दून पुस्तकालय एवम् शोध केन्द्र के तत्वाधान में पुरातत्व व इतिहास के शोधार्थियों द्वारा उत्तरकाशी जिले में बर्नीगाड स्थान से लगभग 10 किमी उत्तर पूर्व में स्थित देवल गांव से पाषाण निर्मित महिष (भैंसा) मुखी चतुर्भुज मानव प्रतिमा खोज निकाली है। शोधार्थी इस प्रतिमा को सिंधु घाटी सभ्यता से प्राप्त ‘आदि शिव’ की प्रतिमा से जोड़कर देख रहे हैं। क्योंकि पूर्व में पुरातत्वविद पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर सिंधु घाटी सभ्यता एवं उत्तराखण्ड के पारस्परिक सम्बन्धों को रेखांकित कर चुके हैं। इस दुर्लभ प्रतिमा का प्रकाशन रोम से प्रकाशित प्रतिष्ठित शोध पत्रिका ईस्ट एंड वैस्ट के नवीनतम अंक में हुआ है। जो इसके पुरातात्विक महत्व को दर्शाता है।
उत्तराखण्ड की यमुना घाटी पुरासंपदा की दृष्टि से अत्यंत समृद्ध है। इस क्षेत्र में पूर्व से ही कालसी स्थित अशोक महान का शिलालेख जगतग्राम एवं पुरोला की अश्वमेघ यज्ञ की ईंटों की वेदियां तथा लाखामण्डल के देवालय समूह विश्वविख्यात हैं। दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र के तत्वावधान में पुरातत्व से जुड़े शोधार्थियों द्वारा हाल में ही इस क्षेत्र से कई अन्य महत्वपूर्ण पुरातत्त्वीय अवशेष खोजे गये हैं जो कि शोध पत्रिकाओं में प्रकाशनाधीन भी है।
दून पुस्तकालय एवम् शोध केन्द्र के निदेशक प्रो बीके जोशी ने संस्थान के पुस्तकालय तथा शोधप्रभाग द्वारा आयोजित महत्वपूर्ण सेमिनार तथा अन्य गतिविधियों साथ ही प्रकाशन के संदर्भ में जानकारी दी। उन्होंने यह भी बताया कि संस्थान द्वारा उत्तराखण्ड हिमालय के इतिहास, पुरातत्व, समाज व संस्कृति से जुड़े विविध अनछुए पहलुओं को प्रतिष्ठित शोधार्थियों/अध्येताओं व संस्थानों के साथ मिलकर उजागर करने का प्रयास किया जा रहा है। किसी भी क्षेत्र विशेष की समृद्ध ऐतिहासिक विरासत को गहराई से समझने के लिए पुरातात्विक साक्ष्य, भाषा तथा जैनिटिक विज्ञान का गहन अध्ययन करने की आवश्यकता होती हैं।