उत्तराखंड: राज्यपाल बेबीरानी मौर्य ने दिया इस्तीफा, यूपी चुनाव में बीजेपी के टिकट से चुनाव लड़ने की चर्चा

उत्तराखंड की राज्यपाल बेबी रानी मौर्य ने उनका कार्यकाल पूरा होने के बाद बुधवार को अपना इस्तीफा दे दिया है। राज्यपाल ने अपना इस्तीफा राष्ट्रपति को सौंपा है।बेनीरानी मौर्य उत्तराखंड की राज्यपाल के तौर पर बीती 26 अगस्त को अपने तीन साल का कार्यकाल पूरा कर चुकी हैं।राज्यपाल बेबी रानी मौर्य ने मीडिया से बातचीत करते हुए अपने 3 साल के कार्यकाल की जानकारी दी थी।

हाल ही में बेबीरानी मौर्य राज्यपाल पद पर तीन साल का कार्यकाल पूरा होने के बाद मीडिया से रूबरू हुई थीं। उन्होंने प्रदेश में महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के मुद्दों पर जोर दिया था। उनका कहना था कि प्रदेश की महिलाएं मेहनती और जुझारू हैं। महिलाओं को राजभवन से जो बेहतर सहयोग किया जा सकता है उसके लिए आगे भी ठोस प्रयास किए जाएंगे।

राजनीतिक गलियारों में इस बात की भी चर्चा है कि राजपाल बेबी रानी मौर्य आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर उत्तर प्रदेश राजनीति में सक्रिय होना चाहती हैं।दो दिन पहले नई दिल्ली में गृह मंत्री अमित शाह के साथ मुलाकात के बाद से ही उनके इस्तीफा देने की चर्चाएं तेज होने लगी थीं। उन्हें उत्तर प्रदेश बीजेपी में बड़ी जिम्मेदारी देने की चर्चाएं हैं। वहीं, अब प्रदेश के नए राज्यपाल की जिम्मेदारी किसे मिलेगी इसको लेकर भी चर्चा शुरू हो गई है।

पहाड़ी उत्पादों को भी मिलेगी पहचान,जानिए उत्तराखंड सरकार का फसलों की मार्केटिंग को का प्लान

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने राज्य के कृषि और बागवानी फसलों के वितरण के लिए एक मार्केटिंग कंपनी बनाने के निर्देश दिए। सीएम ने कृषि और उद्यान विभाग की समीक्षा करते हुए फल-सब्जी उत्पादन पर जोर दिया। साथ ही खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना में तेजी लाने समेत कई निर्देश दिए। सीएम ने कहा कि कृषि-बागवानी की योजनाओं को प्रभावी ढंग से लागू करने पर स्वरोजगार के अवसर बढ़ेंगे।

कृषि सचिव आर. मीनाक्षी सुन्दरम ने प्रस्तुतिकरण के जरिए से विभागीय प्रगति एवं कार्यकलापों की जानकारी दी। बैठक में कृषि उद्यान मंत्री सुबोध उनियाल, मुख्य सचिव डॉ. एसएस सन्धु, एसीएस आनंदवर्द्धन, सचिव शैलेश बगोली आदि मौजूद रहे। उधर, शिक्षा क्षेत्र के लिए सीएम द्वारा की गई घोषणाओं की एसीएस आनंदवर्द्धन ने मंगलवार को समीक्षा की। इस दौरान सामने आया कि 155 घोषणाओं में 120 पूरी हो चुकी हैं। शेष 35 में से 31 पर कार्रवाई चल रही है जबकि चार को निरस्त किया जा रहा है।

राज्य गठन के बीस वर्ष बीतने के बाद भी उत्तराखंड राज्य राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय से वंचित क्यों?

