News web media Uttarakhand : नरेंद्र मोदी सरकार ने देश में नागरिकता संशोधन कानून (CAA) की अधिसूचना जारी कर दी है। लोकसभा चुनाव बेहद करीब हैं इससे ठीक पहले केंद्र ने ये बड़ा फैसला लिया। सीएए के लागू होते ही बगैर दस्तावेज के अब पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश से आए हिंदुओं, सिखों (गैर-मुस्लिम) को नागरिकता मिलेगी। सीएए को दिसंबर, 2019 में संसद के दोनों सदनों में पास कर दिया गया था। बाद में इसे राष्ट्रपति की मंजूरी भी मिल गई थी। हालांकि, इसके खिलाफ देश के कई हिस्सों में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए थे। इसी के चलते अब तक यह कानून लागू नहीं हो सका था। 11 मार्च की शाम को सरकार ने इसकी अधिसूचना जारी कर दी। सीएए लागू किए जाने के बाद हर किसी के मन में सवाल यही है कि आखिर इससे क्या बदलाव होंगे।
सीएए लागू होने का क्या असर होगा
सीएए के नियम जारी हो जाने के बाद केंद्र सरकार 31 दिसंबर, 2014 तक भारत आए बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के प्रताड़ित गैर-मुस्लिम प्रवासियों (हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई) को भारतीय नागरिकता देना शुरू कर देगी। सरकार ने बताया कि पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन होगी। इसके लिए ऑनलाइन पोर्टल भी तैयार किया गया है। इसमें बाहर से आए लोगों को रजिस्ट्रेशन करना होगा। ये भी बताना होगा कि उन्होंने भारत में एंट्री कब ली थी। इसके बाद जरूरी जांच पड़ताल की जाएगी और फिर उन आवेदकों को नागरिकता मिल सकेगी।
सीएए कानून क्या है
नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) का उद्देश्य धार्मिक उत्पीड़न के कारण भारत में शरण लेने वाले व्यक्तियों की रक्षा करना है। यह उन्हें अवैध माइग्रेशन की कार्रवाई के खिलाफ एक ढाल प्रदान करता है। सीएए में अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और क्रिस्चन धर्मों के प्रवासियों के लिए नागरिकता के नियम को आसान बनाया गया है। पहले किसी व्यक्ति को भारत की नागरिकता हासिल करने के लिए कम से कम पिछले 11 साल से यहां रहना अनिवार्य था। इस नियम को आसान बनाकर नागरिकता हासिल करने की अवधि को एक साल से लेकर 6 साल किया गया है। आसान शब्दों में कहा जाए तो भारत के तीन पड़ोसी देश पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आए गैर मुस्लिम प्रवासियों को नागरिकता देने के नियम को आसान बनाया गया है।
सीएए पर विपक्ष क्यों उठा रहा सवाल
सीएए के नियमों को लेकर देश के प्रमुख विपक्षी दल सवाल खड़े करते रहे हैं। 2019 में जब ये एक्ट केंद्र सरकार संसद में लाई थी तो यह तर्क दिया गया कि ये कानून भेदभावपूर्ण है। यह मुसलमानों को टारगेट करता है, जो देश की आबादी का लगभग 15 फीसदी हैं। हालांकि, सरकार बताती है कि चूंकि पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश मुस्लिम बहुल इस्लामी गणराज्य हैं, इसलिए वहां के मुसलमानों को उत्पीड़ित अल्पसंख्यक नहीं माना जा सकता है। हालांकि, सरकार ये आश्वस्त करती है कि अन्य समुदायों के आवेदन की समीक्षा केस-दर-केस के आधार पर की जाएगी।
नागरिकता के लिए प्रवासी कैसे कर सकते हैं आवेदन?
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने साफ कर दिया है कि CAA में नागरिकता को लेकर पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन आयोजित की जाएगी। होम मिनिस्ट्री ने आवेदकों की सुविधा के लिए एक पोर्टल तैयार किया है। जिसमें आवेदन करने वालों को ये बताना होगा कि आखिर उन्होंने बिना पूरे डॉक्यूमेंट्स के भारत में कब प्रवेश किया। उन्हें इसकी पूरी जानकारी देनी होगी। हालांकि, इस दौरान आवेदकों से कोई दस्तावेज नहीं मांगा जाएगा।
CAA के नोटिफिकेशन की टाइमिंग पर सवाल
सीएए लगभग चार साल पहले संसद से पास हो गया था। संसदीय प्रक्रिया के मैनुअल में बताए गए दिशानिर्देशों के अनुसार, किसी भी कानून के लिए नियम राष्ट्रपति की सहमति के छह महीने के भीतर तैयार किए जाने चाहिए। या फिर संसद के दोनों सदनों की अधीन विधान समितियों से विस्तार की मांग की जानी चाहिए। 2020 से गृह मंत्रालय संसदीय समितियों से नियमित अंतराल में एक्सटेंशन लेता रहा है। हालांकि, दिसंबर 2023 में ही केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इस बात पर जोर दिया कि सीएए को लागू करने से कोई नहीं रोक सकता क्योंकि यह देश का कानून है। उन्होंने यह भी कहा कि सीएए को लागू करना बीजेपी की प्रतिबद्धता थी। हालांकि, अब सीएए अधिसूचना की टाइमिंग पर विपक्ष सवाल इसलिए उठा रहा क्योंकि जल्द ही लोकसभा चुनावों की घोषणा होने वाली है। उसके बाद आदर्श आचार संहिता लागू जाएगी।
CAA के नए नियमों के तहत कितने लोग नागरिकता मांग सकते हैं?
गृह मंत्रालय की 2021-22 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, एक अप्रैल 2021 से 31 दिसंबर 2021 तक इन तीन देशों के गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदायों के कुल 1,414 विदेशियों को भारतीय नागरिकता दी गई। पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों को नागरिकता अधिनियम, 1955 के तहत रजिस्ट्रेशन के जरिए भारतीय नागरिकता दी जाती है। नौ राज्य गुजरात, राजस्थान, छत्तीसगढ़, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और महाराष्ट्र शामिल हैं, जहां लोगों को नागरिकता दी गई। इनमें असम और पश्चिम बंगाल दो ऐसे राज्य हैं जहां ये मुद्दा राजनीतिक रूप से बहुत संवेदनशील है। सरकार ने इन दोनों राज्यों में से किसी भी जिले को अब तक नागरिकता प्रदान करने की शक्ति नहीं प्रदान की है।