में हर साल डीए नहीं जोड़ा जाता। कोई गारंटी नहीं है कि कर्मचारी या अधिकारी की आखिरी सैलरी का लगभग आधा ही उसे पेंशन के तौर पर मिले। एनपीएस के तहत जो टोटल अमाउंट है, उसका 40 प्रतिशत शेयर मार्केट में लगाया जाता है। कर्मचारी या अधिकारी जिस दिन वह रिटायर होता है, उस दिन जैसा शेयर मार्केट होगा, उस हिसाब से उसे 60 प्रतिशत राशि मिलेगी. बाकी के 40 प्रतिशत के लिए उसे पेंशन प्लान लेना होगा।पेंशन प्लान के आधार पर उसकी पेंशन निर्धारित होगी।नई व्यवस्था में कर्मचारी का जीपीएफ एकाउंट बंद कर दिया गया है।

डॉ० पसबोला ने आगे स्पष्ट किया कि विरोध इन बातों पर है:-
1 जनवरी 2004 को जब केंद्र सरकार ने पुरानी व्यवस्था को खत्म कर नई व्यवस्था लागू की. एक बात साफ थी कि अगर राज्य चाहें तो इसे अपने यहां लागू कर सकते हैं. मतलब व्यवस्था स्वैच्छिक थी. उत्तराखंड में इसे 1 अक्टूबर 2005 को लागू कर दिया. पश्चिम बंगाल में आज भी पुरानी व्यवस्था ये लागू है।
पुरानी पेंशन व्यवस्था नई व्यवस्था की तरह शेयर बाजार पर आश्रित नहीं है, लिहाजा उसमें जोखिम नहीं था.
न्यू पेंशन स्कीम लागू होने के 14 साल बाद भी यह व्यवस्था अभी तक पटरी पर नहीं आ सकी है।
नई स्कीम में कोई गारंटी नहीं है कि कर्मचारी या अधिकारी की आखिरी सैलरी का लगभग आधा ही उसे पेंशन के तौर पर मिले. क्योंकि शेयर बाजार से चीजें तय हो रही हैं।
नई व्यवस्था के तहत 10 प्रतिशत कर्मचारी और 10 प्रतिशत सरकार देती है. लेकिन जो सरकार का 10 प्रतिशत का बजट है, वही पूरा नहीं है।
उत्तराखण्ड में मौजूदा समय में 2.5 लाख कर्मचारी है. अगर उनकी औसत सैलरी निकाली जाए तो वह 25 हजार के आसपास है. इस हिसाब से कर्मचारी का 2500 रुपए अंशदान है. लेकिन इतना ही अंशदान सरकार को भी करना है. मोटे तौर पर सरकार के ऊपर कई हजार करोड़ का भार आएगा. लेकिन सरकार के पास इसके लिए बजट ही नहीं है।
नई व्यवस्था के तहत मान लीजिए अगर किसी की पेंशन 2000 निर्धारित हो गई तो वह पेंशन उसे आजीवन मिलेगी. उसमें कोई उतार-चढ़ाव नहीं होगा. पुरानी व्यवस्था में ऐसा नहीं था. उसमें हर साल डीए और वेतन आयोग के तहत वृद्धि की सुविधा थी. विरोध शेयर मार्केट आधारित व्यवस्था को लेकर है. कर्मचारियों का कहना है कि मान लीजिए कि एक कर्मचारी एक लाख रुपये जमा करता है. जिस दिन वह रिटायर होता है उस दिन शेयर मार्केट में उसके एक लाख का मूल्य 10 हजार है तो उसे 6 हजार रुपये मिलेंगे और बाकी 4 हजार में उसे किसी भी बीमा कंपनी से पेंशन स्कीम लेनी होगी. इसमें कोई गारंटी नहीं है।
पहले जो व्यवस्था थी, उसमें नौकरी करने वाले व्यक्ति का जीपीएफ अकाउंट खोला जाता था. उसमें कर्मचारी के मूल वेतन का 10 फ़ीसदी कटौती करके जमा किया जाता था. जब वह रिटायर होता था तो उसे जीपीएफ में जमा कुल राशि का भुगतान होता था और सरकार की तरफ से आजीवन पेंशन मिलती थी. नई व्यवस्था में जीपीएफ अकाउंट बंद कर दिया गया है।