देहरादून :उत्तर प्रदेश से अलग होकर पृथक प्रदेश के रूप में उत्तराखंड का गठन हुए 20 वर्ष व्यतीत हो चुके हैं। उत्तराखंड को राज्य घोषित करने के लिए व्यापक आंदोलन चलाया गया क्योंकि पहाड़ की जनता उत्तर प्रदेश मैं खुद को उपेक्षित महसूस कर रही थी। अपने सपनों के उत्तराखंड की मांग को लेकर जनान्दोलन चलाया गया और शहादत भी दी गई परंतु आज 20 वर्ष बाद यहां की जनता खुद को ठगा महसूस कर रही है। राज्य गठन के बाद पहाड़ी क्षेत्र के लोगों को लगता था छोटा राज्य होने के कारण इसका समुचित विकास होगा लेकिन दुर्भाग्यवश ऐसा नहीं हो पाया। 20 वर्ष बाद भी एक नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी की स्थापना तक नहीं हो पाई जिसके कारण विधि की पढ़ाई करने के इच्छुक छात्रों को अन्य राज्यों के विश्वविद्यालयों का रुख करना पड़ रहा है जिससे इस राज्य के विद्यार्थियों को घोर परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।

उक्त संबंध में वर्ष 2011 में उत्तराखंड विधानसभा में एक प्रस्ताव पास कर उत्तराखंड विधि विश्वविद्यालय का गठन करने की घोषणा की गई।उत्तराखंड के नैनीताल जिले में स्थित भवाली में उत्तराखंड विश्वविद्यालय स्थापित करने का निर्णय लिया गया परंतु यह केवल घोषणा तक ही सीमित रह गया और धरातल पर कोई कार्य नहीं हुआ।उक्त संबंध में माननीय उच्च न्यायालय उत्तराखंड नैनीताल में सन 2014 में दो जनहित याचिका प्रस्तुत की गई जिसमें उत्तराखंड में विधि विश्वविद्यालय के गठन  सम्बंधी समुचित आदेश पारित करने का निवेदन किया गया परंतु कुछ नहीं हुआ।तदोपरान्त सन् 2018 में राज्य सरकार द्वारा उत्तराखंड राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम की धारा 3(4) मैं संशोधन किया गया जिसके अनुसार उत्तराखंड विधि विश्वविद्यालय का मुख्यालय राज्य सरकार द्वारा निर्धारित स्थानों के चयन के बाद सुनिश्चित करने का निर्णय किया गया। उक्त संबंध में दिनांक 13-04-2018 को राज्य के आफिसियक गजट में उक्त संशोधन को घोषित किया गया उत्तराखंड राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम 2011 के 7 वर्ष के बाद भी राज्य सरकार द्वारा मुख्यालय के लिए स्थल चयन का कार्य नहीं पूर्ण हो सका। इन परिस्थितियों के मध्य नजर माननीय उच्च न्यायालय ने 2014 में दाखिल दो जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए दिनांक 19-06-2018 को निम्न आदेश पारित किए गये-

1. यह कि राज्य सरकार उक्त आदेश के 3 महीने के अन्दर राज्य विधि विश्वविद्यालय प्रारंभ करें।

2. यह कि राज्य सरकार को निर्देश दिए गए कि वह उक्त विश्वविद्यालय किसी सरकारी बिल्डिंग में या किसी प्राइवेट भवन में समुचित किराए पर लेकर भी विश्वविद्यालय प्रारंभ कर सकता है।

3. यह कि राज्य सरकार तराई क्षेत्र को प्राथमिकता देते हुए उधम सिंह नगर या अन्य तराई क्षेत्र में 1800 एकड़ भूमि का चयन करके निर्माण कार्य प्रारंभ करें।

4. कि उक्त विश्वविद्यालय में सितंबर 2018 से शैक्षणिक सत्र प्रारंभ कर दिया जाए और इसके लिए आवश्यक अनुमति यों को बार काउंसलिंग ऑफ इंडिया शीघ्राति शीघ्र प्राप्त कर लिया जाए।

5. यह के आदेश की तिथि के 1 महीने के अंदर विश्वविद्यालय अधिनियम का  विनियमन तैयार करें क्योंकि अभी तक उक्त अधिनियम हेतु आवश्यक विनियमन तक नहीं पारित किए गए हैं इसके लिए 1 महीने की समय सीमा माननीय उच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित की गई।

इसके अतिरिक्त यह भी निर्देश दिए गए कि विश्वविद्यालय अधिनियम के अधीन सभी नियुक्तियां जिसमें शैक्षणिक और प्रशासनिक शामिल हैं आदेश के 3 महीने के अंदर पूरी कर ली जाये।परंतु दुर्भाग्यवश 10 वर्ष बीत जाने के बाद भी अभी तक उक्त संबंध में कोई समुचित कार्यवाही नहीं की गई हालांकि माननीय राज्यपाल उत्तराखंड द्वारा दिनांक 13-02-2019 को एक अधिसूचना जारी करते हुए यह कहा कि उत्तराखंड के देहरादून जिले में रानी पोखरी में नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी का मुख्यालय बनाया जाए।

