उत्तराखंड में आंदोलन, हड़ताल करने पर कर्मचारियों को बर्खास्त करने की चेतावनी का कोई असर नजर नहीं आ रहा है। कर्मचारी संगठनों के तेवर लगातार सख्त होते जा रहे हैं। बिजली कर्मचारियों ने प्रदेश भर में अपना जनजागरण कार्यक्रम जारी रखा। साफ किया कि तय आंदोलन कार्यक्रम वापस नहीं लिया जाएगा। मांगे न मानी गईं, तो 28 मई से हड़ताल तय है। बिजली कर्मचारी अधिकारी संयुक्त संघर्ष मोर्चा ने सरकार से कर्मचारियों की बजाय ऐसे अफसरों को बर्खास्त करने की मांग की, जिन्होंने कर्मचारियों को मांगे पूरी करने का आश्वासन दिया, लेकिन उसे पूरा नहीं किया।
मोर्चा के संयोजक इंसारुल हक ने कहा कि आंदोलन, हड़ताल करने का कर्मचारियों को कोई शौक नहीं है। जब साढ़े तीन साल पहले हुए समझौते की कोई सुध ही नहीं लेगा, तो कर्मचारियों के पास क्या रास्ता बचा है, अपनी मांग उठाने का। अब सरकार कर्मचारियों से उनका लोकतांत्रिक अधिकार भी छीनना चाहती है। यदि ऐसा होता है, तो ये लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन होगा। बावजूद इसके कर्मचारी डरने वाले नहीं हैं। क्योंकि जब कोई न तो मांगे पूरी करेगा और न ही वार्ता करेगा, तो कर्मचारी क्यों अपने आंदोलन से पीछे हटेगा।
उन्होंने कहा कि सरकार से कुछ भी अनोखा नहीं मांगा जा रहा है। बल्कि उनके जो अधिकार छीने गए हैँ, उन्हें ही वापस मांगा जा रहा है। दिसंबर 2017 को जो समझौता हुआ, उसे पूरा किया जाए। इस बीच उसे न तो पूरा किया गया। न ही इस बीच कोई वार्ता की गई। 12 साल से टीजी टू से जेई पद पर प्रमोशन नहीं हुआ है। इंसेटिव बोनस नहीं दिया जा रहा है। एसीपी का 9,14,19 वर्ष पर लाभ नहीं मिल रहा। समय वेतनमान का लाभ नहीं मिल रहा है। वेतन विसंगति के मसले दूर नहीं हो रहे। ऐसे में कोई भी आंदोलन का कार्यक्रम वापस नहीं लिया जाएगा।
संयोजक इंसारुक हक ने कहा कि जिसे सरकार आंदोलन कह रही है, वो असल में जन जागरण अभियान है। इसमें कर्मचारियों को न सिर्फ उनकी मांगों को लेकर जागरुक किया जा रहा है। बल्कि लाइन लॉस कम किए जाने को भी प्रेरित किया जा रहा है।
डिप्लोमा इंजीनियर्स महासंघ भी विरोध में
सरकार के आदेश के खिलाफ उत्तराखंड डिप्लोमा इंजीनियर्स महासंघ भी विरोध में है। महासचिव अजय बेलवाल ने कहा कि कोई हड़ताल नहीं होनी चाहिए। जनता को प्रभावित नहीं होना चाहिए। सरकार के आदेश का समर्थन करते हैं, लेकिन बर्खास्तगी की यही कार्रवाई उनके साथ भी होनी चाहिए, जो आश्वासनों को लटकाते हैं। 15 साल से वरिष्ठता सूची को लटकाए हुए हैं। समय पर प्रमोशन नहीं करते हैं। वेतन, पेंशन का भुगतान समय पर नहीं होता है, तो उसके लिए भी कार्रवाई के वैसे ही सख्त प्रावधान सरकार को करने चाहिए।