माननीय उच्च न्यायालय के आदेशों का अनुपालन न करने के कारण माननीय उच्च न्यायालय में सन 2019 को न्यायालय की अवमानना के बाद दायर किया गया जिस के परीक्षण के बाद न्यायालय ने यह स्थापित किया कि 19-06-2018 को पारित आदेशों का अनुपालन नहीं किया गया मात्र 13-02-2018 को माननीय राज्यपाल उत्तराखंड द्वारा अधिसूचना जारी कर दिया गया लेकिन कोई कार्य नहीं किया गया।

उक्त अवमानना  याचिका के विरुद्ध में राज्य सरकार सुप्रीम न्यायलय में समीक्षा याचिका दायर की जिसके परीक्षण के उपरान्त सर्वोंच्च न्यायलय ने उच्च न्यायलय नैनीताल के आदेश पर स्थगनादेश पारित किया।

किसी भी राज्य सरकार की यह जिम्मेदारी होती है कि वह राज्य में मूलभूत इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करें। जिसमें स्वास्थ्य शिक्षा और आजीविका अनिवार्य क्षेत्र हैं परंतु दुर्भाग्यवश ऐसा इस नवगठित राज्य में होता नहीं दिख रहा है।शिक्षा के क्षेत्र में यह राज्य पिछड़ता चला जा रहा है अन्य राज्यों से तुलना करें तो उत्तराखंड में नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी एक्ट 2011 में विधानसभा में पारित किया गया तब से अन्य राज्यों में 9 एन एल यू स्थापित किए जा चुके हैं जिनमें नव गठित राज्य छत्तीसगढ़ झारखंड और हिमाचल अपने राज्य में इसकी स्थापना कर चुके हैं।

किसी भी राज्य में राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय की स्थापना कितनी महत्वपूर्ण है इसका वर्णन राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय अधिनियम में किया गया है।

1. राष्ट्रीय विकास के लिए कानून कानूनी शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिए।

2.सामाजिक परिवर्तन के लिए एक माध्यम के रूप में कानूनी प्रक्रिया बनाने के लिए कानून के ज्ञान को प्रोत्साहित करना।

3. विधिक क्षेत्र में सामाजिक उत्तरदायित्व के लिए एक भावना विकसित करने और कानूनी क्षेत्र में छात्रों और शोधों को अमल में लाने के लिए विधिक कौशल को विकसित करना।

इन उद्देश्यों को विकसित करने में उत्तराखंड की सरकार विफल रही है जनहित की अपेक्षा करके केवल अपने हितों की पूर्ति मैं संलग्न होने की राजनेताओं की प्रवृत्ति इस राज्य के विकास की सबसे बड़ी बाधा है।

राज्य में नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी का महत्व इस बात से समझा जा सकता है कि इसके गठन से इस राज्य के विद्यार्थियों को अपने राज्य के विश्वविद्यालय में आरक्षण मिलता है इसके अतिरिक्त गुणवत्ता पूर्व कानूनी शिक्षा मिलने से यहां के युवाओं को रोजगार के अतिरिक्त सरकार समाज और कंपनियों के लिए भी सक्षम नेतृत्व प्रदान करने का अवसर मिलेगा जो इस दुर्गम और पिछड़े प्रदेश के लिए प्राथमिकता समझा जाना चाहिए परंतु इस क्षेत्र में इस संबंध में सार्थक पहल अभी तक इंतजार है।

राज्य गठन के बीस वर्ष बीतने के बाद भी उत्तराखंड राज्य राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय से वंचित क्यों?

देहरादून :- उत्तर प्रदेश से अलग होकर पृथक प्रदेश के रूप में उत्तराखंड का गठन हुए 20 वर्ष व्यतीत हो चुके हैं। उत्तराखंड को राज्य घोषित करने के लिए व्यापक आंदोलन चलाया गया क्योंकि पहाड़ की जनता उत्तर प्रदेश मैं खुद को उपेक्षित महसूस कर रही थी। अपने सपनों के उत्तराखंड की मांग को लेकर जनान्दोलन चलाया गया और शहादत भी दी गई परंतु आज 20 वर्ष बाद यहां की जनता खुद को ठगा महसूस कर रही है। राज्य गठन के बाद पहाड़ी क्षेत्र के लोगों को लगता था छोटा राज्य होने के कारण इसका समुचित विकास होगा लेकिन दुर्भाग्यवश ऐसा नहीं हो पाया। 20 वर्ष बाद भी एक नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी की स्थापना तक नहीं हो पाई जिसके कारण विधि की पढ़ाई करने के इच्छुक छात्रों को अन्य राज्यों के विश्वविद्यालयों का रुख करना पड़ रहा है जिससे इस राज्य के विद्यार्थियों को घोर परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।

उक्त संबंध में वर्ष 2011 में उत्तराखंड विधानसभा में एक प्रस्ताव पास कर उत्तराखंड विधि विश्वविद्यालय का गठन करने की घोषणा की गई।उत्तराखंड के नैनीताल जिले में स्थित भवाली में उत्तराखंड विश्वविद्यालय स्थापित करने का निर्णय लिया गया परंतु यह केवल घोषणा तक ही सीमित रह गया और धरातल पर कोई कार्य नहीं हुआ।उक्त संबंध में माननीय उच्च न्यायालय उत्तराखंड नैनीताल में सन 2014 में दो जनहित याचिका प्रस्तुत की गई जिसमें उत्तराखंड में विधि विश्वविद्यालय के गठन  सम्बंधी समुचित आदेश पारित करने का निवेदन किया गया परंतु कुछ नहीं हुआ।तदोपरान्त सन् 2018 में राज्य सरकार द्वारा उत्तराखंड राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम की धारा 3(4) मैं संशोधन किया गया जिसके अनुसार उत्तराखंड विधि विश्वविद्यालय का मुख्यालय राज्य सरकार द्वारा निर्धारित स्थानों के चयन के बाद सुनिश्चित करने का निर्णय किया गया। उक्त संबंध में दिनांक 13-04-2018 को राज्य के आफिसियक गजट में उक्त संशोधन को घोषित किया गया उत्तराखंड राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम 2011 के 7 वर्ष के बाद भी राज्य सरकार द्वारा मुख्यालय के लिए स्थल चयन का कार्य नहीं पूर्ण हो सका। इन परिस्थितियों के मध्य नजर माननीय उच्च न्यायालय ने 2014 में दाखिल दो जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए दिनांक 19-06-2018 को निम्न आदेश पारित किए गये-

1. यह कि राज्य सरकार उक्त आदेश के 3 महीने के अन्दर राज्य विधि विश्वविद्यालय प्रारंभ करें।

2. यह कि राज्य सरकार को निर्देश दिए गए कि वह उक्त विश्वविद्यालय किसी सरकारी बिल्डिंग में या किसी प्राइवेट भवन में समुचित किराए पर लेकर भी विश्वविद्यालय प्रारंभ कर सकता है।

3. यह कि राज्य सरकार तराई क्षेत्र को प्राथमिकता देते हुए उधम सिंह नगर या अन्य तराई क्षेत्र में 1800 एकड़ भूमि का चयन करके निर्माण कार्य प्रारंभ करें।

4. कि उक्त विश्वविद्यालय में सितंबर 2018 से शैक्षणिक सत्र प्रारंभ कर दिया जाए और इसके लिए आवश्यक अनुमति यों को बार काउंसलिंग ऑफ इंडिया शीघ्राति शीघ्र प्राप्त कर लिया जाए।

5. यह के आदेश की तिथि के 1 महीने के अंदर विश्वविद्यालय अधिनियम का  विनियमन तैयार करें क्योंकि अभी तक उक्त अधिनियम हेतु आवश्यक विनियमन तक नहीं पारित किए गए हैं इसके लिए 1 महीने की समय सीमा माननीय उच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित की गई।

इसके अतिरिक्त यह भी निर्देश दिए गए कि विश्वविद्यालय अधिनियम के अधीन सभी नियुक्तियां जिसमें शैक्षणिक और प्रशासनिक शामिल हैं आदेश के 3 महीने के अंदर पूरी कर ली जाये।परंतु दुर्भाग्यवश 10 वर्ष बीत जाने के बाद भी अभी तक उक्त संबंध में कोई समुचित कार्यवाही नहीं की गई हालांकि माननीय राज्यपाल उत्तराखंड द्वारा दिनांक 13-02-2019 को एक अधिसूचना जारी करते हुए यह कहा कि उत्तराखंड के देहरादून जिले में रानी पोखरी में नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी का मुख्यालय बनाया जाए।

माननीय उच्च न्यायालय के आदेशों का अनुपालन न करने के कारण माननीय उच्च न्यायालय में सन 2019 को न्यायालय की अवमानना के बाद दायर किया गया जिस के परीक्षण के बाद न्यायालय ने यह स्थापित किया कि 19-06-2018 को पारित आदेशों का अनुपालन नहीं किया गया मात्र 13-02-2018 को माननीय राज्यपाल उत्तराखंड द्वारा अधिसूचना जारी कर दिया गया लेकिन कोई कार्य नहीं किया गया।

उक्त अवमानना  याचिका के विरुद्ध में राज्य सरकार सुप्रीम न्यायलय में समीक्षा याचिका दायर की जिसके परीक्षण के उपरान्त सर्वोंच्च न्यायलय ने उच्च न्यायलय नैनीताल के आदेश पर स्थगनादेश पारित किया।

किसी भी राज्य सरकार की यह जिम्मेदारी होती है कि वह राज्य में मूलभूत इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करें। जिसमें स्वास्थ्य शिक्षा और आजीविका अनिवार्य क्षेत्र हैं परंतु दुर्भाग्यवश ऐसा इस नवगठित राज्य में होता नहीं दिख रहा है।शिक्षा के क्षेत्र में यह राज्य पिछड़ता चला जा रहा है अन्य राज्यों से तुलना करें तो उत्तराखंड में नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी एक्ट 2011 में विधानसभा में पारित किया गया तब से अन्य राज्यों में 9 एन एल यू स्थापित किए जा चुके हैं जिनमें नव गठित राज्य छत्तीसगढ़ झारखंड और हिमाचल अपने राज्य में इसकी स्थापना कर चुके हैं।

किसी भी राज्य में राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय की स्थापना कितनी महत्वपूर्ण है इसका वर्णन राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय अधिनियम में किया गया है।

1. राष्ट्रीय विकास के लिए कानून कानूनी शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिए।

2.सामाजिक परिवर्तन के लिए एक माध्यम के रूप में कानूनी प्रक्रिया बनाने के लिए कानून के ज्ञान को प्रोत्साहित करना।

3. विधिक क्षेत्र में सामाजिक उत्तरदायित्व के लिए एक भावना विकसित करने और कानूनी क्षेत्र में छात्रों और शोधों को अमल में लाने के लिए विधिक कौशल को विकसित करना।

इन उद्देश्यों को विकसित करने में उत्तराखंड की सरकार विफल रही है जनहित की अपेक्षा करके केवल अपने हितों की पूर्ति मैं संलग्न होने की राजनेताओं की प्रवृत्ति इस राज्य के विकास की सबसे बड़ी बाधा है।

राज्य में नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी का महत्व इस बात से समझा जा सकता है कि इसके गठन से इस राज्य के विद्यार्थियों को अपने राज्य के विश्वविद्यालय में आरक्षण मिलता है इसके अतिरिक्त गुणवत्ता पूर्व कानूनी शिक्षा मिलने से यहां के युवाओं को रोजगार के अतिरिक्त सरकार समाज और कंपनियों के लिए भी सक्षम नेतृत्व प्रदान करने का अवसर मिलेगा जो इस दुर्गम और पिछड़े प्रदेश के लिए प्राथमिकता समझा जाना चाहिए परंतु इस क्षेत्र में इस संबंध में सार्थक पहल अभी तक इंतजार है।

अटल उत्कृष्ट स्कूल को सीबीएसई ने मान्यता देने से किया इंकार, सूत्रों के अनुसार अधूरे मानकों की वजह से सीबीएसई ने आवेदन को स्वीकार नहीं

उत्तराखंड के अटल उत्कृष्ट स्कूलों में 16 को सीबीएसई से मान्यता हासिल नहीं हो पाई। 189 चयनित अटल स्कूलों में केवल 172 ही विधिवत सीबीएसई से मान्य हो पाए हैं। सूत्रों के अनुसार अधूरे मानकों की वजह से सीबीएसई ने आवेदन को स्वीकार नहीं किया। इन स्कूलों को मान्यता दिलाने के लिए नए सिरे से कोशिश शुरू की गई है। मान्यता का पोर्टल खुलने पर दोबारा अर्जी लगाई जाएगी।

प्राइवेट स्कूलों की तर्ज पर विकसित किए जा रहे अटल स्कूल सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकताओं में शामिल हैं। इन स्कूलों में छात्रों के सभी प्रकार की फीस आदि का पूरा खर्च सरकार खुद ही उठा रही है।संपर्क करने पर शिक्षा मंत्री अरविंद पांडेय ने कहा कि, अटल उत्कृष्ट स्कूलों की मान्यता पर प्रक्रिया जारी है। शेष 16 की मान्यता भी जल्द ही जारी हो जाएगी। इनकी सभी औपचारिकताएं पूरी की जा चुकी हैूं।

चयन आयोग की विश्वसनीयता पर आंच, बेरोजगार संघ कह रहा की ऑनलाइन भर्ती प्रक्रिया हेतु चयनित कंपनी ब्लैक लिस्टेड है, सरकार कराए जांच- मोर्चा

प्रदेश में बेरोजगारों के साथ इस तरह के विरोधाभास के चलते असमंजस की स्थिति बनी हुई है तथा बेरोजगारों में अपने भविष्य को लेकर चिंता बनी हुई है |

चयन आयोग कह रहा सब कुछ है ठीक ! बेरोजगारों की शंका दूर कर उनके रोजगार संबंधी मार्ग प्रशस्त करने का काम करे शीघ्र करे सरकार |

जन संघर्ष मोर्चा अध्यक्ष एवं जीएमवीएन के पूर्व उपाध्यक्ष रघुनाथ सिंह नेगी ने कहा कि कुछ दिनों से बेरोजगार संघ अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की कार्यप्रणाली एवं उसके द्वारा ऑनलाइन भर्ती प्रक्रिया हेतु चयनित कंपनी को लेकर विवाद चल रहा है, जो कि अपने आप में बहुत कुछ बयान कर रहा है | कहीं ऐसा तो नहीं कि भर्ती करने वाली कंपनी एवं चयन आयोग की जुगलबंदी युवा बेरोजगारों को छलने का काम तो नहीं कर रही | नेगी ने कहा कि एक तरफ बेरोजगार संघ कह रहा है कि भर्ती करने वाली कंपनी ब्लैक लिस्टेड है तथा दूसरी ओर चयन आयोग के सचिव का कहना है कि पूरी पारदर्शिता के साथ भर्ती प्रक्रिया संपन्न कराई जा रही है तथा कंपनी कहीं भी ब्लैक लिस्टेड नहीं है | नेगी ने कहा कि प्रदेश में बेरोजगारों के साथ इस तरह के विरोधाभास के चलते असमंजस की स्थिति बनी हुई है तथा बेरोजगारों में अपने भविष्य को लेकर चिंता बनी हुई है | मोर्चा सरकार से मांग करता है कि उक्त मामले में शीघ्र ही बेरोजगारों की शंका दूर कर उनके रोजगार संबंधी मार्ग प्रशस्त करने का काम करे |

उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और पंजाब कांग्रेस के प्रभारी हरीश रावत ने नानकमत्ता गुरुद्वारे लगाई झाड़ू

उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और पंजाब कांग्रेस के प्रभारी हरीश रावत ने नानकमत्ता गुरुद्वारे में झाड़ू लगाकर और संगत के जोड़े साफ कर पंज प्यारे वाले बयान के लिए अपनी गलती का प्रायश्चित किया।
विगत दिनों हरीश रावत द्वारा पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू और कार्यवाहक अध्यक्षों के लिए पंज प्यारे शब्द का इस्तेमाल करने से उत्पन्न विवाद के कारण उनके खिलाफ प्रदर्शन होने लगे थे। मंकी उनका कहना था कि उनकी मंशा किसी की तुलना पंच प्यारों से करने की नहीं थी। अपने बयान को लेकर माफी मांगते हुए कहा कि वे अपनी गलती के लिए माफी मांगते हैं उत्तराखंड में गुरु के घर में झाड़ू लगाकर अपनी इस गलती का प्रायश्चित करेंगे। इसके बावजूद यह विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा था। कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा नानकमत्ता पहुंचे हरीश रावत ने यहां पवित्र गुरुद्वारा श्री नानकमत्ता साहिब परिसर मैं झाड़ू लगाकर और संगत के जोड़े साथ पर गलती का प्रायश्चित किया।

 

देहरादून : डीएवी पीजी कॉलेज में स्नातक प्रथम सेमेस्टर में प्रवेश के लिए ऑनलाइन पंजीकरण की अंतिम तिथि एक बार फिर बढ़ा दी गई है

देहरादून : डीएवी पीजी कॉलेज में स्नातक प्रथम सेमेस्टर में प्रवेश के लिए ऑनलाइन पंजीकरण की अंतिम तिथि एक बार फिर बढ़ा दी गई है। कॉलेज के मीडिया प्रभारी डॉ. हरिओम शंकर ने बताया कि विभिन्न छात्र संगठनों के अनुरोध पर स्नातक प्रथम सेमेस्टर में ऑनलाइन पंजीकरण व स्नातक और स्नातकोत्तर के असाइनमेंट जमा करने की अंतिम तारीख चार सितंबर कर दी गई है। इससे पहले 30 अगस्त और फिर दो सितंबर अंतिम तारीख तय की गई थी।

डॉ. हरिओम शंकर ने बताया कि चार सितंबर सभी विद्यार्थियों के लिए पंजीकरण और असाइनमेंट के लिए अंतिम अवसर होगा। जिन विद्यार्थियों के फार्म में त्रुटि है तो वह भी इसमें सुधार कर सकते हैं। पांच और छह सितंबर को पोर्टल बैंकिंग क्लीयरेंस के कारण बंद रहेगा। चार तारीख को किए गए आवेदन की त्रुटि का सुधार सात सितंबर को किया जा सकता है।
पंजीकरण और असाइनमेंट दोनों ही डीएवी कॉलेज की वेबसाइट www.davpgcollege.in पर ही होंगे।

डीबीएस कॉलेज के प्राचार्य डॉ. वीसी पांडेय ने बताया कि कॉलेज में स्नातक प्रथम सेमेस्टर में प्रवेश के आनलाइन पंजीकरण की अंतिम तिथि तीन सितंबर है।

एमकेपी कॉलेज की प्राचार्य डॉ. रेखा खरे ने बताया कि कॉलेज में स्नातक प्रथम सेमेस्टर में प्रवेश के लिए ऑनलाइन आवेदन की दो सितंबर को अंतिम तारीख थी। इसके बाद मेरिट की सूची जारी करने पर कार्य किया जाएगा। अगर सामान्य या आरक्षित वर्ग में सीट रिक्त रहती हैं तो आवेदन के लिए छात्र-छात्राओं को फिर मौका दिया जाएगा।

कांग्रेसियों ने रसोई गैस की महंगाई पर बल्लीवाला चौक पर प्रदर्शन किया

आक्रोश

-घरेलू गैस सिलेंडर के बढ़ते दामों पर सरकार के खिलाफ नारेबाजी

-बल्लीवाला चौक पर विरोध-प्रदर्शन के दौरान कांग्रेस ने फूंका पुतला

देहरादून:- रसोई गैस की बढ़ती कीमतों के विरोध में कांग्रेसियों ने बल्लीवाला चौक पर प्रदर्शन किया। इस दौरान पुतला फूंककर सरकार से उन्होंने अपना विरोध दर्ज करया। साथ ही ‘महंगाई से मुंह मत मोड़ो, कम नहीं कर सकते तो कुर्सी छोड़ो का नारा भी लगाया।

गुरुवार को महंगाई के विरोध में कांग्रेस प्रदेश उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना के नेतृत्व में बड़ी संख्या में कार्यकर्ता बल्लीवाला चौक पहुंचे थे। यहां सबने केंद्र सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी की और रसोई गैस की कीमत कम करने की मांग उठाई। धस्माना ने कहा कि केंद्र सरकार ने रसोई गैस पर ‘सर्जिकल स्ट्राइक की है। सब्जियां, दालें, आटा-चावल और अब खाने का तेल भी महंगा हो गया है। धस्माना ने कहा कि देश की जनता, खासतौर पर माताएं-बहनें रसोई पर ‘सर्जिकल स्ट्राइक को नहीं भूलेंगी। इस अवसर पर प्रदेश कांग्रेस सचिव मंजू त्रिपाठी और महेश जोशी, महानगर युवा कांग्रेस अध्यक्ष गौतम सोनकर, कांवली ब्लॉक अध्यक्ष अल्ताफ, यमुना कॉलोनी अध्यक्ष प्रमोद गुप्ता, महानगर कांग्रेस उपाध्यक्ष धर्म सोनकर, सुमित खन्ना, संगीता गुप्ता, सभासद जितेंद्र तनेजा, प्रेमनगर महिला कांग्रेस अध्यक्ष सुशीला शर्मा, कांवली अध्यक्ष जया गुलानी, पूर्व पार्षद ललित भद्री, राजेंद्र धवन, संजय थापा, विजय शाही, अवधेश, अनीता दास, विमलेश, संजय भारती, सुल्तान अहमद, उदवीर सिंह पंवार शामिल रहे।

राज्य के स्कूल भी खुले गए , लेकिन कोविड कर्फ्यू भी बढ़ा गया , स्कूल खुलने के फैसले के खिलाफ मामला हाईकोर्ट में…

उत्तराखण्ड कैबिनेट के फैसले के अनुसार प्रदेश में 2 अगस्त 2021 से स्कूल खोल दिए गए हैं। वहीं दूसरी ओर देर शाम कोविड-19 के नियंत्रण हेतु कोविड कर्फ्यू के संबंध में नई गाइडलाइन भी जारी की गई है, जिसके तहत प्रदेश में अब कोविड कर्फ्यू 10 अगस्त 2021 तक बढा दिया गया है। नई गाइडलाइन के मुताबिक राज्य के समस्त शासकीय एवं निजी विद्यालय, विद्यालयी शिक्षा विभाग द्वारा जारी गाइडलाइन के अनुसार संचालित होंगे। प्रदेश के समस्त औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान, पॉलीटेक्निक, महाविद्यालय, मेडिकल एवं नर्सिंग कॉलेज, इंजीनियरिंग कॉलेज, कृषि एवं प्रौद्योगिकी संस्थान, समस्त विश्वविद्यालय एवं अन्य समस्त संस्थान को खोलने के लिए संबंधित विभाग द्वारा मानक प्रचलन विधि कोविड प्रोटोकॉल के साथ खोले जाने हेतु पृथक से जारी की जाएगी एवं उसकी संबंधित संस्थानों द्वारा कड़ाई से पालन सुनिश्चित कराया जाएगा।

वहीं राज्य में 2 अगस्त से स्कूल खोलने का मामला हाईकोर्ट भी पहुंच गया है। हाईकोर्ट में कैबिनेट के फैसले के खिलाफ जनहित याचिका दायर की गई है, कोर्ट ने सुनवाई करते हुए याचिकाकर्ता से कैबिनेट के निर्णय के बजाय संबंधित शासनादेश को चुनौती देने को कहा है, मामले की अगली सुनवाई 4 अगस्त को होगी।

देहरादून के विजय सिंह ने जनहित याचिका दायर कर कहा है कि बीते दिनों कैबिनेट ने कक्षा 6 से बारह तक के विद्यालयों को खोलने का ऐलान किया, प्रदेश में कोरोना संकट जारी है। पहाड़ी क्षेत्रों में अब भी बड़ी संख्या में लोगों को वैक्सीन की पहली डो़ज तक नहीं लगी है। ऐसे में सरकार का निर्णय गलत है। मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति आरएस चौहान एवं न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ में हुई इस दौरान याचिकाकर्ता की ओर से बतााय गया कि उन्होंने कैबिनेट के निर्णय को चुनौती देते हुए 29 जुलाई को याचिका दायार की है। सरकार से संबंधित जिओ 31 जुलाई को जारी किया गया ऐसे में उन्हें जनहित याचिका में संशोधन को समय दिया जाए, इस पर कोर्ट ने समय दे दिया। राज्य में कई अभिभावक संगठन भी सरकार के स्कूल खोलने के फैसले के खिलाफ हैं, अभिवावक संघों का कहना है कि स्कूलों के दबाव में सरकार ने यह फैसला लिया है। अभिभावकों से सहमति पत्र भरवाकर स्कूल जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ रहे हैं, स्कलों को बच्चों की कोई परवाह नहीं है।